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ईद उल फ़ितर बेहतरीन मौक़ा है ख़ुशियां बांटने का, त्योहारों को अद्भुत बनाते हैं भारतीय संस्कार

By नईम क़ुरैशी | Updated: May 20, 2020 06:44 IST

अरबी भाषा का शब्द है ईद उल फ़ितर। ईद का तात्पर्य है ख़ुशी। फ़ितर का अभिप्राय है दान। ईद ऐसा दान पर्व है जिसमें खुशियां बांटी जाती हैं और जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं उन्हें फ़ितरा (दान) दिया जाता है।

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पवित्र रमज़ान माह में भूखे-प्यासे रहकर ख़ुदा की इबादत करने वाले मुसलमानों के लिए ईद से बड़ा कोई त्योहार नहीं। ईद मनाने का हुक़्म आसमानी था। बुखारी शरीफ़ की हदीस नं. 1793 के मुताबिक़ ये संदेश ख़ुद इस्लाम धर्म के पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने उम्मत को दिया था। ऐतिहासिक जंग ए बद्र के बाद 1 शव्वाल 2 हिजरी में मुसलमानों ने पहली ईद मनाई। यानी 1440 साल से शुरू हुआ ईद मनाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ईद जिसका तात्पर्य ही ख़ुशी है, तो फ़िर ख़ुशियां बांटने का इससे बेहतर मौक़ा क्या हो सकता है! 

भारतीय संस्कारों ने हर धर्म और उससे जुड़ी परंपराओं, रीति-रिवाज़ों को अपने आंचल में जगह दी है। यही वजह है कि मुसलमानों के सबसे महत्वपूर्ण पर्व ईद को दुनिया में मनाए जाने से इतर भारत इसे अद्भुत बनाता है। ये त्योहार न केवल समाज को जोड़ने का मज़बूत सूत्र है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्द के संदेश को भी पुरअसर तरीक़े से हरेक तक पहुंचाता है। इसमें कोई शक़ नहीं कि अरब के सेहरा से आई मीठी ईद सदियों से भारतीय समाज की सब्ज़ गंगा-जमुनी तहज़ीब में घुल-मिलकर हिंदुस्तानी भाईचारे की वाहक बनी हुई है।

कोविड-19 गले मिलने की रस्म है न मौक़ा है

कोविड-19 कोरोना वायरस ने दुनिया की रफ़्तार को थाम दिया है। इस्लाम के अभी तक के इतिहास में ऐसी कोई दलील नहीं मिलती कि पवित्र रमज़ान माह में मस्जिदों में इबादत के लिए भी नमाज़ी नहीं पहुंचे। हां पैग़म्बर मोहम्मद (सअवस) के समय में महामारी और क़ुदरती आफ़त आने पर घरों में इबादत करने को कहा गया था, मगर इतने दिनों का कहीं उल्लेख नहीं, जितना लंबे समय कोरोना संक्रमण की वजह से लोगों को तालाबंदी की पाबंदियों में रहना पड़ रहा है। मशहूर शायर क़मर बदायूं ने कहा था, ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम। रस्म ए दुनिया भी है, मौक़ा भी है, दस्तूर भी है। मगर कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंस की पाबंदियों ने शेर के मायने बदल दिए हैं और शायद ईद पर गले मिलने के रस्म-रिवाज की पाबंदियां टूटने जा रही हैं! वैसे भी ये सिर्फ़ रस्म है, मज़हब नहीं। क़ुरआन और हदीस में भी गले मिलने का उल्लेख नहीं है।

क्या है ईद उल फ़ितर

अरबी भाषा का शब्द है ईद उल फ़ितर। ईद का तात्पर्य है ख़ुशी। फ़ितर का अभिप्राय है दान। ईद ऐसा दान पर्व है जिसमें खुशियां बांटी जाती हैं और जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं उन्हें फ़ितरा (दान) दिया जाता है। रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का 9 वां माह है। इसमें सभी मुस्लिम रोज़े रखते हैं। रमज़ान को इस्लाम में इबादत का सर्वश्रेष्ठ महीना कहा गया है। इसके पूरे होने की ख़ुशी में 1 शव्वाल को ईद उल फ़ितर मनाई जाती है। 

ईद हमें ये संदेश देती है

ग़रीबों को जमा पूंजी का 2.5% दें

उमदतुल क़ारी हदीस के मुताबिक़ ज़कात सन 4 हिजरी में फ़र्ज़ की गई। यानी अपनी जमा पूंजी का 2.5% ग़रीबों को देना ज़रूरी है। इसे ईद से पहले देना ज़रूरी है। क़ुरआन में सूरे बकरा सूरत नं. 2 आयत नं. 43 में भी इसका ज़िक्र है।

अच्छे कपड़े पहनो, दूसरों को भी दो

पैग़म्बर मोहम्मद साहब ईद पर अच्छे कपड़े पहनते और दूसरों को भी अच्छा लिबास पहनने को कहते। मिशकात शरीफ़ हदीस नं. 1428 के अनुसार पैग़म्बर मोहम्मद साहब ने कहा है कि ईद के दिन ग़रीबों को लिबास और ज़रूरी चीज़ों का सदक़ा करें।

एक दिन के बच्चे के नाम पर भी दें अनाज

बुख़ारी शरीफ़ हदीस नं. 1503 के अनुसार ग़रीबों को फ़ितरा दें। फ़ितरा एक निश्चित वज़न में अनाज या उसकी मौजूदा क़ीमत में पैसा हर मुसलमान को देना होता है। एक दिन के बच्चे का फ़ितरा उसके पिता को देना होगा।

अपने मुलाज़िमों का अच्छा व्यहवार कर सम्मान करें

मिशकात शरीफ़ हदीस नं. 1432 के मुताबिक़ पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब ने फ़रमाया कि ईद सबकी है। इसलिए अपने यहां काम करने वाले मुलाज़िमों के साथ अच्छा व्यहवार और सम्मान करें। इस्लाम में मुलाज़िमों की ज़रूरतों का ध्यान रखने का कहा गया है।

क़ुरआन का संदेश

1- लालच के बगैर लोगों की मदद करो।सूरे कसस सूरत नं. 28 आयत नं. 23

2- बगैर किसी रंगों मज़हब सब एक जैसे हैं।सूरे हुजरात सूरत नं. 49 आयत नं. 13

3- किसी भी मज़हब के ख़ुदा को बुरा-भला कहने से बचो।सूरे अनाम सूरत नं. 6 आयत नं. 109

4- मज़हब में फ़र्क़ किये बगैर पड़ोसी के साथ अच्छा बर्ताव करो।सूरे निसा सूरत नं. 4 आयत नं. 36

5- गुनाह और ज़ुल्म के काम में मदद करने से बचो।सूरे मायदा सूरत नं. 5 आयत नं. 102

6- जब कोई सच्चे दिल से ग़लती मान ले, तो उसे माफ़ कर देना चाहिए।सूरे यूसुफ़ सूरत नं. 12 आयत नं. 98

7- बगैर किसी भेद-भाव सबके साथ इंसाफ़ होना चाहिए।सूरे निसा सूरत नं. 4 आयात नं. 135

8- ग़ुरूर मत करो ये सिर्फ़ अल्लाह के लिए है।सूरे बनी स्राईल सूरत नं. 17 आयत नं. 37

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