नई दिल्लीः न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ ली है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को राष्ट्रपति भवन के गणतंत्र मंडप में शपथ दिलाई। सीजेआई गवई ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जगह ली है। 64 वर्षीय न्यायमूर्ति का कार्यकाल छह महीने से अधिक का होगा, जो 23 नवंबर को समाप्त होगा। न्यायमूर्ति गवई ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवा करने वाले दलित समुदाय से दूसरे व्यक्ति बनकर इतिहास रच दिया है। 2007 में न्यायमूर्ति केजी बालकृष्णन देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले पहले दलित थे।
Justice BR Gavai is India’s new CJI: बीआर गवई कौन हैं?
सीजेआई बीआर गवई का सफर प्रेरणादायक रहा है। वे महाराष्ट्र की झुग्गियों से निकलकर सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित पद पर आसीन हुए हैं। 24 नवंबर, 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई अमरावती के फ़्रीज़रपुरा इलाके की एक झुग्गी बस्ती में रहते थे। उनकी माँ कमल ताई गवई एक पूर्व स्कूल शिक्षिका हैं और पिता स्वर्गीय रामकृष्ण सूर्यभान (आरएस) गवई, अंबेडकरवादी संगठन, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे। न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था।
उनका कार्यकाल छह महीने से अधिक समय का होगा और वह 23 नवंबर तक पद पर रहेंगे। शपथ लेने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति गवई ने अपनी मां कमल ताई गवई के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय मंत्रियों और पूर्व न्यायाधीशों ने उन्हें बधाई दी।
2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था
शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ ही केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, अमित शाह, जे पी नड्डा और अर्जुन राम मेघवाल भी शामिल हुए। महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर, 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर, 2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था।
वह 12 नवंबर, 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने। न्यायमूर्ति गवई उच्चतम न्यायालय में कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। वह पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था।
4:1 के बहुमत से 1,000 और 500 रुपये के नोट अमान्य करने के केंद्र के 2016 के फैसले को मंजूरी दी थी
पांच न्यायाधीशों वाली एक अन्य संविधान पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति गवई भी शामिल थे, ने ‘राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड’ योजना को रद्द कर दिया था। वह पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का भी हिस्सा रहे, जिसने 4:1 के बहुमत से 1,000 और 500 रुपये के नोट अमान्य करने के केंद्र के 2016 के फैसले को मंजूरी दी थी।
न्यायमूर्ति गवई सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने 6:1 के बहुमत से माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से उनमें अधिक पिछड़ी हैं।
16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए थे
न्यायमूर्ति गवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश तय किए और कहा कि पूर्व में कारण बताओ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए और प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
वह वन, वन्यजीव और वृक्षों की सुरक्षा से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली पीठ के भी प्रमुख हैं। वह 16 मार्च, 1985 को बार में शामिल हुए थे और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील थे।
न्यायमूर्ति गवई को अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था। उन्हें 17 जनवरी, 2000 को नागपुर पीठ के लिए सरकारी अभियोजक नियुक्त किया गया था।
कड़ी मेहनत और गरीबों की सेवा ने मेरे बेटे को ये मुकाम दिलाया: न्यायमूर्ति गवई की मां
न्यायमूर्ति भूषण गवई की मां ने कड़ी मेहनत एवं दृढ़ संकल्प को अपने बेटे की सफलता का मूल आधार बताते हुए कहा कि उन्होंने गरीबों एवं जरूरतमंदों की सेवा करके इसे अर्जित किया है। न्यायमूर्ति भूषण गवई की मां कमलताई गवई ने भरोसा जताया कि उनका बेटा अपने नए पद के साथ पूरा न्याय करेगा।
मूलरूप से महाराष्ट्र के अमरावती जिला निवासी न्यायमूर्ति गवई के पिता दिवंगत आर. एस गवई बिहार, केरल और सिक्किम के पूर्व राज्यपाल रह चुके हैं और वह ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया’ के नेता भी थे। कमलताई गवई ने कहा, ‘‘एक मां के रूप में मैं चाहती थी और उम्मीद करती थी कि मेरे बच्चे अपने पिता के पदचिह्नों पर चलकर समाज की सेवा करें, लोगों को सम्मान दें और उनकी हैसियत की परवाह किए बिना उन्हें न्याय दें।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह सभी के लिए बहुत खुशी का क्षण है।
वह (न्यायमूर्ति भूषण गवई) बहुत छोटी उम्र से ही कठिन परिस्थितियों में और कई समस्याओं को पार करते हुए इतने ऊंचे पद पर पहुंचे हैं।’’ कमलताई ने बताया कि न्यायमूर्ति गवई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमरावती के एक साधारण स्थानीय स्कूल से की। उन्होंने कहा, ‘‘मैं उनकी सफलता और उनके इस शीर्ष पद पर पहुंचने का श्रेय उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प को दूंगी।’’
कमलताई ने बताया कि न्यायमूर्ति गवई वित्तीय मदद देकर और बीमारों के उपचार का खर्च उठाकर कई जरूरतमंदों की मदद करते हैं। कमलताई ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि उन्हें गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा का ईनाम मिला है।’’
न्यायमूर्ति गवई की छोटी बहन कीर्ति अर्जुन ने भी पत्रकारों से कहा कि बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले अमरावती के बेटे ने इतना बड़ा पद हासिल किया है जो उनके लिए बहुत खुशी की बात है। कीर्ति अर्जुन ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उनका भाई इस जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाएगा।