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World Nurses Day 2020: कोरोना संकट के बीच नर्सों की कहानी, एक शहर में रहते हुए भी बच्चों से एक महीने से नहीं हो सकी है मुलाकात

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 12, 2020 7:22 AM

कोरोना के कारण मां को क्वारंटाइन करने से बीते एक माह से मां-बेटी की मुलाकात नहीं हो सकी. दो बार मिलना हुआ, लेकिन दूर से ही. कोरोना ने हम मां-बेटी को और मजबूत बनाया है, ऐसा सूचिता ने लोस से बोलते हुए कहा.

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ठळक मुद्देमरीजों को दवा देना, उनका ध्यान रखना, उन्हें मानसिक मजबूती प्रदान करने का काम परिचारिकाएं करती हैं. इन सभी सिस्टर्स को विश्व परिचारिका दिन निमित्त सलाम!

अकोला: एक बार इंसान को बीमारी जकड़ ले तो खून के रिश्ते भी ढीले पड़ जाते हैं. नजदीकी लोग दूर हो जाते हैं. ऐस वक्त में खून का रिश्ता नहीं होने के बावजूद मरीजों को दवा देना, उनका ध्यान रखना, उन्हें मानसिक मजबूती प्रदान करने का काम परिचारिकाएं करती हैं. इन सभी सिस्टर्स को विश्व परिचारिका दिन निमित्त सलाम!

मम्मी, बाहर कोरोना है, तुम बाहर मत जाओ, तुम लोगों को दवा देते समय मास्क पहना करो, सैनिटाइजर का उपयोग किया करो, तुम जल्दी घर आ जाओ, तुम्हारे बीना घर सूना लगता है, ऐसे छोटे-छोटे शब्दों में अपनी भावनाएं व्यक्त करती है सर्वोपचार अस्पताल में कार्यरत परिचारिका सूचिता सुधाकर टेमधरे की तीन वर्षी बेटी इशिता.

कोरोना के कारण मां को क्वारंटाइन करने से बीते एक माह से मां-बेटी की मुलाकात नहीं हो सकी. दो बार मिलना हुआ, लेकिन दूर से ही. कोरोना ने हम मां-बेटी को और मजबूत बनाया है, ऐसा सूचिता ने लोस से बोलते हुए कहा. फिलहाल सूचिता अपने परिवार से दूर रहकर कोरोना के साथ लड़ रही है. बीते दो माह से जिले में कोरोना ने हड़कम्प मचा रखा है. इस स्थिति में मरीजों की सेवा के लिए परिचारिकाओं को तैयार रहना पड़ता है.

सर्वोपचार अस्पताल की अधिपरिचारिकाएं तथा अन्य परिचारिकाएं परिवार के साथ रहने की बजाए घर से दूर छात्रावास में रह रही हैं. आमतौर पर अपनी मां के साथ रहने वाले बच्चों को उनके बगैर रहना पड़ रहा है. बीते एक माह से वे अपने परिवार को समय नहीं दे पा रही हैं. पिछले एक माह के दौरान परिचारिकाओं का केवल एक या दो बार परिवार से मिलना हुआ है, वह भी दूर से ही.

कुछ परिचारिकाएं घर पर रहती हैं, वे भी अपने बच्चों को बहला-फुसलाकर, अलग-अलग चीजों का लालच देखकर घर से बाहर निकलती हैं. लेकिन घर से बाहर निकलने के बाद ड्यूटी पर पहुंचने तक उन बच्चों की छबी उनके सामने से नहीं हटती. किंतु कोरोना की वजह से शहर में मरीजों की सेवा करने वाले हाथों की जरूरत है. इसी कारण अपने परिवार, बच्चों से उन्हें दूर रहना पड़ रहा है.

आने वाली हर चुनौती का सामना करना, अन्य की सुरक्षा के साथ अपना ध्यान रखना, ऐसी अनेक चीजें कोरोना ने सीखा दी हैं, यह हकीकत बयां की सरकारी महाविद्यालय में कार्यरत परिचारिकाओं ने.

उसके पिता ने संभाली जिम्मेदारी

अकोला के सरकारी मेडिकल महाविद्यालय की अधिपरिचारिका सूचिता टेमधरे ने कहा कि कोरोना के मद्देनजर मरीजों की सेवा जारी है. ऐसे वक्त में परिवार से मिलने की बजाए मैंने खुद को क्वारंटाइन किया है. इसी कारण बीते 9 अप्रैल से मैं छात्रावास में रह रही हूं. बेटी से मिलना नहीं होता. मेरे बगैर वह नहीं रह पाती. किंतु कोरोना संकट के दौरान मेरी ड्यूटी भी अहम है. इसी कारण उसके पिता नहीं जिम्मेदारी संभाल ली है. वे ही माता ही भूमिका अदा कर रहे हैं. 

अकोला के सरकारी मेडिकल महाविद्यालय व सर्वोपचार की सहायक परिचारिका प्रियंका जाधव का कहना है कि सभी परिचारिकाएं अपनी ड्यूटी और कर्तव्य का पालन कर रही हैं, इसमें तनीक भी संदेह नहीं है. लेकिन मरीजों की सेवा करते समय अपना ध्यान रखें, अपने अलावा परिवार की देखभाल भी जरूरी है. समाज के साथ आप सभी पर परिवार की भी जिम्मेदारी है. 'नो वर्क नो मिस्टेक' यह हमारा धर्म नहीं. हम सेवा देते हैं, मरीज ठीक होकर घर जाता है. इसके सीवा दूसरी कोई संतुष्टि नहीं. अपने काम के साथ खुद का ध्यान रखें, सुरक्षा साधनों का उपयोग करें, मदद के लिए पुकारे, एक-दूसरे की सहायता करें, परिवार के लोगों का ख्याल रखें, कोरेाना के खिलाफ जारी लड़ाई हम जरूर जीतेंगे, यह हमारी अग्निपरीक्षा है. हम सचमूच सफल होंगे. यह मेरा विश्वास है.

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