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Abortion in India: महिलाओं के पक्ष में सर्वोच्च अदालत का ऐतिहासिक फैसला

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 01, 2022 3:53 PM

अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित व कानूनी रूप से गर्भपात कराने का जो समान अधिकार दिया गया है, उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मौतों पर काफी हद तक अंकुश लग सकेगा।

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ठळक मुद्देसभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति दी गईSC ने कहा- गर्भपात कानून के तहत विवाहित या अविवाहित महिला के बीच पक्षपात करना ‘प्राकृतिक नहींकोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय से असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मौतों पर काफी हद तक अंकुश लग सकेगा

सभी महिलाओं को सुरक्षित कानूनी गर्भपात का हक देकर सुप्रीम कोर्ट ने असुरक्षित गर्भपात की वजह से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आने की उम्मीद बंधाई है। दरअसल मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत अभी तक कई अलग-अलग तरह के प्रावधान रहे हैं। इसके अंतर्गत जहां विवाहित महिला को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति दी गई है।

वहीं बलात्कार की पीड़िता, दिव्यांग और नाबालिग लड़की को विशेष श्रेणी में गर्भपात कराने की अनुमति दी जाती है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बिल्कुल सही कहा कि प्रजनन स्वायत्तता के नियम विवाहित या अविवाहित दोनों महिलाओं को समान अधिकार देते हैं और गर्भपात कानून के तहत विवाहित या अविवाहित महिला के बीच पक्षपात करना ‘प्राकृतिक नहीं है व संवैधानिक रूप से भी सही नहीं है।’ 

पीठ ने एमटीपी अधिनियम की व्याख्या पर फैसला सुनाते हुए कहा कि चाहे महिला विवाहित हो या अविवाहित, वह गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक गर्भपात करा सकती है। दुनिया के 67 देशों में महिलाएं किसी भी कारण से गर्भपात करा सकती हैं, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, डेनमार्क, कनाडा, न्यूजीलैंड जैसे देश शामिल हैं। 

संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में हर दिन असुरक्षित गर्भपात से जुड़े कारणों की वजह से लगभग 8 महिलाएं मौत का शिकार होती हैं तथा असुरक्षित गर्भपात भारत में मातृ मृत्यु दर की तीसरी बड़ी वजह है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2011 के बीच भारत में 67 फीसदी गर्भपात को असुरक्षित माना गया था। 

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 का डाटा दिखाता है कि भारत में जितना गर्भपात होता है उसका लगभग 27 प्रतिशत घर में ही होता है। यानी महिलाएं/लड़कियां गर्भपात के लिए अस्पताल नहीं जाती हैं बल्कि इस मेडिकल प्रक्रिया को खुद ही कर लेती हैं। शहरों में 21.6 फीसदी गर्भपात महिलाएं स्वयं करा लेती हैं जबकि ग्रामीण महिलाओं के लिए ये आंकड़ा 30 प्रतिशत है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के ही आंकड़ों के अनुसार भारत में जितनी भी महिलाओं ने गर्भपात करवाया उनमें से लगभग आधी महिलाओं ने ये विकल्प इसलिए चुना क्योंकि ये अनचाहा/अवांछित गर्भ था। 

उल्लेखनीय यह भी है कि असुरक्षित गर्भपातों की दर गरीब व हाशिये पर पड़ी जनसंख्या में अधिक है, क्योंकि तथाकथित सामाजिक कलंक से बचने के लिए महिलाएं खुलकर सुरक्षित गर्भपात कराने की बजाय गुपचुप तरीकों से गर्भपात कराने को प्राथमिकता देती हैं, ताकि किसी को कानों-कान खबर न लगे। 

अवैध गर्भपातों की वजह से महिलाओं में दीर्घकालीन स्वास्थ्य जटिलताएं भी उत्पन्न हो जाती हैं जिनसे वे जिंदगी भर जूझती रहती हैं। 1971 में जब एमटीपी एक्ट बना था तब उसका एक मुख्य उद्देश्य असुरक्षित गर्भपातों पर अंकुश लगाना भी था। 

अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार विवाहित या अविवाहित सभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित व कानूनी रूप से गर्भपात कराने का जो समान अधिकार दिया गया है, उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मौतों पर काफी हद तक अंकुश लग सकेगा।

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