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Yes Bank Crisis: एक बैंक के डूबने का किस्सा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 07, 2020 5:56 PM

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 कुछ साल पहले जब भी देश के चर्चित निजी बैंकों की बात होती थी तो उसमें येस बैंक का भी जरूर आता  था. करीब 15 साल पहले शुरू हुआ येस बैंक आज बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है.  रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंक के ग्राहकों के लिए 50000 रुपए निकासी की सीमा तय कर दी. येस बैंक की तबाही की कहानी कोई आज की नहीं है. आइए जानते हैं कैसे येस बैंक इस हालत तक पहुंच गया. -कुछ साल पहले तक प्राइवेट सेक्टर के सबसे भरोसेमंद बैंकों में शुमार रहा येस बैंक का सफर बेहद दिलचस्प रहा है. लेकिन अब बैंक का संकट इस हद तक पहुंच गया कि बैंक में जिन निवेशकों ने पैसे लगाए उनके 90% से अधिक तक पैसे डूब गए. -ये बात है साल 2004 की बात है,  मुंबई में एक निजी बैंक का नाम अचानक चर्चा में आया . लोगों का ध्यान खीचने का कारण था इस निजी बैंक के नाम 'येस' . यह पहली बार था जब किसी बैंक के नाम में लोगों की दिलचस्पी देखने को मिली. इस बैंक की शुरु आत वर्ष-2004 में राणा कपूर ने अपने रिश्तेदार अशोक राणा कपूर के साथ मिलकर की थी. कुछ ही सालों में येस बैंक एक जाना पहचाना नाम बन गया. -जून 2005 में बैंक का इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी आईपीओ आम लोगों के लिए लांच हुआ. नवंबर 2005 में येस बैंक के फाउंडर राणा कपूर को इन्टरप्रन्योर ऑफ द ईयर अवार्ड मिला. -मार्च 2006 में बैंक ने अपने पहले वित्त वर्ष के नतीजों का ऐलान किया. बैंक का प्रॉफिट 55.3 करोड़ रुपए जबकि रिटर्न ऑफ एसेट  2% रहा. -26 नवंबर 2008 को मुंबई आतंकी हमले में बैंक के प्रमोटर अशोक कपूर की मौत हो गई. अशोक कपूर की मौत 26/11 के मुंबई हमले में हो गई. इसके बाद बैंक के मालिकाना हक को लेकर अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच कलह शुरू हो गया. ये आपसी पारिवारिक कलह बैंक को ले डूबी. हर कोई अपने-अपनों का हक लेने के लिए पैंतरे चलता रहा और बैंक घाटे में जाता रहा. अब ये वक्त आ गया जब बैंक दिवालिया हो चुका है. पारिवारिक कलह और शेयर्स को बेचने के बाद येस बैंक का कपूर परिवार संकटों से घिर गया. दिसंबर 2009 में येस बैंक को 30000 करोड़ रुपए के बैलेंसशीट के साथ सबसे तेज ग्रोथ का अवॉर्ड मिला. जून 2013 में बैंक ने देश के अलग-अलग राज्यों में 500 से अधिक शखाओं का विस्तार करने का फैसला लिया. वर्ष 2017 में बैंक ने क्यूआईपी के जरिये 4906.68 करोड़ रुपए जुटाए. यह किसी निजी क्षेत्र द्वारा जुटाई गई सबसे अधिक रकम है. -वर्ष 2018 में येस बैंक को सिक्योरिटीज बिजनेस के कस्टोडियन के लिए सेबी से लाइसेंस मिला. इसके अलावा सेबी ने म्युचुअल फंड बिजनेस के लिए भी मंजूरी दी. और यहां से शुरू हुई बर्बादी की कहानी... बैंक का गोल्डेन टाइम लंबे समय तक जारी नहीं रह सका. बीते कुछ वर्षों में येस बैंक को एक के बाद एक झटके लगे हैं. इसमें सबसे बड़ा झटका रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी आरबीआई की ओर से दिया गया. आरबीआई को लगा कि येस बैंक अपने डूबे हुए कर्ज  और बैलेंसशीट में कुछ गड़बड़ी कर रहा है. आरोप के मुताबिक आरबीआई को येस बैंक सही-सही जानकारी नहीं दे रहा था. इसका नतीजा ये हुआ कि आरबीआई ने येस बैंक के चेयरमैन राणा कपूर को पद से जबरन हटा दिया. बैंक के इतिहास में पहली बार था जब किसी चेयरमैन को इस तरह से चेयरमैन पद से हटाया गया. इसके साथ ही आरबीआई ने येस बैंक पर 1 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाते हुए ये आरोप लगाया कि बैंक मैसेजिंग सॉफ्टवेयर स्विफ्ट के नियमों का पालन नहीं कर रहा. बता दें, इस मैसेजिंग सॉफ्टवेयर 'स्विफ्ट' का इस्तेमाल बैंक लेनदेन के लिए करते हैं. ये येस बैंक के दिवालिया होने का एक सबसे बड़ा कारण बना है. बैंक ने लेनदेन की नीतियों के अलग जाकर काम किया. बैंक ने उन कॉर्पोरेट ग्राहकों को लोन दिया जो घाटे में थे. जब कंपनियां दिवालिया होने लगी तब बैंक का पैसा डूब गया और नतीजन येस बैंक कंगाल हो गया.   
टॅग्स :यस बैंकराणा कपूरभारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई)भारतीय स्टेट बैंकप्रवर्तन निदेशालयबैंक जालसाजी
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