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जम्मू: अमरनाथ गुफा तक सड़क बनाने पर पैदा हुआ विवाद नहीं थमा अभी तक

By सुरेश एस डुग्गर | Published: November 08, 2023 4:38 PM

अमरनाथ गुफा तक सड़क बनाकर वाहनों को वहां तक ले जाने की चाबरों के उपरांत मचा हुआ बवाल अभी थमा नहीं है।

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ठळक मुद्देअमरनाथ गुफा तक सड़क बनाने को लेकर जम्मू में हो रहा है सियासी बवालकई पर्यावरणविद और एनजीओ चलाने वाले इस विवाद को लेकर हुए सक्रिय लोकाचार को ध्यान में रखे बिना धार्मिक स्थलों के लापरवाह शहरीकरण पर चिंता पैदा कर दी है

जम्मू: अमरनाथ गुफा तक सड़क बनाकर वाहनों को वहां तक ले जाने की चाबरों के उपरांत मचा हुआ बवाल अभी थमा नहीं है। इस मामले में अगर पहले भाजपा और पीडीपी के नेता आमने सामने थे तो अब नेकां भी इसमें कूद गई है। जबकि अब पर्यावरणविद भी इसके प्रति चिंता प्रकट करने लगे हैं।

याद रहे सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा पिछले सप्ताह की शुरुआत में दक्षिण कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में अमरनाथ गुफा तक वाहनों को ले जाने में कामयाब होने के बाद कश्मीर में राजनीतिक दलों ने बवाल काटना आरंभ किया है। अमरनाथ यात्रा ट्रैक की बहाली और सुधार में शामिल बीआरओ प्रोजेक्ट बीकन के अधिकारियों ने दो दिन पहले ही इसके प्रति घोषणा की थी और कहा था कि इस कार्य का पूरा होना अपने आपमें ऐतिहासिक था।

हालांकि, क्षेत्रीय राजनीतिक नेतृत्व सहित कई लोगों ने इसकी आलोचना करते हुए तर्क दिया कि यह निर्माण क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। इसमें अब कश्मीरके कई पर्यावरणविद और पर्यावरण बचाने की मुहिम छेड़ने वाले एनजीओ भी शामिल हो गए हैं।

इस मामले में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के युवा महासचिव मोहित भान ने कहा कि निर्माण ने पारिस्थितिक प्रभाव और हिंदू तीर्थयात्रा के लोकाचार को ध्यान में रखे बिना धार्मिक स्थलों के लापरवाह शहरीकरण पर चिंता पैदा कर दी है।

भान ने कहा, ‘यह इतिहास नहीं है। यह हिंदू धर्म और प्रकृति में इसकी आस्था के प्रति सबसे बड़ा अपराध है। हिंदू धर्म पूरी तरह से आध्यात्मिक प्रकृति में डूब जाने के बारे में है। यही कारण है कि हमारे तीर्थ हिमालय की गोद में हैं। धार्मिक तीर्थस्थानों को पिकनिक स्पाट में बदलना मात्र राजनीतिक लाभ निंदा के योग्य है। हमने जोशीमठ, केदारनाथ में भगवान का क्रोध देखा है और फिर भी हम कोई सबक नहीं सीख रहे हैं, इसके बजाय, हम कश्मीर में तबाही को आमंत्रित कर रहे हैं।’

इसके आगे भान ने कहा कि जोशीमठ और केदारनाथ में विनाशकारी घटनाओं का सावधानीपूर्ण संदर्भ इन प्रतिष्ठित स्थलों के नाजुक पारिस्थितिक संतुलन में हस्तक्षेप के संभावित खतरों को रेखांकित करता है। जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीआई (एम) के वरिष्ठ मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने भी अधिकारियों की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि उन्हें सभी हितधारकों को शामिल करना चाहिए था ताकि पर्यावरण संबंधी चिंताओं को सुरक्षित रखा जा सके।

उन्होंने एक बयान में कहा कि आवश्यक अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किए बिना ग्लेशियरों और महत्वपूर्ण वन क्षेत्रों के माध्यम से सड़क काटने से हिमालय क्षेत्र में पर्यावरणीय स्थिरता के लिए बड़ी चुनौतियां पैदा हुई हैं। देश भर से हजारों हिंदू तीर्थयात्री जुलाई और अगस्त के बीच कश्मीर के पहाड़ों में 14500 फीट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र गुफा तक की कठिन यात्रा करते हैं।

इस गुफा की खोज सबसे पहले 1850 के आसपास एक स्थानीय मुस्लिम चरवाहे ने की थी और तब से यह हिंदू भक्तों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक के रूप में उभरी है। वर्ष 2023 में 62 दिनों की लंबी यात्रा के लिए तीन लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने पंजीकरण कराया था।

नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) नेता उमर अब्दुल्ला ने अधिकारियों से निर्णय पर दोबारा विचार करने का आग्रह करते हुए तर्क दिया है कि निर्माण क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी के लिए हानिकारक हो सकता है। वे कहते थे कि हमारी अदालतों ने हरित पट्टियों को बचाने के लिए कई आदेश पारित किए हैं। डल झील के आसपास रहने वाले लोगों को अपने घरों की मरम्मत करने की अनुमति नहीं है और यहां तक कि पहलगाम, सोनमर्ग और गुलमर्ग जैसी जगहों पर भी निर्माण पर प्रतिबंध है।

टॅग्स :Jammuअमरनाथ यात्राamarnath yatra
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