नयी दिल्ली, 10 सितंबर सरकार पर करीब चार लाख हिंदू मंदिरों का नियंत्रण होने, जबकि मस्जिदों और गिरजाघरों पर नियंत्रण नहीं होने का आरोप लगाने वाली एक जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय से तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया गया है और केंद्र को धार्मिक तथा धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता बनाने का निर्देश देने की मांग की गयी है ताकि सभी धर्मों के अनुयायियों को समानता का अधिकार मिले।
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने जुलाई में जनहित याचिका दाखिल की थी जो बृहस्पतिवार को शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार के समक्ष तत्काल सूचीबद्ध किये जाने के लिए आई और अगले सप्ताह पीठ के समक्ष याचिका आ सकती है।
वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दाखिल याचिका में दलील दी गयी कि हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों को अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और देखरेख के लिए वैसे ही अधिकार मिलने चाहिए जैसे मुसलमानों, पारसियों और ईसाइयों को मिले हैं और सरकार इस अधिकार को कम नहीं कर सकती।
इसमें कहा गया, ‘‘दलील दी गयी है कि अनुच्छेद 26 के तहत संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार सभी समुदायों के लिए प्राकृतिक आधार है। लेकिन हिंदुओं, जैन, बौद्ध और सिखों को इस विशेषाधिकार से वंचित रखा गया है।’’
जनहित याचिका में कहा गया है कि देश में नौ लाख मंदिरों में से करीब चार लाख मंदिर सरकार के नियंत्रण में है। इसमें कहा गया कि किसी धार्मिक संस्था से जुड़ी एक भी मस्जिद या गिरजाघर ऐसा नहीं है जहां सरकार का कोई नियंत्रण या हस्तक्षेप देखा गया हो। जहां तक कर भुगतान करने या दान की बात है तो देश के गिरजाघरों और मस्जिदों की ओर से कर का भुगतान नहीं किया जाता।
याचिकाकर्ता ने कहा, ‘‘इन्हीं कारणों से हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1951 और राज्यों द्वारा समय-समय पर लागू किये गये ऐसे अन्य कानूनों में बदलाव की जरूरत है।
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