लाइव न्यूज़ :

ब्लॉगः नेताओं की बदजुबानी कैसे रुके ? सुप्रीम कोर्ट ने आपत्तिजनक बयानों पर क्या कहा?

By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 05, 2023 4:08 PM

सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों में से चार की राय थी कि हर मंत्री अपने बयान के लिए खुद जिम्मेदार है। उसके लिए उसकी सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस राय से अलग हटकर न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना का कहना था कि यदि उस मंत्री का बयान किसी सरकारी नीति के मामले में हो तो उसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाली जानी चाहिए।

Open in App

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाया है कि कोई मंत्री यदि आपत्तिजनक बयान दे दे तो क्या उसके लिए उसकी सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? यह मुद्दा इसलिए उठा था कि आजम खान नामक उत्तरप्रदेश के मंत्री ने 2016 में एक बलात्कार के मामले में काफी आपत्तिजनक बयान दे दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों में से चार की राय थी कि हर मंत्री अपने बयान के लिए खुद जिम्मेदार है। उसके लिए उसकी सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस राय से अलग हटकर न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना का कहना था कि यदि उस मंत्री का बयान किसी सरकारी नीति के मामले में हो तो उसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाली जानी चाहिए। शेष चारों जजों का कहना था कि संविधान कहता है कि देश में सबको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्रता का जो भी दुरुपयोग करेगा, उसे सजा मिलेगी। ऐसी स्थिति में अलग से कोई कानून थोपना तो अभिव्यक्ति की इस स्वतंत्रता का हनन होगा। संविधान की धारा 19 (2) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जो भी मर्यादाएं रखी गई हैं, वे पर्याप्त हैं। चारों न्यायाधीशों की राय काफी तर्कसंगत प्रतीत होती है लेकिन जज नागरत्ना की चिंता भी ध्यान देने लायक है। आखिर मंत्री का बयान प्रचारित इसलिए होता है कि वह मंत्री है। वह सरकार का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन उसके व्यक्तिगत बयानों के लिए सरकार को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है? इसके अलावा यह तय करना भी आसान नहीं है कि उसका कौनसा बयान व्यक्तिगत है और कौनसा उसकी सरकार से संबंधित है।

मैं सोचता हूं कि इस मामले में जैसा कानून अभी उपलब्ध है, वह पर्याप्त है। कानून की नई सख्तियां लागू करने से भी ज्यादा जरूरी है कि हमारे मंत्री और नेता लोग खुद पर जरा आत्मसंयम लागू करें। उनका मंत्रिमंडल और उनकी पार्टी उन्हें मर्यादा में रहना सिखाए। दुखद स्थिति यह है कि पार्टी और सरकार के सर्वोच्च नेता भी अनाप-शनाप बयान देने से बाज नहीं आते। अखबार और टीवी चैनल भी उन जहरीले चटपटे बयानों को उछालते हैं। यदि हमारी खबरपालिका अपनी लक्ष्मण-रेखाएं खींच दे तो इस तरह के जहरीले, कटुतापूर्ण और घटिया बयानों पर किसी का ध्यान जाएगा ही नहीं। जो नेतागण इस तरह के बयान देने के आदी हैं, उनकी पार्टी उन पर कड़े प्रतिबंध भी लगा सकती हैं, उन्हें दंडित भी कर सकती हैं। यदि हमारी खबरपालिका और पार्टियां संकल्प कर लें तो वे नेताओं की इस बदजुबानी को काफी हद तक रोक सकती हैं। अदालतों के सहारे उन्हें रुकवाने से यह बेहतर तरीका है।

टॅग्स :विवादसुप्रीम कोर्ट
Open in App

संबंधित खबरें

भारतब्लॉग: तकनीक के उपयोग से मुकदमों के शीघ्र निपटारे में मदद मिलेगी

भारतNCBC Punjab and West Bengal: पंजाब-पश्चिम बंगाल में रोजगार आरक्षण कोटा बढ़ाने की सिफारिश, लोकसभा चुनाव के बीच एनसीबीसी ने अन्य पिछड़ा वर्ग दिया तोहफा, जानें असर

भारतसुप्रीम कोर्ट से ईडी को लगा तगड़ा झटका, कोर्ट ने कहा- 'विशेष अदालत के संज्ञान लेने के बाद एजेंसी नहीं कर सकती है गिरफ्तारी'

भारतLok Sabha Elections 2024: "अमित शाह ने केजरीवाल की जमानत पर बयान देकर सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर सवाल खड़ा किया है", कपिल सिब्बल ने गृह मंत्री की टिप्पणी पर किया हमला

भारत"न्यूजक्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ की UAPA के तहत गिरफ्तारी अवैध": सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल रिहाई का दिया आदेश

भारत अधिक खबरें

भारतLok Sabha Elections 2024: "भाजपा 'आप' को कुचलने के लिए 'ऑपरेशन झाड़ू' चला रही है, पार्टी के बैंक खाते भी बंद कराएगी" अरविंद केजरीवाल का बेहद तीखा हमला

भारतLok Sabha Elections 2024: शिरोमणि अकाली दल ने 'ऐलान-नामा' में कहा, "पाकिस्तान से करतारपुर साहिब को वापस लेंगे"

भारतकश्मीर में टूरिस्टों पर ताजा हमले से लोग चिंता में, पाकिस्तान को रास नहीं आ रही पर्यटकों की बाढ़

भारतदिल्ली की गर्मी से आमजन का बुरा हाल, IMD का रेड अलर्ट! 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है तापमान

भारतLok Sabha Elections 2024: "जम्मू-कश्मीर में हाल में हुई हत्याओं की जांच अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसियों से कराई जाए", फारूक अब्दुल्ला ने कहा