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राजेश बादल का ब्लॉगः राष्ट्रीय अपमान पर चमकते सिक्कों का आखिर क्या अर्थ है?

By राजेश बादल | Published: April 14, 2019 4:17 PM

जलियांवाला बाग हत्याकांडः भारत सरकार ने इस नृशंस और लोमहर्षक हत्याकांड के सौ साल पूरे होने पर सौ रुपए का सिक्का जारी किया है. 

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एक सदी बहुत होती है माफी मांगने के लिए. आखिर ब्रिटेन को कितनी उमरें चाहिए? एक विराट लोकतंत्न की राष्ट्रीय अस्मिता का अहसास सत्तर साल बाद भी किसी तथाकथित विकसित और सभ्य मुल्क को अगर नहीं होता तो अर्थ साफ है- अभी भी रानी की हुकूमत में जी रहा यह देश अपने सामंती और अहंकारी मिजाज को नहीं त्याग सका है. प्रधानमंत्नी थेरेसा मे जलियांवाला बाग के बर्बर नरसंहार पर गोरी संसद में अफसोस कर सकती हैं, शर्मनाक दाग बता सकती हैं, मगर माफी नहीं मांग सकतीं. आज के हिंदुस्तान से आपसी सहयोग, सुरक्षा, समृद्धि और दोस्ती पर वे चाहे जितना गर्व कर लें, यह वक्त की इबारत पर साफ-साफ लिखा है कि सवा सौ करोड़ की आबादी का एक-एक इंसान ब्रिटेन का कभी भी हार्दिक कृतज्ञ नहीं रहेगा. उनके देश ने भारत को जलियांवाला बाग की तरह एक नहीं, सैकड़ों गहरे घाव दिए हैं, जिन्हें भरने में सदियां लग जाएंगी. इन जुल्मों के लिए तो  ब्रिटेन की हजार माफियां भी कम हैं. ब्रिटेन ने दो-ढाई सौ साल में भारत से जो लूटा है, वह इतिहास का एक कलंकित अध्याय है. भारत सरकार ने इस नृशंस और लोमहर्षक हत्याकांड के सौ साल पूरे होने पर सौ रुपए का सिक्का जारी किया है. 

ब्रिटेन की तरह कनाडा ने हम पर हुकूमत नहीं की लेकिन कामागाटामारू की घटना पर सौ बरस बाद उसने खुलकर संसद में माफी मांगी. कनाडा ने इन गोरों के इशारे पर हिंदुस्तान के कामागाटामारु जहाज पर सवार करीब चार सौ लोगों को 23 मई 1914 को वेंकूवर बंदरगाह पर दो महीने तक उतरने नहीं दिया. बुनियादी सुविधाओं के अभाव में कई लोगों ने दम तोड़ दिया. मानवीय आधार पर कुछ बच्चों और बुजुर्गो को सहायता दी. बाकी को वापस हिंदुस्तान भेज दिया. जब 27 सितंबर 1914 को यह जहाज कोलकाता के बंदरगाह पर किनारे लगा तो जल्लाद गोरों ने उतरते ही उन निदरेष-निहत्थे हिंदुस्तानियों पर धुआंधार फायरिंग शुरू कर दी. अनेक लोग मारे गए.  इस हादसे के सौ बरस बाद  कनाडा के प्रधानमंत्नी ने बाकायदा कनाडा की संसद में हिंदुस्तान से माफी मांगी. भारत ने इस शर्मनाक घटना की याद में भी सौ बरस पूरे होने पर 100 रु. का सिक्का जारी किया था.

दोनों घटनाओं में हिंदुस्तान ने सौ रुपए का सिक्का जारी किया. ठीक वैसे ही जैसे हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सरदार भगत सिंह जैसे सपूतों को याद रखने के लिए सम्मान में करते हैं. इतिहास की शर्मनाक-कलंकित घटनाओं को सम्मान सूचक प्रतीकों से याद करके हम अपनी नई पीढ़ी को क्या बताना चाहते हैं? गोरी रानी के मुकुट में जड़े कोहिनूर की वापसी की मांग भी हम ङिाझकते-शर्माते से करते हैं. हम आज के नौजवानों को अंग्रेजों के काले कारनामे भी बताने में संकोच करते हैं. गोरी रानी आती हैं, जलियांवाला बाग जाती हैं लेकिन दो लफ्ज प्रायश्चित के नहीं बोलना -लिखना चाहतीं. इस जुल्मी मानसिकता का मुकाबला सिक्के जारी करने से नहीं होता. इस हत्याकांड के जिम्मेदार लेफ्टिनेंट गवर्नर ओ’डायर को बरसों बाद उसी की मांद में जाकर मारने वाले अमर शहीद सरदार उधम सिंह को ही हम आज तक कौन सा मान-सम्मान दे पाए हैं?

मत भूलिए कि पंजाब के एक छोटे सिख बच्चे को सरदार भगत सिंह बनाने वाला जलियांवाला बाग ही था. नौ-दस बरस की उमर में वह बच्चा लाहौर के अपने स्कूल जाने के लिए निकलता है और पैंतीस किमी पैदल चलकर अमृतसर आता है. बाग में जाकर वहां की खून सनी मिट्टी को माथे से लगाता है और पुड़िया में बंद कर अपनी देह के साथ, अपनी धड़कनों के साथ लाता है. इस मिट्टी को एक शीशी में रखता है और रोज उस पर फूल चढ़ाता है. आज के नौजवानों से हम देश के प्रति गर्वबोध नहीं होने की शिकायत कर सकते हैं, पर शहीदों की शहादत को अपनी प्रेरणा बताने में संकोच करते हैं.

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