पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पता नहीं खुद को दुर्भाग्यशाली मान रहे होंगे या नहीं, हां, पाक में अवश्य उन्हें दुर्भाग्यशाली मानने वालों की संख्या बढ़ रही है. 5 अगस्त से वो जो कुछ बोल रहे हैं उससे उनके मानसिक असंतुलन का पता चलता है, किंतु उसके पीछे रणनीति होती है. यह बात अलग है कि उनकी सारी रणनीति उल्टी पड़ रही है.
अभी रूस के एक अंग्रेजी समाचार चैनल को उन्होंने एक लंबा-चौड़ा साक्षात्कार दिया है. इसमें उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में पाकिस्तान ऐसे मुजाहिदीन लोगों को प्रशिक्षण दे रहा था कि जब सोवियत संघ, अफगानिस्तान पर कब्जा करेगा तो वो उनके खिलाफ जेहाद का ऐलान करें. इन लोगों के प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान को पैसा अमेरिका की एजेंसी सीआईए द्वारा दिया गया.
उनकी पीड़ा है कि एक दशक बाद जब अमेरिका, अफगानिस्तान में आया तो उसने उन्हीं समूहों को जो पाकिस्तान में थे, जेहादी से आतंकवादी होने का नाम दे दिया. वे कह रहे हैं कि पाकिस्तान ने तो अमेरिका की मदद की और आज वही पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहा है. यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि आखिर इमरान ने रूसी टीवी से इस तरह की बात क्यों की? उन्होंने जो कहा वह कितना सच है?
ध्यान रखिए कि अमेरिका यात्रा में भी उन्होंने अपने देश में अभी भी 35 से 40 हजार हथियारबंद जेहादी मौजूद होना स्वीकार किया था. दरअसल, उनकी रणनीति विश्व समुदाय खासकर अमेरिका और पश्चिमी देशों की सहानुभूति पाने की रही है. वे यह संदेश देना चाहते हैं कि हमारा तो कोई दोष है नहीं, हम तो स्वयं इन हथियारबंद जेहादियों से लड़ रहे हैं और जनधन की क्षति उठा रहे हैं.
पहले उनको उम्मीद थी कि अमेरिका में इस बयान का अच्छा असर होगा. तालिबान से बातचीत तक उनको उम्मीद थी कि अमेरिका उनको पुचकारेगा और अहसानमंद होगा. अब ट्रम्प ने वार्ता ही नहीं तोड़ी है अफगानिस्तान सरकार की इस बात को स्वीकार किया है कि पाकिस्तान से पोषित और संरक्षित आतंकवादी ही सीमा पार कर हमले कर रहे हैं. इसलिए यह रूस को समझाने की कोशिश है. किंतु उस समय का पूरा सच रूस को पता है. राष्ट्रपति पुतिन तो केजीबी से संबद्ध रहे हैं. पूरे शीतयुद्ध में पाकिस्तान अमेरिका के साथ स्वेच्छा से रहा.