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योगी सरकार से कटा नीलकंठ तिवारी का पत्ता, बनारस से डॉ दयाशंकर मिश्रा 'दयालु' ने मारी बाजी

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 25, 2022 6:20 PM

बनारस में जितनी चर्चा योगी सरकार से नीलकंठ तिवारी की हुई छुट्टी को लेकर नहीं हैं, उससे ज्यादा चर्चा वाराणसी के डीएवी इंडर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर दयाशंकर मिश्रा 'दयालु' के मंत्री बनाये जाने की है। ऐसा इसलिए क्योंकि डॉक्टर दयाशंकर मिश्रा को भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनाव का टिकट भी नहीं दिया था।

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ठळक मुद्देनई योगी सरकार में वाराणसी शहर दक्षिणी से विधायक नीलकंठ तिवारी अपना मंत्री पद नहीं बचा सकेइस चुनाव में जीते के बावजूद शहर दक्षिणी से नीलकंठ तिवारी का प्रदर्शन भी बेहद खराब रहा 2014 की मोदी लहर में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले 'दयालु गुरु' बिना चुनाव लड़े मंत्री बने हैं

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार शासन की कमान संभाल ली है। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में योगी सरकार का भव्य शपथ ग्रहण समारोह हो रहा था तब सभी की निगाहें प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से बनने वाले मंत्रियों पर लगी हुई थीं।

योगी आदित्यनाथ के नये सिपहसालारों की सूचि में वाराणसी शहर दक्षिणी के विधायक नीलकंठ तिवारी का नाम गायब था। वहीं पिछली बार की तरह इस बार भी वाराणसी के दो विधायकों अनिल राजभर और रवींद्र जायसवाल अपनी मंत्री की कुर्सी बचाने में कामयाब रहे।

बनारस में जितनी चर्चा नीलकंठ तिवारी की हुई छुट्टी को लेकर नहीं हैं, उससे ज्यादा चर्चा वाराणसी के डीएवी इंडर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर दयाशंकर मिश्रा 'दयालु' के मंत्री बनाये जाने की है। ऐसा इसलिए क्योंकि डॉक्टर दयाशंकर मिश्रा को भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनाव का टिकट भी नहीं दिया था।

वहीं चुनाव पूर्व इस बार की चर्चा जरूर थी कि भाजपा आलाकमान नीलकंठ तिवारी की जगह दयालु गुरु को चुनावी मैदान में उतार सकती है लेकिन उस समय नीलकंठ तिवारी ने बाजी मार ली थी और दयालु गुरु मन मसोस कर रह गये थे।

अब जब योगी सरकार के नये मंत्रीमंडल का शपथग्रहण हुआ है तो शहर दक्षिणी से चुनाव जीते नीलकंठ तिवारी अपनी किस्मत को कोस रहे हैं।

माना जा रहा है कि विश्वनाथ कॉरिडोर से कई तरह के अन्य विवादित मामलों में नीलकंठ तिवारी का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा था। इसलिए अंत समय में योगी सरकार में शपथ लेने वाले विधायकों को लिस्ट से नीलकंठ तिवारी का नाम काट दिया गया।

वैसे इसके साथ में यह भी कहा जा रहा है कि काशी के कई संघ स्वयंसेवकों ने भी नीलकंठ तिवारी के विषय में प्रतिकूल टिप्पणी दी थी।इस कारण भी नीलकंठ तिवारी का नाम नये मंत्रीमंडल से बाहर कर दिया गया।

इसके अलावा इस चुनाव में शहर दक्षिणी से डॉक्टर नीलकंठ तिवारी का प्रदर्शन भी बेहद खराब रहा और उन्हें सपा प्रत्याशी कामेश्वर दीक्षित से कड़ी टक्कर मिली थी। वैसे मतगणना के दिन काफी उतार-चढ़ाव के बाद अंत में उन्होंने कामेश्वर को 10722 वोटों से रहा दिया था। नीलकंठ तिवारी को इस चुनाव में कुल 99416 वोट मिले थे। 

लेकिन चुनाव जीतकर भी नीलकंठ तिवारी अपना मंत्री पद नहीं बचा सके। जबकि साल 2014 के मोदी लहर में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले दयाशंकर मिश्र 'दयालु' बिना किसी सदन के सदस्य होते हुए भी मंत्री बन गए हैं। 

चुनाव आयोग के नियम के मुताबिक पूर्वांचल विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष दयालु गुरु को अब मंत्री बनने के 6 महीने के भीतर विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना होगा। 

वहीं अगर हम नई योगी सरकार की बात करें तो बनारस से शिवपुर विधानसभा क्षेत्र से दूसरी बार चुने गये विधायक अनिल राजभर और वाराणसी शहर उत्तरी से तीसरी बार चुने गये रविंद्र जायसवाल मंत्री पद पाने में कामयाब रहे हैं।

रवींद्र जायसवाल अपने व्यवहार और काम के कारण जनता के बीच खासे लोकप्रिय हैं वहीं अनिल राजभर ने सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को चुनावी पटखनी देते हुए राजभर वोटों को बीजेपी के पाले में सुरक्षित बनाये रखा।

इस कारण भाजाप शीर्ष नेतृत्व ने अनिल राजभर को मंत्री पद की कुर्सी बतौर इनाम में दी है। भाजपा को डर है कि गाजीपुर के जहूराबाद सीट से जीत दर्ज करने वाले सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कहीं साल 2024 के लोगकसभा चुनाव में राजभर वोटों की गोलबंदी न कर लें इसलिए भी बीजेपी अनिल राजभर को लगातार आगे रख रही है। 

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