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ब्लॉग: ईद-उल-फितर में है सामूहिकता का संदेश

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 11, 2024 11:11 AM

माहे-रमजानुल्मुबारक की इबादतों का दौर गुजरने के बाद इनाम स्वरूप आने वाली ईद-उल-फितर एक बार फिर सबको नसीब हो रही है। दुनियाभर में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।

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ठळक मुद्देमाहे-रमजानुल्मुबारक के बाद ईद-उल-फितर एक बार फिर सबको नसीब हो रही हैदुनियाभर में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा हैनमाजे-ईद के माध्यम से अरबों लोगों ने उस रब्बुल-इज्जत के दरबार में सज्दा-ए-शुक्र अदा किया

माहे-रमजानुल्मुबारक की इबादतों का दौर गुजरने के बाद इनाम स्वरूप आने वाली ईद-उल-फितर एक बार फिर सबको नसीब हो रही है। दुनियाभर में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। नमाजे-ईद के माध्यम से अरबों लोगों ने उस रब्बुल-इज्जत के दरबार में सज्दा-ए-शुक्र अदा किया और अल्लाह का अहसान माना कि उसने रमजानुल्मुबारक की पवित्र घड़ियों में इबादतें करने की ताकत अता (प्रदान) की।

वह रमजान जिसमें इबादतों का सवाब सत्तर गुना तक बढ़ा दिया जाता है। जिसमें इंसान रोजे के दौरान दिनभर भूखा-प्यासा रह कर रब्बे-करीम को मनाने में जुटा रहता है। इस दौरान वह शाम को इफ्तार के बाद तरावीह की विशेष नमाज अदा करता है और महज कुछ घंटों की नींद लेकर फिर सहरी (सुबह का खाना) खाने की सुन्नत अदा करने उठता है। इस दौरान उसे दुनिया के कामकाज भी निपटाने होते हैं क्योंकि पूरी तरह छुट्टी लेकर रोजे रखने को पसंद नहीं किया गया है।

ईद बड़ा त्यौहार है, सो इस दिन अल्लाह के समक्ष खास हाजिरी होती है। यह हाजिरी ईद-उल-फितर की मख्सूस नमाज के रूप में होती है। ईद की विशेष नमाज पढ़ कर उसका शुक्र अदा करना है, इसलिए कि उसने रोजे रखने के साथ नियमित दिनचर्या से हट कर पूरा महीना इबादतों में लगे रहने की तौफीक दी।

साल में दो ईदों के मौके पर विशेष नमाज इज्तिमाई यानी सामूहिक रूप से अदा की जाती है। इन नमाजों में छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब सब शामिल होते हैं। इन विशेष इबादतों व ईद की विशेष खुशियों में गरीब-गुर्बा को शामिल करने के लिए फितरे का प्रावधान रखा गया है।

फितरा वह राशि है, जो ईद की नमाज से पहले हर संपन्न व्यक्ति को अदा करनी जरूरी है। यह राशि समाज के कमजोर वर्ग को दी जाती है ताकि वे भी ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। इसी तरह रमजान के दौरान अमीर वर्ग द्वारा जकात निकाली जाती है। जकात की रकम भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दी जाती है।

दीगर इबादतों की तरह ही ईद-उल-फितर की नमाज भी सामूहिकता का संदेश देती है. जकात व फितरा पाने वाले यानी निर्धन तबके की दशा व दिशा सुधारने के लिए सार्थक काम किया जाए, जिससे आपसी मेलजोल, भाईचारे व सामूहिकता की भावनाओं का सकारात्मक उपयोग कर विकास की ऐसी धारा बहे, जिससे देश की प्रगति का पथ प्रशस्त हो। ऐसी प्रगति जिसमें ईद की खुशियों की तरह सबकी हिस्सेदारी हो।

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