International Day for Eradication of Poverty: विश्व समुदाय हर वर्ष 17 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस के रूप में मनाता है. यह दिन केवल एक स्मरण नहीं, बल्कि मानवता के समक्ष खड़ी सबसे बड़ी चुनौती पर मंथन का अवसर है. सभ्यता के विकास, तकनीकी प्रगति, आर्थिक विस्तार और वैश्विक व्यापार के बावजूद आज भी करोड़ों लोग रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं. गरीबी एक आर्थिक स्थिति मात्र नहीं है, यह मनुष्य की गरिमा पर सबसे बड़ा आघात है- यह उसके सपनों, आत्मविश्वास और अस्तित्व को कुचलने वाला सामाजिक अभिशाप है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1992 में गरीबी को खत्म करने के प्रयासों और संवाद को बढ़ावा देने के लिए इस दिन को मनाए जाने की घोषणा की थी.
इसका उद्देश्य गरीबी में जी रहे लोगों के संघर्ष को स्वीकार करना और गरीबी के विभिन्न आयामों, जैसे कि आय की कमी, स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुंच की कमी आदि को संबोधित करना है. 2025 की थीम ‘परिवारों के लिए सम्मान और प्रभावी समर्थन सुनिश्चित करके सामाजिक और संस्थागत दुर्व्यवहार को समाप्त करना’ है.
इस दिवस का उद्देश्य गरीबी और इसके कारणों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है तथा गरीबी से जूझ रहे लोगों की समस्याओं को उजागर करना है. आज दुनिया में लगभग सत्तर करोड़ लोग अत्यंत गरीबी में जीवन बिता रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य है कि 2030 तक अत्यंत गरीबी का अंत किया जाए, परंतु यह लक्ष्य अभी भी दूर प्रतीत होता है.
युद्ध, जलवायु परिवर्तन, असमान आर्थिक नीतियां, जनसंख्या वृद्धि और बेरोजगारी ने गरीबी को नया रूप दिया है. अब गरीबी केवल रोटी की कमी नहीं, बल्कि अवसरों की असमानता और सामाजिक अन्याय का भी प्रतीक बन चुकी है. भारत ने पिछले कुछ दशकों में गरीबी घटाने के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है.
नीति आयोग के अनुसार, 2013-14 में जहां देश की 29 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीबी में थी, वहीं 2019-21 तक यह घटकर लगभग 11 प्रतिशत रह गई. परंतु यह सफलता पूर्ण नहीं कही जा सकती, क्योंकि गरीबी का असर ग्रामीण इलाकों, दलितों, आदिवासियों और महिलाओं पर अभी भी अधिक है. गरीबी का सबसे बड़ा प्रभाव शिक्षा और स्वास्थ्य पर पड़ता है-जहां गरीब बच्चे स्कूल छोड़ने पर मजबूर होते हैं, वहीं परिवार बीमारी का खर्च नहीं उठा पाते. यह चक्र दर चक्र उन्हें फिर गरीबी में धकेल देता है.