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Pollution: दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, अहमदाबाद और हैदराबाद में हालात बेहद खराब, सांस लेना दूभर!, वायु प्रदूषण से पूरी दुनिया चिंतित, जानें रिपोर्ट

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 7, 2023 12:18 IST

Pollution: नागपुर, गांधीनगर, मेंगलुरु, विजयवाड़ा, मदुरै, काेयंबतूर, पुणे, कोच्चि, तिरुवनंतपुरम, भुवनेश्वर, कटक, भोपाल, जयपुर, जोधपुर जैसे शहरों में अगले कुछ वर्षों में हवा दिल्ली की तरह ही जहरीली हो जाएगी.

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ठळक मुद्देवायु प्रदूषण से पूरी दुनिया चिंतित है और उसे कम करने के प्रयास भी हो रहे हैं.हवा को स्वच्छ रखने की कोशिशें दुनिया के सिर्फ 3 दर्जन देशों में हो रही हैं. गरीब तथा ज्यादातर विकासशील देश वायु प्रदूषण के प्रति उदासीन हैं.

Pollution: दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु, अहमदाबाद, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद खतरनाक रूप धारण करती जा रही है. जबकि नागपुर, गांधीनगर, मेंगलुरु, विजयवाड़ा, मदुरै, काेयंबतूर, पुणे, कोच्चि, तिरुवनंतपुरम, भुवनेश्वर, कटक, भोपाल, जयपुर, जोधपुर जैसे शहरों में अगले कुछ वर्षों में हवा दिल्ली की तरह ही जहरीली हो जाएगी.

वायु प्रदूषण से पूरी दुनिया चिंतित है और उसे कम करने के प्रयास भी हो रहे हैं लेकिन हवा को स्वच्छ रखने की कोशिशें दुनिया के सिर्फ 3 दर्जन देशों में हो रही हैं. गरीब तथा ज्यादातर विकासशील देश वायु प्रदूषण के प्रति उदासीन हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पर्यावरण से समझौता किए बिना उनका विकास नहीं हो सकता.

भारत में इन दिनों वायु प्रदूषण कुछ शहरों खासकर दिल्ली एनसीआर में घातक रूप धारण कर चुका है. मुंबई में भी वायु प्रदूषण इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है कि बंबई उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया. वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारण सर्वविदित हैं और इसके लिए सरकारों के साथ-साथ हम खुद भी जिम्मेदार हैं.

अकेले सरकार पर दोष मढ़ना ठीक भी नहीं है और वायु प्रदूषण को तब तक कम नहीं किया जा सकता जब तक सरकार इसके लिए सख्ती नहीं दिखाए तथा आम आदमी अपनी जिम्मेदारी समझकर सरकार को सहयोग नहीं देता. एक समय था जब अमेरिका, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे विकसित देश वायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार समझे जाते थे.

हमारा पड़ोसी चीन दुनिया में बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए सबसे अधिक दोषी ठहराया जाता था. निश्चित रूप से 19वीं और 20वीं सदी में विकसित देशों, यूरोपीय देशों, अमेरिका तथा एशिया में भारत एवं चीन का वायु प्रदूषण फैलाने में सबसे ज्यादा योगदान था मगर अन्य देशों ने 21वीं सदी में इस समस्या की ओर गंभीरता से ध्यान देना आरंभ कर दिया जबकि भारत तमाम घोषणाओं के बावजूद फिसड्डी रहा.

हमारे देश में प्रदूषण के प्रति जागरूकता का अभाव है. विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन पहले भी किया गया और आज भी हो रहा है. बड़े शहरों में हरियाली खत्म होती जा रही है. और उनके आसपास के घने जंगलों को खत्म हुए वर्षों हो गए हैं. जहरीले रसायन तथा विषैली गैस उगलने वाले कल-कारखाने प्रदूषण नियंत्रण नियमों काे ठेंगा दिखाकर स्थापित हो रहे हैं.

प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर भारत में बड़े और मंझोले उद्योग अपने परिसर में कुछ पेड़ लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं. 2019 में भारत और चीन में वायु प्रदूषण से 24 लाख लोगों की मौत हुई थी, जिसमें हमारे देश का योगदान 16.7 लाख मौतों का था. 2022 में भारत में वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों की तादाद 18.2 लाख तक पहुंच गई और चीन में यह संख्या घटकर 6 लाख रह गई.

विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान की कुछ माह पहले प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण इस हद तक जानलेवा हो गया है कि हमारा जीवन 5 साल कम हो गया है जबकि चीन में औसत जीवन प्रत्याशा 2.2 वर्ष बढ़ गई है.  चीन ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक स्तर पर अत्यंत कठोर रवैया अपनाया.

वहां बड़े शहरों में वाहन चलाने पर अंकुश लगाया, कोयला आधारित बिजली संयंत्र लगाना बंद कर दिया गया, जंगलों का क्षेत्र बढ़ाया गया, नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित किया गया, प्रदूषण के लिए खतरनाक समझे जानेवाले उद्योगों की उत्पादन क्षमता घटाने के साथ-साथ उनमें प्रदूषण नियंत्रण के सख्त उपाय लागू किए गए.

चीन सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि उसने जो फैसले लिए हैं, उन्हें गंभीरता के साथ लागू किया जाए. भारत में स्थिति विपरीत है. यहां प्रशासनिक स्तर पर वायु तथा अन्य प्रदूषण रोकने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए जाते. सरकार अगर प्रयास भी करती है तो भ्रष्ट नौकरशाही उसे सफल नहीं होने देती.

वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए भारत सरकार ने 2026 तक एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. सरकार का इरादा है कि अगले तीन साल में भारत में वायु प्रदूषण 40 प्रतिशत कम हो जाए लेकिन जनसहभागिता का अभाव, भ्रष्ट सरकारी मशीनरी तथा सभी स्तरों पर राजनीतिक नेतृत्व की उदासीनता के फलस्वरूप इस लक्ष्य को हासिल करना टेढ़ी खीर है.   

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