Sankata Mata Vrat Katha: करें हर शुक्रवार मां संकटा की आराधना, होगी हर मनोकामना पूर्ण
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 19, 2024 06:33 AM2024-04-19T06:33:51+5:302024-04-19T06:38:14+5:30
मां अंबे का दिव्य स्वरूप लिए सकंटा माता जब अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं तो हमेशा उनपर और उनके परिवार पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं।
Sankata Mata Vrat Katha: मां अंबे का दिव्य स्वरूप लिए सकंटा माता जब अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं तो हमेशा उनपर और उनके परिवार पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं और उसके जीवन में आने वाली सभी प्रकार के संकटो को हर लेती हैं। आज हम उसी परम पावन मां संकटा की कथा के महत्व के बारे में बता रहे हैं।
संकटा माता की कथा एवं व्रत विधि- संकटा माता व्रत की पूजन सामग्री, व्रत विधि, पूजा विधि, संकटा माता की कथा एवं व्रत विधि इस प्रकार है।
पूजन सामग्री- संकटा माता की मूर्ति, लाल वस्त्र (एक चौकी पर बिछाने के लिये), धूप, दीप, घी, गुड़हल अथवा लाल फूल, पुष्पमाला, नैवेद्य (चावल का चूरा बनाकर, उसमें घी तथा शक्कर मिलायें और लड्डु रखें और ऋतुफल भी साथ रखें।
संकटा माता व्रत की विधि- प्रातःकाल नित्य-कर्म से निवृत्त होकर स्रान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा घर या पूजा स्थल को स्वच्छ कर लें। एक पटरे अथवा चोकी पर लाल वस्त्र बिछायें। उस पर संकटा माता की मूर्ति अथवा चित्र स्थापित करें। एक कलश में जल भर कर रखें। संकटा माता की पूजा करें, धूप-दीप दिखायें।
उसके बाद मां की आराधना करते हुए कहना चाहिए, "दस भुजाओं तथा तीन नेत्रों से सुशोभित गुणमयी, लाल वर्णवाली, शुभांगी, शीघ्रही संकटनाशिने, शुद्ध स्फटिक की माला, जलपूर्ण कलश, कमल, पुष्प, शंख, चक्र, गदा, त्रिशूल, डमरू तथा तलवार आदि से शोभायमान भगवती मां संकटा का मैं ध्यान करती हूं या करता हूं।"
माता संकटा की कथा
बहुत पुराने समय की बात है, एक बुढ़िया थी। उस बुढ़िया का एक बेटा था जिसका नाम था रामनाथ। रामनाथ धन कमाने के लिए परदेस चला गया। बुढ़िया अपने पुत्र के विदेश जाने के बाद बहुत चिंतित और दुखी रहने लगी क्योकि बुढ़िया की बहू उस प्राय नित्य खरी-खोटी सुनाया करती थी इसीलिए बुढिया प्रतिदिन चिंतित और उदास रहती थी और घर के बाहर स्थित कुंए पर बैठकर रोया करती थी।
बुढ़िया का यह कम रोज चलता रहा। एक दिन कुएं में से दिए की मां नामक एक स्त्री निकली और उसने बुढ़िया से पूछा बूढ़ी मां तुम इस तरह बैठकर क्यों रोती हो तुम्हें किस बात का कष्ट हे तुम मुझे अपना दुःख बताओं में तुम्हारे दुख दूर करने का प्रयत्न करूंगी।
बुढ़िया ने उस स्त्री को प्रश्न सुनकर कोई भी जवाब नहीं दिया और रोती ही रही। दिए की मां बार-बार एक प्रश्न दोहराई जा रही थी। वह बुढ़िया इस बात से झुंझला उठी और उस बुढ़िया ने दिए की मां से कहा तुम मुझे बार-बार ऐसा क्यों पूछ रही हो क्या सचमुच ही तुम मेरा दुःख जानकर उसे दूर कर दोगी।
बुढ़िया की बात सुनकर दिए की मां ने उत्तर दिया मैं अवश्य ही तुम्हारे कष्टों को दूर करने का प्रयत्न करूंगी।
बुढ़िया ने दिए की मां का ऐसा आश्वासन पाकर कहा "मेरा बेटा कमाने के लिए परदेस चला गया है। उसके पीछे मेरी बहू मुझे बहुत बुरा-भला कहती रहती है। यही मेरे दुख का कारण है। बुढ़िया की बात सुन कर दिए की मां ने कहा "यहां के वन में संकटा मांता रहती है। तुम अपना दुःख उनको सुना कर कष्ट से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना करो। बहुत दयालु हैं दुखियों के प्रति बहुत सहानुभूति रखती हैं।
मां निसंतानों को संतान, निर्धनों को धनवान, निर्बल को बलवान और अभागों को भाग्यवान बनाती हैं। उनकी कृपा से सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अचल हो जाता है, कुंवारी कन्याओं को अपने इच्छित वर की प्राप्ति होती है, रोगी अपनी रोग से मुक्त होते हैं, इसके अलावा जो भी मनोकामना हो वह सभी की पूरा करती हैं। इसमें कोई भी संदेह नहीं है।
मां से ऐसी विलक्षण बात को सुनकर बुढ़िया संकटा माता के पास गई और उनके चरणों पर गिरकर विलाप करने लगी। संकटा माता ने बड़े ही दयालु होकर बुढ़िया से पूछा "बुढ़िया तुम किस कारण इतने दुःख से बार-बार रोती रहती हो।"
बुढ़िया ने कहा “हे माता आप तो सब कुछ जानती हो आप से तो कुछ भी छिपा नहीं है। आप मेरे दुख को दूर करने का आश्वासन दे दो तो मैं अपनी दुःखद गाथा आपको सुनाऊं।" बुढ़िया की बात सुनकर संकटा माता ने कहा मुझे पहले अपना दुख बताओ दुखियों का दुःख दूर करना ही मेरा काम है।"
संकटा माता के ऐसा कहने पर बुढ़िया ने कहा 'हे माता मेरा लड़का परदेस चला गया है उसके घर में ना रहने से मेरी बहू मुझे बहुत तरह-तरह की सुनाया करती है। उसकी बातें मुझसे सहन नहीं होती। इसी कारण परेशान होकर मैं बार-बार रोया करती हूं।" बुढ़िया की इस दर्द भरी गाथा को सुनकर संकटा माता ने कहा 'तुम घर जाकर मेरे लिए मनौती मांग कर मेरी पूजा करो इससे तुम्हारा लड़का सकुशल घर वापस आ जाएगा मेरी पूजा के दिन सुहागन स्त्रियों को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराना ऐसा करने से तुम्हारा लड़का अवश्य ही तुम्हारे पास आ जाएगा।"
संकटा माता के कहे अनुसार उस बुढ़िया ने मनौती मांग कर पूजा की और सुहागिन स्त्रियों को भोजन के लिए आमंत्रित किया परंतु विचित्र बात यह हुई जब बुढ़िया ने स्त्रियों के लिए लड्डू बनाने शुरू किए तो उससे सात की जगह आठ लड्डू बन गए। इस बात से बुढ़िया बहुत ही असमंजस में पड़ गई ऐसा होने का क्या कारण है कहीं मुझसे गिनने में तो गलती नहीं हो रही अथवा अपने आप आठ लड्डू बन जाने का कोई अन्य कारण है।
उसी समय संकटा माता एक वृद्ध स्त्री के रूप में बुढ़िया के सामने प्रकट हुई और बुढ़िया से पूछा क्यों बुढ़िया आज तुम्हारे यहां कोई उत्सव है क्या यह सुनकर बुढ़िया बोली "आज मैंने संकटा माता की पूजा की है और सुहागिन स्त्रियों को भोजन के लिए आमंत्रित किया है किंतु जब गिन कर सात लड्डू बनाती हूं तो वे लड्डू अपने आप ही आठ बन जाते हैं मैं इसी बात से चिंता में पड़ गई हूं।"
बुढ़िया की बात सुनकर संकटा माता ने कहा "क्या तुमने किसी बुढ़िया को भी आमंत्रित किया है। संकटा माता ने कहा "मैं बुढ़िया हूं मुझे ही आमंत्रित कर लो" ऐसा सुनकर बुढ़िया ने उस बुढ़िया रूप धारी संकटा माता को भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया। इसके बाद बुढ़िया के घर पर सभी आमंत्रित सुहागने आ पहुंची और बुढ़िया ने सबको लड्डू तथा अन्य मिठाई आदि का भोजन कराया। इससे संकटा माता उस बुढ़िया पर बहुत प्रसन्न हुई और माता की कृपा से उस बुढ़िया के बेटे के मन में अपनी माता और पत्नी से मिलने की इच्छा उत्पन्न हुई और वह अपने घर के लिए चल दिया। कुछ दिन बीतने के बाद वह बुढ़िया संकटा माता की पूजा कर सुहागिनों को भोजन करा रही थी कि किसी ने उसके लड़के के आने की सूचना दी लेकिन बुढ़िया अपने काम में लगी रही उसने कहा लड़के को बैठने दो में सुहागिनों को जीमा कर अभी आती हूं।"
लड़के की बहू ने पति के आने का समाचार सुना उसी क्षण पति के स्वागत के लिए तुरंत घर की ओर चल दी। लड़के ने अपनी पत्नी को देखकर मन में सोचा "कि मेरी स्त्री मेरे प्रति कितना प्रेम रखती है जो खबर पाते ही मुझसे मिलने आ गई परंतु मेरी मां को मुझ पर जरा भी प्रेम नहीं है मेरे आने की खबर पाकर भी मेरी मां मुझसे मिलने नहीं आई।" जब पूजा का काम समाप्त हो गया सभी सुहागिने भोजन करके अपने-अपने घर को लौट गई। बुढ़िया अपने बेटे से मिलने के लिए उसके पास पहुंची। मां के आने पर लड़के ने पूछा "मां अब तक कहां थी।"
मां ने कहा - "बेटा मैंने तुम्हारी कुशलता के लिए संकटा माता से मनौती मांग रखी थी। उसी को पूरा करने के लिए सुहागने जीमा रही थी।" संकटा माता की कृपा से उसका मन अपनी पत्नी से हट गया उसने मां से कहा "मां या तो मैं यहां रहूंगा या यह रहेगी।"
बुढ़िया ने कहा - "बेटा तुम्हें मैंने बड़ी कठिन तपस्या से पाया है इसीलिए तुम्हें छोड़ नहीं सकती इसीलिए चाहे बहू का त्याग भी करना पड़े मैं कर सकती हूं।" अतः लड़के ने अपनी स्त्री को घर से निकाल दिया घर से निकल कर बाहर आई तो बहुत दुखी मन से एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगी। एक राजा उधर से जा रहा था उसे रोता देखकर राजा रुका और पूछा "तुम क्यों रो रही हो।" तब उसने अपनी सारी व्यथा राजा को कह सुनाई। राजा ने कहा "आज से तुम मेरी धर्म बहन हो इसीलिए रो मत में तुम्हारे सभी कष्टों को दूर करने का प्रयास करूंगा।
यह कहकर राजा उस स्त्री को अपने महल में लेकर आ गया। महल जाकर राजा ने रानी को स कथा सुनाई और रानी को कहा 'देखो आज से मेरी यह धर्म बहन है इसी महल में रहेगी और इसको किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए, "राजा के यहां पहुंचकर कुछ दिन बाद धर्म प्रेरित होकर रामनाथ की स्त्री ने भी संकटा माता का व्रत आरंभ कर दिया और संकटा माता के निमित्त सुहागिनों को भोजन कराने के लिए आमंत्रित किया उसने रानी को भी आमंत्रित किया जा सभी सुहागिने लड्डू खाने लगी तो रानी ने कहा "मुझे तो रबड़ी, मलाई ओर स्वादिष्ट मिष्ठान ही हजम होते हैं यह पत्थर समान लड्डू कैसे हजम होंगे।"
ऐसी अवहेलना पूर्ण बातें कहकर रानी ने लड्डू खाने से मना कर दिया। कुछ समय बाद संकटा माता की कृपा से रामनाथ अपनी पत्नी को खोजते हुए राजा के महल में आया वहां आकर अपनी पत्नी को संकटा माता की पूजा करते हुए देखा तो संकटा माता को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और अपनी पत्नी से कहा 'प्रिय मेरे अपराध क क्षमा करो।" पत्नी ने कहा- हे नाथ यह सब प्रारब्ध से ही होता है इसमें आपका कोई दोष नहीं है। आप मेर ईश्वररूप हो। मेरे ही अपराध को क्षमा करें।"
यह कहकर दोनों ने विधि पूर्वक संकटा माता व्रत कथा सुनी, संकटा माता की पूजा की। पूजा को समा कर सुहागिनों को जिमा कर दोनों पति पत्नी अपने घर की ओर प्रस्थान के लिए तैयार हुए। जाते समय रामनाथ की स्त्री ने राजा-रानी से कहा 'जब मुझ पर दुख पड़ा था तो आप लोगों ने धर्म बहन बनाकर म आश्रय दिया था। यदि आपको किसी भी तरह की सहायता की आवश्यकता हो तो मेरी कुटिया में निसंव चले आना।
ऐसा कहकर दोनों पति पत्नी अपने घर चले आए संकटा माता के प्रसाद का निरादर करने कारण रानी पर भारी संकट आ पड़ा। रामनाथ की बहू के जाते ही उनका राजपाट नष्ट हो गया ऐसी विप में पढ़कर रानी ने राजा से कहा 'ना मालूम वह तुम्हारी धर्म बढ्न कैसी थी उसके यहां से जाते ही सब कु नष्ट हो गया रानी ने राजा से कहा जाते समय वह कह गई थी कि जब मेरे पतु कष्ट पड़ा था तब में तुम्हा यहां आई और कदाचित तुम्हारे ऊपर कोई भी कष्ट पड़े तो तुम मेरे घर चले आना इसीलिए हम लोगों को उसके यहां ही चलना चाहिए।"
ऐसा विचार कर राजा रानी दोनों ही अपनी धर्म बहन के घर गए वहाँ जाकर रानी ने कहा "बहन तुम्हारे जाते ही ऐसा क्या हो गया कि हमारी सारी संपत्ति नष्ट हो गई हम लोग बहुत परेशानी में पड़े हुए हैं।" रानी की बात सुनकर रामनाथ की स्त्री ने कहा बहन में तो कुछ नहीं जानती मेरी तो सब कर्ताधर्ता संकटा माता है इसके अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं। इसीलिए मेरी राय में तुम रकिटा माता से अपनी भूलों के लिए क्षमा याचना करो उन्हीं की मान मनोती से तुम्हारा काम बन जाएगा। तुम्हारे सारे बिगड़े काम अपने आप सुधर जाएंगे।"
रामनाथ की स्ती की बातें सुनकर रानी ने श्रद्धा भक्ति से संकटा माता का व्रत किया और सुहागिनों को जीमा कर अनजाने में हुई अपनी सब भूलों के लिए संकटा माता से बार-बार क्षमा मांगी। रानी के ऐसा करते ही संकटा माता प्रसन्न हो गई और रात में रानी को स्वप्न में कहा कि तुम दोनों पति पत्नी अपने महल को चले जाओ वहां जाकर मेरी पूजा करना और मेरे निमित्त सुहागिनों को जिमाना ऐसा करने से तुम्हारा गया हुआ राजपाट तुम्हें दोबारा वापस मिल जाएगा।
सुबह होते ही रानी ने अपने स्वप्न की बात राजा को बताई रानी की बात सुनते ही राजा उसी क्षण रानी को साथ लेकर अपने महल की ओर चल दिया महल में आने के बाद राजा रानी ने संकटा माता के कहे अनुसार पूर्ण भक्ति भाव से माता संकटा की पूजा की ओर सुहागिनों को भोजन कराया ऐसा करने से उनका बिगड़ा हुआ सारा समय सुधर गया ओर सारा राजपाट उन्हें वापस मिल गया और वह पहले की तरह राज्य को भोगने लगे।