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सीजफायर के 19 साल बाद पहली बार एलओसी पर बजा नगाड़ा, सीमा से सटे गांव में गूंजी शहनाई

By सुरेश एस डुग्गर | Published: August 24, 2022 5:25 PM

जम्मू-कश्मीर में एलओसी पर दोनों मुल्कों की सेनाओं के बीच 19 साल से जारी सीजफायर के बीच यह पहला मौका था कि सीमा से सटे गांव में शादी के मौके पर जमकर जश्न मनाया गया।

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ठळक मुद्देजम्मू-कश्मीर में एलओसी से सटे सिलीकोट गांव में सालों बाद मना शादी का जश्न सिलीकोट गांव उस हाजीपीर एरिया में आता है, जहां के लोगों का जीवन गोलियों की आवाज में बीता हैसालों से इस गांव के लोग दुश्मन की गोलियों और बमों का शिकार होते रहे हैं

जम्मू: कश्मीर में एलओसी से सटे सिलीकोट गांव में पिछले दो दिनों से जश्न का माहौल है। माहौल भी धूम-धड़ाके वाला है और भला हो भी क्यों न। एलओसी पर दोनों मुल्कों और दोनों सेनाओं के बीच 19 साल से जारी सीजफायर के अरसे में यह पहला मौका था कि कोई शादी-ब्याह यूं धूम-धड़ाके के साथ मनाया गया हो।

सिलीकोट गांव उस हाजीपीर एरिया में आता है, जहां के बच्चों का बचपन सिर्फ उन गोलियों को ही गिनते हुए बीता है, जो सीमा के उस पार से बरसाई जाती हैं या फिर इस गांव के लोगों ने अपनों को गोलियों व बमों का शिकार होते हुए देखा है।

लेकिन इस परेशानियों के बीच गरकोट का मुद्दस्सर अहमद ख्वाजा खुशनसीब था, जो अपनी बारात लेकर इस गांव में आया था और अपने सपनों की रानी को ब्याह कर ले गया। यह ब्याह कल रात को संपन्न हुआ।

सिलीकोट गांव की भी दर्दभरी गाथा है। आधा गांव तारबंदी के कारण बंट गया तो पाक गोलों की बरसात के चलते कुछ साल पहले गांववासी लगमा और सलामाबाद में आकर बस गए लेकिन शादी की शहनाई इस गांव में पूरे 19 साल के बाद गूंजी।

अपनी शादी पर दुल्हे ने कहा कि बचपन से ही मैंने इस इलाके में गोलों और गोलियों की आवाज के बीच मौत का तांडव देखा है पर अब मैं जबकि अपनी शादी के लिए इस गांव में आया हूं तो खुशी के मारे मेरे आंसू नहीं थम रहे हैं।

इसके साथ ही दूल्हे ने कहा कि अगर आज दोनों मुल्कों के बीच सीजफायर न होता और दोनों तरफ की बंदूकें खामोश न होती तो शायद आज भी मैं इस खुशी से वंचित रह जाता और गांव वाले इतने धूम-धड़ाके के साथ मेरी शांदी नहीं संपन्न करवा पाते।

उसकी इस खुशी में भारतीय सेना भी शामिल हुई थी, जिसने तारबंदी में लगे उस गेट पर उसकी बारात का स्वागत किया था जो सिलीकोट को बांटती थी। हालांकि दूल्हे के पिता मुहम्मद्दीन ख्वाजा दुआ करते थे कि एलओसी पर यूं ही शांति का माहौल बना रहे ताकि वे सिलीकोट में अपनों से मिलने बेरोकटोक आते जाते रहें।

जबकि दुल्हन के अब्बाजान मुहम्मद अकरम चलकू ने कहा कि उन्हें तो याद ही नहीं है कि उनके गांव में ऐसी शादी का माहौल कब बना था क्योंकि एलओसी पर दोनों पक्षों में होने वाली गोलाबारी ने उनके गांव की खुशियां छीन ली थीं, जो सीजफायर के कारण पुनः वापस लौट आई हैं।

टॅग्स :एलओसीजम्मू कश्मीरइनडो पाक
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