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ईडी की कार्रवाइयों के दौरान बढ़ते हमले ठीक नहीं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: January 8, 2024 10:48 IST

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाइयों पर राजनीति से लेकर हिंसा तेजी से बढ़ने लगी है।

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ठळक मुद्देप्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाइयों पर राजनीति से लेकर हिंसा तेजी से बढ़ने लगी हैबंगाल में तृणमूल नेता शाहजहां शेख के यहां छापेमारी के दौरान ईडी की टीम पर हमला हुआबिहार में भी ईडी अधिकारियों पर हमले की आशंका जताई जा रही है

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाइयों पर राजनीति से लेकर हिंसा तेजी से बढ़ने लगी है। बीते सप्ताह पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना जिले के संदेशखाली में तृणमूल कांग्रेस नेता शाहजहां शेख के यहां छापेमारी के दौरान ईडी की टीम पर हमला हुआ। इस बार खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें अधिकारियों से लेकर सुरक्षाकर्मियों तक को चोट आई।

इससे पहले बीते साल अगस्त माह में भिलाई में भी ईडी की टीम पर उस समय हमला हुआ था, जब वह मुख्यमंत्री के विशेष कार्य अधिकारी (ओएसडी) के घर छापेमारी के लिए गई थी। ताजा घटना के बाद बिहार में ईडी अधिकारियों पर हमले की आशंका जताई जा रही है, क्योंकि वहां भी वह राज्य के उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ कार्रवाई करने जा रही है।

दिल्ली में भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है, जिसको लेकर आम आदमी पार्टी हंगामा खड़ा कर सकती है। इन सभी प्रकरणों से साफ है कि राजनीतिक दल केंद्रीय एजेंसियों के खिलाफ आक्रोश पैदा करने में सफल हो रहे हैं। चूंकि राज्यों में पुलिस उनके ही अधीन है, इसलिए अनेक मामलों में पुलिस मूकदर्शक बन रही है।

हालांकि हमलों को लेकर विपक्षी दल अपनी सुविधा अनुसार बयान देते हैं, लेकिन उनकी आड़ में भाजपा के खिलाफ टिप्पणी करने से नहीं चूकते। दरअसल कोई भी जांच एजेंसी अपनी कार्रवाई अपने अधिकार क्षेत्र और कानून के आधार पर ही कर सकती है। इसके साथ ही कोई ठोस कदम उठाने के पहले उसके पास सबूत होते हैं, तभी वह छापेमारी के लिए कदम बढ़ाती है। बाद में उसे अदालत में अपनी कार्रवाई और आरोप सिद्ध करने होते हैं।

बीते जितने भी मामले ईडी ने दर्ज किए, उनका अदालत ने संज्ञान लेकर कार्रवाई उचित ठहराते हुए आरोपी को जेल भेजा। यदि सब कुछ राजनीति से प्रेरित होता तो कार्रवाई को इतनी आसानी से कानून के दायरे में कैसे लाया जा सकता था कि आरोपी के कई महीने तक जेल में रहने की नौबत आ जाए।

इसलिए केवल राजनीति का हवाला देकर खुद को सही साबित करना और विफल रहने पर केंद्रीय जांच एजेंसियों पर हमले करवाना कहां तक उचित ठहराया जा सकता है। वह भी तब जब पुलिस तमाशबीन बन जाए, जिसका सुरक्षा करना कर्तव्य है। इस परिस्थिति में राजनीति की असली जड़ों को भी सही तरीके से समझा जा सकता है।

आवश्यक यह है कि यदि किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई शिकायत है और जांच एजेंसी कानून के दायरे में कार्रवाई करने जा रही है तो उसे स्वतंत्र जांच का अवसर देना चाहिए और अपने साथ होने वाले अन्याय को अदालत में रखना चाहिए। न्याय के लिए दरवाजे हर व्यक्ति के लिए खुले हैं। कानून को हाथ में लेकर खुद को सही साबित करना असंभव है।

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