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Motilal Vora Passes Away| Motilal Vora Profile| Motilal Vora Political Career| Congress

By गुणातीत ओझा | Published: December 22, 2020 12:03 AM2020-12-22T00:03:05+5:302020-12-22T00:04:24+5:30

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का 93 साल की उम्र में दिल्ली के एस्कोर्ट अस्पताल में आज निधन हो गया। कल यानि 20 दिसंबर को ही उन्होंने अपना 93वां जन्मदिन मनाया था। मोतीलाल वोरा ने कांग्रेस में कई अहम भूमिकाओं में अपनी सेवा दी।

मोतीलाल वोरा
'कल जन्मदिन आज मौत'
ऐसा रहा पार्षद से CM और राज्यपाल तक का सफर

कांग्रेस (Congress) के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा (Motilal Vora) का 93 साल की उम्र में दिल्ली (Delhi) के एस्कोर्ट अस्पताल में आज निधन हो गया। कल यानि 20 दिसंबर को ही उन्होंने अपना 93वां जन्मदिन मनाया था। मोतीलाल वोरा ने कांग्रेस में कई अहम भूमिकाओं में अपनी सेवा दी। वे पहली बार 13 मार्च 1985 को अविभाजित मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद 25 जनवरी 1989 से 9 दिसंबर 1989 तक भी उन्होंने दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली। वे करीब 18 साल तक कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष भी रहे। कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार माने जाने वाले मोतीलाल वोरा ने भारतीय राजनीति(Indian Politics) में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी।  

मोतीलाल वोरा का जन्म 20 दिसंबर 1928 को राजस्थान के नागौर में हुआ था। वोरा की परवरिश और पढ़ाई रायपुर और कोलकाता में हुई। पढ़ाई के बाद वे नवभारत टाइम्स में पत्रकार बन गए। पत्रकार रहते ही मोतीलाल वोरा राजनीति में एक्टिव हुए प्रजा समाजवादी पार्टी से जुड़ गए। 1968 में उन्होंने पहली बार दुर्ग से पार्षदी का चुनाव लड़ा जिसमें उन्हें जीत मिली। बस वहीं से मोतीलाल वोरा के राजनीतिक सफर की शुरुआत हो गयी। प्रजा समाजवादी पार्टी से पार्षदी जीतने वाले मोतीलाल वोरा की मुलाकात बाद में कांग्रेस नेता किशोरीलाल शुक्ल से हुई, जिसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। 1972 में मोतीलाल वोरा कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीतकर विधायक बने। 1977 और 1980 में वोरा विधायकी का चुनाव जीते। जिसके बाद उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 13 मार्च 1985 को पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1988 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद राज्यसभा के सदस्य चुने गए जहां उन्हें कांग्रेस की केंद्र सरकार में परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया। 1993 में उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। राज्यपाल रहने के बाद 1998 में वे फिर लोकसभा का चुनाव जीते। बाद में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। जहां पिछले साल वोरा ने उम्र का हवाला देते हुए कोषाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया था।

मोतीलाल वोरा कांग्रेस में गांधी परिवार के खास माने जाते थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और वर्तमान में सोनिया गांधी तक से उनके अच्छे संबंध थे। यही वजह थी की जब उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ा तो उन्हें राजीव गांधी ने केंद्रीय मंत्री बनाया। खास बात यह है कि न केवल गांधी परिवार बल्कि कांग्रेस के अन्य दिग्गज नेताओं से भी उनके संपर्क हमेशा अच्छे रहे। नरसिम्हा राव की सरकार में भी मोतीलाल वोरा की खूब चलती थी। वे मंत्री तो बने ही थे जबकि मध्य प्रदेश की सियासत में भी उनकी अच्छी पकड़ थी।

जब सन 2000 में छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई तो मोतीलाल वोरा छत्तीसगढ़ की राजनीति में जम गए। छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए भी उनके नाम की खूब चर्चा हुई थी। लेकिन तब कांग्रेस ने अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन मोतीलाल वोरा को पार्टी ने छत्तीसगढ़ से राज्यसभा भेजकर उनका कद भी बरकरार रखा। मोतीलाल वोरा धीरे-धीरे दिल्ली की राजनीति में जम गए और यहीं पर रहे। फिलहाल छत्तीसगढ़ में उनकी राजनीतिक विरासत को उनके बेटे अरुण वोरा संभाल रहे हैं। मोतीलाल वोरा की सौम्यता के चलते विरोधियों से भी उनके अच्छे संपर्क माने जाते थे।

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