गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र का प्रमुख त्योहार है। इस पर्व को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानि पहले दिन मनाने का रिवाज है। मराठी त्योहार गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) हिन्दू नववर्ष के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हिन्दू नववर्ष जिसे नवसंवत्सर भी कहते हैं, कल यानि 25 मार्च से शुरू हो रहा है। बता दें कि कल गुड़ी पड़वा, हिन्दू नववर्ष के साथ ही चैत्र नवरात्रि भी शुरू हो रही है।
महाराष्ट्र के अलावा इन राज्यों में मनाया जाता है गुड़ी पड़वा
गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है। कर्नाटक में यह पर्व युगाड़ी नाम से जाना जाता है। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी नाम से मनाते हैं। कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं। मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहलाता है।
गुड़ी पड़वा का शुभ मुहूर्त
इस बार गुड़ी पड़वा बुधवार (25 मार्च) को पड़ रहा है। इस पर्व को मनाने के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं है। सारे दिन गुड़ी पड़वा का उत्सव मनाया जा सकता है।
गुड़ी पड़वा मनाने को लेकर धार्मिक मान्यताएं हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। इसे सतयुग का आरंभ भी माना जाता है। एक मान्यता के अनुसार 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे तो इसके उपलक्ष्य में गुड़ी यानि पताका फहराया जाता है।
गुड़ी पड़वा को लेकर ऐतिहासिक मान्यताएं
कहा जाता है जब राजा शालिवाहन ने शकों को हराया और पैठण वापस आए तो लोगों ने पताका लहराया। गुड़ी यानि पताका को जीत का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा महाराष्ट्र में लोग छत्रपति शिवाजी की विजय के उपलक्ष्य में भी गुड़ी फहराते हैं।
क्या होता है गुड़ी पड़वा के दिन
महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक में गुड़ी पड़वा प्रमुख त्योहार है। गुड़ी पड़वा के मौके पर घर के बाहर एक बांस या लकड़ी पर जरी को कोरी साड़ी लपेटकर उसके ऊपर तांबे का लोटा रखा रखा जाता है। आम तौर पर यह साड़ी केसरिया रंग का और रेशम का होता है। फिर गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम की डंठल और लाल फूलों से सजाया जाता है। गुड़ी को किसी ऊंचे स्थान जैसे कि घर की छत पर लगाया जाता है, ताकि उसे दूर से भी देखा जा सके। कई लोग इसे घर के मुख्य दरवाजे या खिड़कियों पर भी लगाते हैं।
गुड़ी पड़वा के अनुष्ठान कब करें
-नववर्ष फाल श्रवण (नव वर्ष की कुंडली सुनकर)-तेल अभ्यंग (तेल स्नान)-निम्बा पत्र प्रशान (नीम की पत्तियां खाकर)-ध्वाजारोपन (ध्वजारोहण)-नवरात्रम्भ (चैत्र नवरात्रि की शुरुआत)-घटस्थापना (नवरात्रि पूजा के लिए कलश / पवित्र शूल की स्थापना)