INDIA Alliance: लोकसभा चुनाव की जीत के बाद ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलायंस’(इंडिया) का जोश छह माह तक भी टिक नहीं पाया. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान ही उसके घटक दलों के बीच दरार बढ़ने लगी है. जिसका कारण चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव हैं. जम्मू-कश्मीर, झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में ‘इंडिया’ को आशा थी कि वह अच्छा प्रदर्शन करेगा. किंतु कहीं उसके घटक बाजी मार ले गए और कहीं उसमें आपसी तालमेल नहीं बन पाया. नौबत यह है कि घटक दल के नेता खुलकर बोलने लगे हैं. उत्तर प्रदेश का विपक्षी दल समाजवादी पार्टीकांग्रेस नेता राहुल गांधी को सीधे ही घेरने में लग गई है. पार्टी महासचिव और सांसद रामगोपाल यादव ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष को अपना या ‘इंडिया’ का नेता मानने से इंकार कर दिया है.
वह मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में यदि कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती तो गठबंधन को सत्ता मिलती. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने जरूरत पड़ने पर गठबंधन के नेता की जिम्मेदारी संभालने की घोषणा कर दी है. वह कहती हैं कि उन्होंने ही ‘इंडिया’ को बनाया.
उसे संभालने की जिम्मेदारी नेतृत्व करने वालों पर है और यदि नेतृत्व करने वाले इसे नहीं चला सकते तो वह क्या कर सकती हैं? इससे पहले, आम आदमी पार्टी(आप) ने इंडिया और कांग्रेस को झटका देकर दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर ही डाली है, तो उसके पहले कांग्रेस ने ‘आप’ को किनारे कर हरियाणा में चुनाव लड़ कर देख लिया.
साफ है कि नेताओं के बयान और बदलती परिस्थितियों में राजनीति के समीकरण कुछ अलग हो सकते हैं. इसमें विपक्ष तो विभाजित हो ही रहा है, साथ ही कांग्रेस के विचारों से अलग होने के प्रयास किए जा रहे हैं. राज्य स्तर पर ‘इंडिया’ के भाग और महाराष्ट्र के प्रमुख विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी के साथ विधानसभा चुनाव लड़ चुकी राज्य की समाजवादी पार्टी ने शिवसेना के ठाकरे गुट के कथित तौर पर ‘हिंदुत्व के मुद्दे’ पर जोर देने से अप्रसन्नता व्यक्त कर अलग होने की घोषणा की है. साफ है कि गठबंधन के सहयोगी एक-दूसरे पर आरोप लगाकर बाहर निकलने की तैयारी कर रहे हैं.
वहीं दूसरी ओर उन्हें एकजुट करने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे. नेतृत्व से लेकर विचारों में भिन्नता होने पर इस किस्म के परिणाम आना तय थे. हालांकि गठन के आरंभ में ही वैचारिक समानता के लिए प्रयासों की बात सामने आई थी. फिर भी निजी स्वार्थ के आगे लंबे समय तक साथ चलना मुश्किल ही माना जा रहा था.
अब आवश्यक यह है कि संसद के शोर-शराबे में साथ देने के अलावा सदन के बाहर भी मिलकर चला जाए. राज्यवार समीकरणों का बनना-बिगड़ना अच्छे परिणाम नहीं दे सकता है. हाल के नतीजों ने भी यही साबित किया है. गठबंधन के अनेक परिपक्व नेता शायद परिस्थिति की नजाकत को समझेेंगे और विपक्षी एकता के नाम पर बने ‘इंडिया’ को एक डोर में बांधे रखेंगे.