भारतीय समाज में विविधता के प्रश्न पर पारस्परिक पूरकता की दृष्टि से विचार करना चाहिए. इस विविधता को समस्या समझना मानसिक अवरोध का परिचायक है. यह समस्या नहीं है और न एकता के लिए संकट. हमें तो इस पर गर्व होना चाहिए कि हमें इस विरासत को संभालने और संजो ...
गांधीजी बड़े स्पष्ट शब्दों में घोषित करते हैं कि ‘भारत की नियति पश्चिम से नहीं जुड़ी है’. वे यह भी चेताते हैं कि विलासिता के भार तले दबे पश्चिम का मॉडल हमें नहीं चाहिए. गांधीजी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के पोषक थे. वे पश्चिम में आत्मा के खोने का आभास पा ...
दस साल के प्रकाशन को देखने के बाद इंडियन ओपीनियन के बारे में गांधीजी कहते हैं ‘इसमें मैंने एक भी शब्द बिना विचारे, बिना तौले लिखा हो, किसी को खुश करने के लिए लिखा हो अथवा जानबूझ कर अतिशयोक्ति की हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता’. ...
जब भाषा के प्रयोग को समाज में सम्मान मिलता है तो उसकी स्वीकृति बढ़ती है. कोई भाषा उतनी ही सीखी जाती है जितनी उसकी उपयोगिता होती है. भाषा के प्रयोग से ही उसका अस्तित्व होता है और प्रयोक्ताओं की आवश्यकता से उसकी दक्षता निर्धारित होती है. ...
अच्छे शिक्षक छात्नों को प्रश्न और विवेचन का अवसर देते हुए उनकी जिज्ञासा को पुष्ट करते हए एक समग्र बोध और सीखने की प्रक्रिया को आत्मसात कराते हैं. ऐसे में ही एक संभावना से भरा व्यक्तित्व पल्लवित और पुष्पित होता है. ...
ई-माध्यमों पर व्याख्यान और शैक्षिक सामग्री की सशक्त प्रस्तुतियां बड़ी लोकप्रिय हो रही हैं. यही नहीं इन सबमें भागीदारी और मिल-जुल कर सीखने समझने की संभावना भी बन रही है. इसका एक सुखद पक्ष यह भी है कि छात्न इनके साथ अपनी रुचि और गति के साथ ज्ञान और कौ ...
गोस्वामी तुलसीदासजी के शब्दों में कहें तो ‘पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं’. प्रतिबंध होने या हस्तक्षेप होने पर हमारे कर्तापन में विघ्न पड़ता है. ऐसी स्थिति में हम जो चाहते हैं और जैसा चाहते हैं वैसा नहीं कर पाते. ...