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ब्लॉगः जीर्णोद्धार की बाट जोहता सीताजी का प्राकट्य स्थल

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 29, 2023 4:12 PM

पुनौराधाम को धार्मिक पर्यटनस्थल बनाने की दृष्टि से जिस तेजी से काम होना चाहिए था, वह अभी भी नहीं हो रहा है। पहले लोगों के मन में यह था कि मां जानकी का प्राकट्य स्थल जनकपुर है जबकि जनकपुर मां सीता का ननिहाल और विवाहस्थल है। जनकपुर में श्री रामजी ने शिवजी का धनुष तोड़ा था।

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प्रभात झाः अयोध्या में रामलला की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण प्रारंभ हो चुका है। अब ध्यान देने की आवश्यकता है मां सीता के प्राकट्य स्थल पर, जो बिहार के सीतामढ़ी से 3-4 किलोमीटर दूर पुनौराधाम कहलाता है। प्राकट्य स्थल का कुंड भी मौजूद है और छोटा सा मंदिर भी बना हुआ है। लेकिन मां सीता के प्राकट्य स्थल का जो भव्य स्वरूप होना चाहिए उसकी ओर न बिहार संस्कृति मंत्रालय और न केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय का विशेष ध्यान जा रहा है। जब अयोध्या में श्रीरामलला का भव्य मंदिर बन रहा है, पुनौराधाम में मां जानकी के प्राकट्य स्थल का जीर्णोद्धार क्यों नहीं हो रहा है। समय आ गया है कि पुनौराधाम भारत के पांचवें धाम के रूप में स्थापित किया जाए।

पहले तो लोगों को पता ही नहीं था कि पुनौराधाम है कहां। लेकिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने शास्त्रों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि पुनौराधाम ही मां सीता का प्राकट्य स्थल है। रामभद्राचार्य जी दस वर्षों से जानकी नवमी पर पुनौराधाम में अनवरत, निःशुल्क कथा कर यह संदेश दे रहे हैं कि मिथिलावासियो और भारतवासियो, मां जानकी प्राकट्य स्थल के जीर्णोद्धार और उसकी भव्यता में सभी लोग सहयोग कीजिए।

धर्मशास्त्रों में तीर्थ के तीन रूपों का वर्णन है-नित्य तीर्थ, भगवदीय तीर्थ और सत्‌ तीर्थ। इसमें पुण्यारण्य (पुनौराधाम) को सनातन से तीनों रूप प्राप्त है। भगवती माता सीता जी इसी भूमि से अवतरित हुई थीं, जिस कारण यह भगवदीय तीर्थ है। पुण्डरीक ऋषि का पावन आश्रम होने से यह सत्‌ तीर्थ है। अयोध्या, मथुरा आदि की तरह लीला भूमि होने से पुनौराधाम को नित्य तीर्थ होने का सौभाग्य प्राप्त है। वृहद विष्णु पुराण के मिथिला खंड में वर्णित है कि हम संसार में प्राणियों की सारी मनोकामनाएं पूरी करने वाली विशेष फलदायक यज्ञ स्थली पुण्योर्वरा (पुनौराधाम) की यात्रा और दर्शन विशेषकर चैत्र श्री रामनवमी और वैशाख श्री जानकी नवमी में मोक्ष के अभिलाषी को करने चाहिए, क्योंकि दोनों तिथि क्रमशः श्री राम जी का जन्मदिवस और मां सीता का प्राकट्य दिवस है।

शास्त्रों में वर्णन है कि एक बार संपूर्ण मिथिला में घोर दुर्भिक्ष पड़ गया। अनावृष्टि से मिथिलावासियों में त्राहि-त्राहि मच गई। लोग अन्न और जल के अभाव में दम तोड़ने लगे। सब जीव-जंतु व्याकुल हो उठे। उस समय मिथिला महाराजा निमि के वंशज राजा जनक राज कर रहे थे। ‘यज्ञ से वर्षा होती है और वर्षा के प्रभाव से अन्न उत्पन्न होता है।’ इससे प्रभावित होकर राजर्षि जनक ने अपने राज्य के विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ज्योतिषियों की आपातकालीन सभा बुलाकर भीषण दुर्भिक्ष की विभीषिका से त्राण पाने के उपाय पर विचार-विमर्श किया। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि राजा जनक को हलेष्ठी यज्ञ करना चाहिए। इसके निमित्त शोध के आधार पर पुण्यारण्य (पुण्डरीक आश्रम) का उपयुक्त स्थान के रूप में चयन किया गया।

वृहद विष्णु पुराण के मिथिला माहात्म्य के अष्टम अध्याय में वर्णित है कि राजर्षि जनक का जो प्राचीन दुर्ग था, उसके पंचकोशी चार विशाल द्वार थे। वे इन दिनों भी वर्तमान जनकपुरधाम से क्रमशः दस मील उत्तर की ओर धनुषा, दस मील दक्षिण की ओर गिरजा स्थान, दस मील पूरब की ओर हरिहरालय महादेव और दस मील पश्चिम जलेश्वरनाथ के नाम से लोक विदित हैं। यह स्पष्ट है कि महाराज जनक इसी जलेश्वरनाथ (शिवजी का जलशयन स्थल) से पश्चिम भाग में शास्त्रवत अठासी ऋषियों एवं रानी सुनैना सहित तीन योजन के बाद हलेष्ठी यज्ञार्थ पुण्डरीक आश्रम पुण्यारण्य पधारे थे, जहां हलेष्ठी यज्ञ की सिद्धि प्राप्त हुई और मां जानकी का प्राकट्य हुआ।

पद्मपुराण में कहा गया है कि जानकी नाम तो जनक जी के वंशानुगत जनक शब्द से रखा गया, लेकिन शास्त्रानुसार उनका नाम ‘सीता’ होना अपेक्षित है, क्योंकि सीत (फार का नुकीला अग्र भाग) और सीता (सिराउर) के संयोग से उत्पत्ति होने के कारण सीता नाम की पुष्टि होती है। जन्म के बाद लौकिक एवं वैदिक रीतियों से वर्षा से बचाने के लिए ‘मड़ई’ (मढ़ी) में मां सीता जी रखी गईं तथा उस स्थान का नाम सीतामढ़ी हुआ।

पुण्डरीक क्षेत्र अर्थात पुनौराधाम, जहां मां जानकी जी का प्राकट्य हुआ, वहां कई पुरातन स्मृतियां हैं, जिनका वर्णन और वहां की भाषाओं का उल्लेख रामायण, पुराणों, संहिताओं एवं इतिहास के पृष्ठों में है। मां सीता के प्राकट्य स्थल पुनौराधाम का धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकास वैसा नहीं हुआ जैसा श्रीराम जी की जन्मस्थली अयोध्या का हुआ है। पुनौराधाम को धार्मिक पर्यटनस्थल बनाने की दृष्टि से जिस तेजी से काम होना चाहिए था, वह अभी भी नहीं हो रहा है। पहले लोगों के मन में यह था कि मां जानकी का प्राकट्य स्थल जनकपुर है जबकि जनकपुर मां सीता का ननिहाल और विवाहस्थल है। जनकपुर में श्री रामजी ने शिवजी का धनुष तोड़ा था। लेकिन धीरे-धीरे ‘मां जानकी का प्राकट्य स्थल पुनौराधाम ही है’ की पुष्टि शास्त्रों के साथ-साथ अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों से भी स्वतः सिद्ध हो गई। आज इस बात की महती आवश्यकता है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों मां सीता प्राकट्य स्थल को गोद लें और उसे अयोध्या की तरह भव्यता प्रदान करने की दिशा में कारगर कदम उठाएं।

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