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गंभीर रूप से बीमार 40 फीसदी मरीजों में कोविड का लंबे समय तक रहा असरः अध्ययन

By भाषा | Updated: July 7, 2021 22:52 IST

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नयी दिल्ली, सात जुलाई एक प्रमुख स्वास्थ्य देखभाल समूह ने

उसके अस्पतालों में कोरोना वायरस के गंभीर संक्रमण के कारण भर्ती हुए और बाद में बीमारी से उबर चुके लोगों पर एक अध्ययन किया है जिसमें सामने आया है कि करीब 40 फीसदी मरीजों में कोविड के लक्षण लंबे समय तक रहे।

अस्पताल के अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि यह अध्ययन टेलीफोन पर किया गया और इसमें करीब 1000 मरीजों को शामिल किया गया। मैक्स हेल्थकेयर समूह के एक प्रवक्ता ने बताया कि यह अध्ययन समूह के उत्तर भारत के तीन अस्पतालों में अप्रैल से अगस्त 2020 के बीच भर्ती उन मरीजों पर किया गया है जिनके संक्रमित होने की पुष्टि आरटी-पीसीआर से हुई थी।

अस्पताल के अधिकारियों ने बताया किया कि ‘उत्तर भारत के अस्पताल में भर्ती मरीजों में कोविड-19 के दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणाम: 12 महीनों का एक फॉलोअप अध्ययन’ डॉक्टर संदीप बुद्धिराज की अगुवाई में किया गया जो मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के समूह चिकित्सा निदेशक हैं।

अध्ययन के लिए अप्रैल-अगस्त 2020 के बीच तीन अस्पतालों में भर्ती सभी मरीजों को फोलो-अप के लिए दो बार फोन किया गया।

प्रवक्ता ने बताया कि मरीजों को पहली बार फोन सितंबर 2020 में (बीमार होने के चार से 16 हफ्ते बाद) किया गया और दूसरी बार उन लोगों को मार्च 2021 में फोन किया गया जिन्होंने पहली बार संपर्क करने पर लक्षण होने की जानकारी दी थी।

बुद्धिराजा ने बताया, “ हमने कुल मिलाकर पाया कि कोविड का लंबे समय तक असर करीब 40 फीसदी मामले में रहा। अध्ययन में शामिल 990 मरीजों में से, 31.8 प्रतिशत मरीजों में कोविड से उबरने के बाद के लक्षण तीन महीने से अधिक समय तक रहे और कुछ मरीजो में तो कुछ लक्षण नौ से 12 महीनों तक रहे। ”

उन्होंने कहा, “थकान सबसे अधिक 12.5 प्रतिशत मामलों में पाई गई। इसके बाद 9.3 फीसदी मरीजों की मांसपेशियों में दर्द पाया गया। जो लोग गंभीर रूप से बीमार हुए थे उनमें सांस लेने में परेशानी के मामले ज्यादा थे।”

डॉक्टर ने बताया कि थकान का उम्र से अहम संबंध है और 30 साल से कम उम्र के 44 में से सिर्फ एक मरीज (2.3 फीसदी) में थकान देखी गई। उन्होंने बताया कि 60 साल या इससे अधिक उम्र के समूह में 21.5 मामलों में थकान की शिकायत की गई।

समूह ने यह भी बताया कि अध्ययन में शामिल मरीजों में अवसाद, चिंता और निंद्रा विकार जैसे लक्षण भी देखे गए। साथ में सांस लेने में परेशानी भी थी। अध्ययन के मुताबिक, लक्षण की अवधि का संबंध अस्पताल में दाखिले के दौरान बीमारी की गंभीरता से था। अध्ययन को प्रकाशन के लिए एक जर्नल में जमा कराया गया है।

समूह ने दावा किया कि अध्ययन समूह से शरीर के किसी अंग को गंभीर नुकसान पहुंचने की कोई सूचना नहीं मिली।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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