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अरुणाचल प्रदेश में सेला सुरंग के निर्माण से बौखलाया चीन, पीएलए ने राज्य को तिब्बत का हिस्सा बताया, जानिए सुरंग का सामरिक महत्व

By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: March 18, 2024 11:19 AM

चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत के रूप में दावा करता है। अपने दावों को बल देने के लिए चीन नियमित रूप से भारतीय नेताओं की राज्य की यात्राओं पर आपत्ति जताता है। बीजिंग ने इस क्षेत्र का नाम भी जांगनान रखा है।

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ठळक मुद्देसेला सुरंग क्षेत्र में तेज और अधिक प्रभावी परिवहन मार्ग उपलब्ध कराएगीचीन के साथ लगती सीमा के समीप स्थित होने के कारण देश के लिए सामरिक महत्व की भी हैचीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत के रूप में दावा करता है

नई दिल्ली:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था जिसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताई थी।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राज्य यात्रा पर बीजिंग की आपत्ति को भारत ने खारिज कर दिया था लेकिन चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अब  चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा दोहराया है। चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश को "चीन के क्षेत्र का स्वाभाविक हिस्सा" कहा है।

चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल झांग ज़ियाओगांग ने कहा कि ज़िज़ांग (तिब्बत का चीनी नाम) का दक्षिणी भाग (अरुणाचल प्रदेश) चीन के क्षेत्र का एक अंतर्निहित हिस्सा है।  बीजिंग "तथाकथित अरुणाचल प्रदेश को कभी स्वीकार नहीं करता और दृढ़ता से विरोध करता है। चीनी रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर शुक्रवार को पोस्ट की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, झांग ने अरुणाचल प्रदेश में सेला सुरंग के माध्यम से भारत द्वारा अपनी सैन्य तैयारी बढ़ाने के जवाब में यह टिप्पणी की।

बता दें कि चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत के रूप में दावा करता है। अपने दावों को बल देने के लिए चीन  नियमित रूप से भारतीय नेताओं की राज्य की यात्राओं पर आपत्ति जताता है। बीजिंग ने इस क्षेत्र का नाम भी जांगनान रखा है। हालांकि भारत ने अरुणाचल प्रदेश पर चीन के क्षेत्रीय दावों को बार-बार खारिज किया है और कहा है कि राज्य देश का अभिन्न अंग है।

दरअसल 9 मार्च को, प्रधान मंत्री मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में 13,000 फीट की ऊंचाई पर बनी सेला सुरंग को राष्ट्र को समर्पित किया, जो रणनीतिक रूप से स्थित तवांग को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी और सीमांत क्षेत्र में सैनिकों की बेहतर आवाजाही सुनिश्चित करेगी। चीन इस निर्माण से बौखलाया हुआ है।

सेला सुरंग का सामरिक महत्व

सेला सुरंग क्षेत्र में न केवल तेज और अधिक प्रभावी परिवहन मार्ग उपलब्ध कराएगी बल्कि चीन के साथ लगती सीमा के समीप स्थित होने के कारण देश के लिए सामरिक महत्व की भी है। करीब 825 करोड़ रुपये की लागत से बनी सेला सुरंग इंजीनियरिंग का एक चमत्कार है। इस सुरंग का निर्माण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने 13,000 फुट की ऊंचाई पर किया है। यह अरुणाचल प्रदेश में बालीपारा-चारीद्वार-तवांग रोड पर सेला दर्रे से गुजरते हुए तवांग तक हर मौसम में संपर्क उपलब्ध कराएगी।

पहले, सेला दर्रे तक के मार्ग में केवल एकल-लेन संपर्क सुविधा थी जिसमें मोड़ जोखिम भरे थे, जिसके कारण भारी वाहन और कंटेनर ट्रक तवांग नहीं जा पाते थे। सुरंग का निर्माण कार्य कठिन इलाके और प्रतिकूल मौसम की चुनौतियों को पार करते हुए केवल पांच साल में पूरा किया गया। इसमें 1,003 मीटर और 1,595 मीटर लंबी दो सुरंगें हैं । दूसरी सुरंग में अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार मुख्य सुरंग के बगल में एक एस्केप ट्यूब (आपात स्थिति में बचकर निकलने का मार्ग) है। इस सुरंग से 80 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति के साथ प्रतिदिन 3,000 कार और 2,000 ट्रक निकल सकते हैं। इसका निर्माण ‘न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड’ का उपयोग करके किया गया है।

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