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ब्लॉग: दोस्त खोने का गम...

By विजय दर्डा | Published: July 11, 2022 3:17 PM

शिंजो आबे का जाना भारत के एक खास हितैषी का अवसान तो है ही, मेरे लिए यह निजी रूप से भी अत्यंत गहरा जख्म है। मैंने अपना एक सच्च दोस्त खो दिया है।

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इस वक्त मेरा दिल बैठा जा रहा है। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मौत ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया है। मेरे मन में बार-बार यह सवाल पैदा हो रहा है कि शिंजो जैसे शख्स से किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है कि उन्हें गोली मार दे? शांतिप्रिय और संवेदनाओं से परिपूर्ण जापान में ऐसा कभी नहीं हुआ।

हत्या के कारणों का खुलासा अभी होना बाकी है लेकिन पता नहीं क्यों मुझे इस हत्याकांड के पीछे सुदूर बैठी किसी सत्ता के षड्यंत्र की आशंका होती है क्योंकि शिंजो जो भूमिका निभा रहे थे उससे दमनकारी और अधिनायकवादी प्रवृत्ति को सख्त चुनौती मिल रही थी।

शिंजो आबे का जाना भारत के एक खास हितैषी का अवसान तो है ही, मेरे लिए यह निजी रूप से भी अत्यंत गहरा जख्म है। मैंने अपना एक सच्च दोस्त खो दिया है। उनके साथ गुजारे हर पल की याद मुझे आ रही है। टोक्यो में उनसे मेरी पहली मुलाकात कराई थी भारत-जापान संबंधों के लिए कार्यरत इंडिया फाउंडेशन के विभव कांत उपाध्याय ने। 

मैं भारत-जापान दोस्ती के विचारों का समर्थक रहा हूं। शिंजो आबे से उस मुलाकात में ही कुछ ऐसी केमिस्ट्री बैठी कि शिंजो के साथ दोस्ती हो गई। सितंबर 2006 में अचानक मुझे उनके प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण समारोह की पूर्व संध्या पर आयोजित डिनर का निमंत्रण प्राप्त हुआ। मुझे याद है कि उन्होंने मेरे साथ काफी वक्त गुजारा और वे भारतीय मीडिया तथा राजनीति को समझने की गंभीर कोशिश कर रहे थे।

मुझे याद है वो वक्त जब परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर प्रतिबंध लगे थे। उस वक्त अटलजी के निर्देश पर भारत से एक प्रतिनिधिमंडल जापान गया था। उसमें मैं भी शामिल था। हम वहां की संसद डायट के नाराज युवा सांसदों को यह समझाने में सफल रहे कि भारत के लिए शांतिपूर्ण परमाणु शक्ति क्यों आवश्यक है। मुझे खुशी है कि भारत-जापान संबंधों में कुछ तिनके जोड़ने का सौभाग्य मुझे भी मिला।

प्रधानमंत्री के रूप में शिंजो आबे जब भारत आए तो इंडिया फाउंडेशन की ओर से कार्यक्रम आयोजित किया गया था। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी, जॉर्ज फर्नांडीस, वसुंधरा राजे, सीतराम येचुरी और मैं मंच पर मौजूद थे। जब भी हमारी मुलाकात होती थी तब इस बात पर ज्यादा जोर होता था कि भारत और जापान के संबंधों को किस तरह मधुरतम स्थिति में रखा जाए। उनका जाना वाकई हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है।

टॅग्स :शिंजो अबेजापानभारत
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