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बैंकिंग क्षेत्र के सुधारों से अर्थव्यवस्था को लाभ, जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉग

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: February 27, 2021 2:34 PM

पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी), यूनाइडेट बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी) की विलय किया गया है.

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ठळक मुद्देविलय के परिणामस्वरूप बनाने वाला नया बैंक, भारतीय स्टेट बैंक के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक होगा.निजी बैंकों द्वारा सरकारी अनुदान संबंधी काम करने पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है.बजट प्रस्तुत करते हुए कुछ सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की घोषणा की थी.

इस समय देश के बैंकिंग सेक्टर के बदलते हुए स्वरूप में तीन परिदृश्य दिखाई दे रहे हैं. एक, निजी क्षेत्न के सभी बैंकों को सरकार से जुड़े विभिन्न कामों को किए जाने की अनुमति, दो, छोटे और मझोले आकार के सरकारी बैंकों के चरणबद्ध निजीकरण की डगर और तीन, कुछ सरकारी बैंकों को मिलाकर बड़े मजबूत बैंक के रूप में स्थापित करना.

गौरतलब है कि 24 फरवरी को वित्त मंत्नालय ने निजी क्षेत्न के सभी बैंकों को सरकार से जुड़े विभिन्न काम जैसे कर संग्रह, पेंशन भुगतान और लघु बचत योजनाओं में हिस्सा लेने आदि की अनुमति दे दी है. यह बात महत्वपूर्ण है कि अब तक केवल कुछ बड़े निजी क्षेत्न के बैंकों को सरकार से संबंधित कामकाज करने की अनुमति थी.

वस्तुत: निजी बैंकों द्वारा सरकारी अनुदान संबंधी काम करने पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है. अब निजी बैंक भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास, सरकार की सामाजिक क्षेत्न की पहल के मददगार और ग्राहकों की सुविधा बढ़ाने के लिए बराबर के साङोदार होंगे. ऐसे में सरकार के इस निर्णय से ग्राहकों की सुविधा, प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता सेवाओं के मानकों में कुशलता और बढ़ेगी.

गौरतलब है कि वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को केंद्रीय बजट प्रस्तुत करते हुए कुछ सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की घोषणा की थी. उनके मुताबिक अब सार्वजनिक क्षेत्न के बैंक भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिए पहले की तरह अहम नहीं रह गए हैं. अब कुछ सरकारी बैंकों का निजीकरण अपरिहार्य है क्योंकि सरकार के पास पुनर्पूजीकरण की राजकोषीय गुंजाइश नहीं है.

ज्ञातव्य है कि पी.जे. नायक की अध्यक्षता वाली भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की समिति ने सार्वजनिक क्षेत्न के बैंकों को सरकार के नियंत्नण से बाहर निकालने के लिए सिफारिश प्रस्तुत की थी. इसी तारतम्य में हाल ही में सरकार ने छोटे एवं मझोले आकार के चार सरकारी बैंकों को निजीकरण के लिए चिन्हित किया है. ये बैंक हैं- बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया. इनमें से दो बैंकों का निजीकरण एक अप्रैल से शुरू हो रहे वित्त वर्ष 2021-22 में किया जाएगा.

कहा गया है कि जिन बैंकों का निजीकरण होने जा रहा है, उनके खाताधारकों को कोई नुकसान नहीं होगा. निजीकरण के बाद भी उन्हें सभी बैंकिंग सेवाएं पहले की तरह मिलती रहेंगी. वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्न के दो बैंकों का निजीकरण महज एक शुरुआत है. यदि इन चार छोटे-मझोले बैंकों के निजीकरण में सरकार को सफलता मिल जाती है तो आगामी वर्षो में कुछ अन्य बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.

यह भी उल्लेखनीय है कि जहां एक ओर सरकार बैंकों के निजीकरण की ओर आगे बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर सरकार देश में चार बड़े मजबूत सरकारी बैंकों को आकार देने की रणनीति पर भी आगे बढ़ रही है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में बैंकिंग सुधारों पर एम.एल. नरसिम्हन की अध्यक्षता में समिति का गठन हुआ था.

इस समिति ने देश में बड़े और मजबूत बैंकों की सिफारिश की थी. इस समिति ने यह भी कहा था कि देश में तीन-चार अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बड़े बैंक होने चाहिए. इस समिति की रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में छोटे बैंकों को बड़े बैंक में मिलाने का फार्मूला केंद्र सरकार पहले भी अपना चुकी है.

उल्लेखनीय है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) में 5 सहयोगी बैंकों- स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्नावणकोर और स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद को एकीकृत कर दिया गया था तथा साथ ही वर्ष 2017 में भारतीय महिला बैंक का भी विलय एसबीआई में कर दिया गया था.

पिछले वर्ष 2020 में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्न के 10 बैंकों का एकीकरण कर 4 बैंक बनाए थे. यह बात उल्लेखनीय है कि बैंकों के एकीकरण की योजना के तहत यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया तथा ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का विलय पंजाब नेशनल बैंक के साथ किया गया था.

इसी तरह सिंडिकेट बैंक का विलय केनरा बैंक के साथ और इलाहाबाद बैंक का विलय इंडियन बैंक के साथ तथा आंध्र बैंक एवं कॉर्पोरेशन बैंक को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के साथ एकीकृत कर दिया गया था. वर्ष 2019 में विजया बैंक और देना बैंक का विलय बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ कर दिया गया था. इस तरह कुल सरकारी बैंकों की संख्या जो मार्च 2017 में 27 थी, वह घटकर इस समय 12 हो गई है.

निश्चित रूप से सरकारी बैंकों के एकीकरण से बड़े और मजबूत बैंक बनाया जाना एक अच्छी रणनीति का भाग है. यह कदम उद्योग-कारोबार, अर्थव्यवस्था और आम आदमी - सभी के परिप्रेक्ष्य में लाभप्रद होगा. इसमें बैंकों की बैलेंसशीट सुधरेगी, बैंकों की परिचालन लागत घटेगी. पूंजी उपलब्धता से बैंक ग्राहकों को सस्ती दरों पर कर्ज मुहैया करा सकेंगे.

मजबूत बैंकों से धोखाधड़ी के गंभीर मामलों को रोका जा सकेगा, साथ ही फंसा कर्ज (एनपीए) भी घटेगा. बैंकों के विलय के साथ ही बैंकों के लिए नए परिचालन सुधार भी दिखाई देंगे. हम उम्मीद करें कि देश के बैंकिंग सेक्टर में निजी क्षेत्र के बैंकों को सरकार से जुड़े कामों को करने की अनुमति देने से निजी क्षेत्न के बैंक भी देश के विकास और सामाजिक क्षेत्न की पहल को आगे बढ़ाने में बराबर के साझेदार होंगे और देश के करोड़ों बैंक उपभोक्ताओं को लाभ होगा.

 छोटे एवं मध्यम आकार के सरकारी बैंकों का निजीकरण पुनर्पूजीकरण की राजकोषीय चुनौतियों की चिंताओं को कम करेगा. हम उम्मीद करें कि स्टेट बैंक सहित कुछ मजबूत सरकारी बैंक ग्रामीण इलाकों सहित विभिन्न सेक्टरों में सरल बैंकिंग सेवाओं के साथ सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए और अधिक विश्वसनीय वाहक भी दिखाई देंगे. इन विभिन्न बैंकिंग सुधारों से देश के आम आदमी, उद्योग-कारोबार सहित संपूर्ण अर्थव्यवस्था को लाभ होगा.

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