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आत्महत्या समस्या का समाधान नहीं, जिंदगी मुश्किलों से लड़कर जीने का नाम है

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 03, 2023 1:54 PM

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश-भर में युवाओं में आत्महत्या करने के मामले बढ़ रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा 18 से 30 साल के युवा शामिल हैं। दुनिया में हर साल करीब 8 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं।

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ठळक मुद्देराष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में हर 4 मिनट में एक इंसान आत्महत्या कर रहा हैआत्महत्या करने के मामले में सबसे ज्यादा 18 से 30 साल के युवा शामिल हैंवहीं दुनिया में हर साल करीब 8 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं

महाराष्ट्र में हर दिन औसत 13 युवा जान दे रहे हैं। शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरता होगा, जब समाचार पत्रों में किसी की आत्महत्या की खबर नहीं छपती है। यह एक खतरनाक संकेत है और इससे पता चलता है कि वर्तमान में लोग किस स्तर के मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश-भर में युवाओं में आत्महत्या करने के मामले बढ़ रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा 18 से 30 साल के युवा शामिल हैं।

देश में हर 4 मिनट में एक इंसान आत्महत्या कर रहा है। दुनिया में हर साल करीब 8 लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं। आत्महत्या दुनिया में मौत का दसवां सबसे बड़ा कारण है। चेतावनी के संकेतों को समझकर आत्मघाती प्रयास को रोका जा सकता है। युवावस्था अपने आप में एक तनावपूर्ण समय होता है। वे बड़े बदलावों से गुजर रहे होते हैं। शरीर में, विचारों में और भावनाओं में बदलावों का समय होता है।

तनाव, भ्रम, भय और संदेह की मजबूत भावनाएं किसी नौजवान की समस्या को सुलझाने और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। वह सफल होने के लिए दबाव भी महसूस कर सकता है। कुछ और भी कारण हैं, जो युवाओं को आत्महत्या के कदम उठाने के लिए उकसा सकते हैं। युवावस्था संक्रमण काल है। युवाओं को करियर, जॉब, रिश्ते, खुद की इच्छाएं और व्यक्तिगत समस्याओं से जूझना पड़ता है। अक्सर जब वह इस अवस्था में आता है तो बेरोजगारी का शिकार हो जाता है और भविष्य के प्रति अनिश्चितता बढ़ जाती है।

युवा उस वक्त तक अपरिपक्व ही रहता है। जिससे डिप्रेशन, एंग्जाइटी, सायकोसिस, पर्सनालिटी डिसऑर्डर की स्थिति बन जाती है। इन सब परिस्थितियों से वह जैसे-तैसे निकलता है तो परिवार की जरूरत से ज्यादा अपेक्षाओं के बोझ तले दब जाता है फिर अर्थहीन प्रतिस्पर्धा और सामाजिक व नैतिक मूल्यों में गिरावट, परिवार का टूटना, अकेलापन धीरे-धीरे आत्महत्या की तरफ प्रेरित करता है।

जानकार कहते हैं कि आत्महत्या के पीछे मानसिक, सामाजिक, साइकोलॉजिकल, बायोलॉजिकल और जेनेटिक कारण होते हैं। जिन परिवारों में पहले भी आत्महत्या हुई है, उनके बच्चों द्वारा यह रास्ता अपनाने की आशंका रहती है। कई युवा अपने मन की बात कह देते हैं जबकि कुछ अपनी मानसिक हलचल के बारे में कोई बात नहीं करते हैं।

हमेशा ऐसी बातों, व्यवहारों या योजनाओं को बहुत गंभीरता से लें, जिनसे व्यक्ति की खराब मन:स्थिति का बोध होता हो। ऐसे युवा या किशोर को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। अगर सही समय पर आत्महत्या के ख्याल को रोका जाए तो व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए प्रत्येक व्यक्ति में जागरूकता लाना बहुत आवश्यक है। इस बात को समझने की जरूरत है कि आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव की स्थिति कभी कम तो कभी ज्यादा बनी रहेगी, परंतु इसका समाधान अपनी जिंदगी को समाप्त कर लेना नहीं हैं।

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