Maharashtra polls 2024: वर्ष 2022 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जब टूटी शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तो उस समय हिंदुत्व का मुद्दा साफ था. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में आए विधायकों का स्पष्ट मानना था कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना हिंदुत्व के विचार से भटक गई है और वह कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के साथ सरकार बना बैठी है. यह बात शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे के विचारों से मेल नहीं खाती है. थोड़े दिन हिंदुत्व और फिर भाजपा का विकास का मुद्दा इतना भुनाया गया कि राकांपा तोड़कर अजित पवार भी महागठबंधन सरकार में आ गए.
उत्तर प्रदेश में अयोध्या का चक्कर और विकास की बड़ी-बड़ी परियोजनाओं ने सरकार का एजेंडा साफ किया. किंतु लोकसभा चुनाव आते-आते न हिंदुत्व का जोर चला और न ही किसी ने विकास पर पीठ थपथपाई. संविधान बदलने की चिंता इतनी हावी हुई कि उसके आगे कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. अब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और हिंदुत्व का मुद्दा गायब है.
विकास की चर्चा करने से पहले ‘लाड़ली बहन’ को याद किया जा रहा है. बावजूद इसके अपराध और भ्रष्टाचार का मुद्दा हावी हो चला है. राज्य के सिंधुदुर्ग जिले के मालवन में स्थित राजकोट किले में लगी छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के ढह जाने के बाद विपक्ष ने भाजपा की उस रग पर हाथ रखा है, जिसे अभी तक कोई सीधे तौर पर छू नहीं पाया है.
कांग्रेस, राकांपा (शरद पवार गुट) जैसे दल स्पष्ट तौर पर कहने लगे हैं कि प्रतिमा की स्थापना में भ्रष्टाचार हुआ है. वर्ना इतनी जल्दी वह ढह नहीं जाती. केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी सार्वजनिक मंच से कहते हैं कि यदि मूर्ति का निर्माण ‘कास्ट आयरन’ की जगह ‘स्टेनलेस स्टील’ से किया जाता तो वह ढहती नहीं, क्योंकि उसमें आसानी से जंग नहीं लगती है.
इससे साफ हो जाता है कि मूर्ति के निर्माण में गड़बड़ी हुई. चाहे वह जल्दबाजी में बनाने में हुई हो या फिर किसी की नीयत में खोट थी. विपक्ष ने इस मुद्दे को महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा का मुद्दा बना कर चुनाव की तैयारी आरंभ कर दी है. वह लापरवाही को उजागर कर भ्रष्टाचार के आरोप को खुलकर लगा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माफी मांगने के बाद से उसे मामला गर्माने के लिए शह मिल गई है.
यह बताया जा रहा है कि ठाणे के नए कलाकार को मुख्यमंत्री के पुत्र श्रीकांत शिंदे की सिफारिश पर मूर्ति का काम दिया गया. बात यहां तक तो ठीक थी, लेकिन मूर्ति स्थापना में भ्रष्टाचार का होना राज्य सरकार का नेतृत्व करने वाली भाजपा के लिए आसानी से पचाने वाली बात नहीं है. वह भी उस स्थिति में जब मामला केंद्र सरकार से जुड़ा हो और उद्घाटन के नाम पर प्रधानमंत्री का नाम भी उछाला जा रहा हो.
यूं देखा जाए तो विधानसभा की अवधि ढाई साल गुजर जाने के बाद जब भाजपा ने शिवसेना के टूटे गुट के साथ सरकार बनाई थी, तब भी उसके सामने शिवसेना के अनेक ऐसे नेता थे, जिन पर वह भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुकी थी. मगर गठबंधन सरकार चलाने के लिए सत्ता से अलग रखना तो दूर, उन्हें मंत्री भी बनाना पड़ा.
पिछले लगभग सवा दो साल बाद भी उन्हें सत्ता में शामिल करने पर पूछे जा रहे सवालों से भाजपा को बचना पड़ रहा है. उसके बाद राकांपा से अजित पवार के आने के बाद भाजपा पर सवालों की बौछार ही हो रही है, जिनसे बच कर निकल पाना मुश्किल हो चला है. विपक्ष में रहते हुए आरोप लगाना और सत्ता में आते ही साथीदार बनाना लोगों को आसानी से पच नहीं रहा है.
इसी बात का लाभ लेते और चुनाव को करीब आते हुए देख विपक्ष बाकी सब मुद्दों को किनारे रख, भ्रष्टाचार के मुद्दे को जमकर उछाल रहा है, जो भाजपा की बनाई छवि के लिए घातक साबित हो रहा है. भ्रष्टाचार के साथ ही साथ बढ़ते अपराधों का सिलसिला विपक्ष की लड़ाई को और अधिक सीधा बना रहा है. बेलापुर की एक घटना ने जहां महिलाओं की सुरक्षा पर चिंता पैदा की.
वहीं पुणे, चंद्रपुर, नांदेड़, नासिक जैसे अनेक स्थानों की आपराधिक वारदातें विपक्ष को बिगड़ती कानून-व्यवस्था के अनेक प्रमाण दे रही हैं. सभी पर विपक्ष की आक्रामक भूमिका सरकार की परेशानी बढ़ा रही है. अपराधों से जुड़े आंकड़े भी विपक्ष के लिए आधार हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में राज्य में प्रतिदिन महिलाओं के साथ अपराध की 88 घटनाएं दर्ज हुईं.
तो वहीं 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर प्रतिदिन 126 हो गया है. हालांकि जनवरी से जून 2022 तक महाविकास आघाड़ी सरकार के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा की औसतन 126 घटनाएं रोजाना दर्ज की गईं. सरकार बदलने पर जुलाई से दिसंबर 2022 के बीच महागठबंधन सरकार के कार्यकाल के दौरान यह संख्या थोड़ी कम होकर 116 हो गई.
हालांकि वर्ष 2023 में महिलाओं के प्रति अपराध का यह औसत आंकड़ा बढ़कर प्रतिदिन 126 तक पहुंच गया. अब अपराध और भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच हिंदुत्व और विकास की चर्चा गौण हो चली है. संविधान बदलने का मुद्दा उसे और पीछे ढकेल रहा है. नए परिदृश्य में महागठबंधन बहुत कोशिश करने के बाद भी हिंदुत्व को अपनी पहचान नहीं बना पा रहा है.
यदि भाजपा के नीतेश राणे हिंदुत्व की आवाज बन रहे हैं तो उन पर भी मुकदमे होने लगे हैं. आरक्षण, महंगाई और बेरोजगारी के आगे विकास की बात को कोई आसानी से सुन नहीं रहा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव में छोटे-छोटे शिगूफे छोड़कर ही सत्ता पक्ष अपने लिए माहौल तैयार कर रहा है.
‘लाड़ली बहन’, ‘लाड़ला भाऊ’ के बाद किसानों के लिए अभय योजना विपक्ष के आरोपों के बीच ढाल बनने में फिलहाल विफल महसूस हो रही है. अब महागठबंधन को अपने परंपरागत अंदाज से बाहर निकल कर चुनाव मैदान में उतरने की जरूरत लग रही है, क्योंकि कम से कम भाजपा को तो अपने अंदाज में बासी होने का अहसास होना चाहिए, जिसका लोकसभा चुनाव ने पहले ही जनमत से संकेत दे दिया है. आगे यही कहा और समझा जा सकता है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है.