गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: आत्महत्या रोकने के लिए ‘फिट इंडिया’ मुहिम जरूरी
By गिरीश्वर मिश्र | Published: September 10, 2019 03:04 PM2019-09-10T15:04:27+5:302019-09-10T15:04:27+5:30
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10 से 24 वर्ष की आयु के बीच मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है.
प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने स्वस्थ रहने के लिए ‘फिट इंडिया’ का जो आह्वान किया है वह इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि लोग स्वास्थ्य पर प्राय: ध्यान नहीं देते हैं और जब कोई कठिनाई आती है तो तरह-तरह के कष्ट, तनाव और अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं. मुश्किलों के आगे घुटने टेक कई लोग तो जीवन से ही निराश हो बैठते हैं. ऐसे अंधेरे क्षणों में वे अपनी जान की भी परवाह नहीं करते.
आत्महत्या की घटनाएं भारत समेत पूरे विश्व में बढ़ रही हैं. आत्महत्या की घटना के व्यापक कारण अक्सर आर्थिक, पारिवारिक, धार्मिक जीवन के ताने-बाने, आदमी के विश्वासों और मान्यताओं में ढूंढे जाते हैं. आधुनिकीकरण और रिश्तों की टूटती कड़ियों के बीच जीवन की स्थापित व्यवस्थाएं प्राय: तहस-नहस होने लगती हैं. जब सामाजिक जुड़ाव और निकटता कमजोर पड़ने लगती है और सामाजिक नियमन की व्यवस्था विश्रृंखलित होने लगती है तो उससे उपजने वाला मानसिक-सामाजिक असंतुलन आत्महत्या जैसी घटनाओं को अंजाम देता है.
विगत वर्षो में किसानों की आत्महत्या, प्रौढ़ों द्वारा पारिवारिक झगड़ों, वैमनस्य, असफलता, अकेलापन आदि के संदर्भ में आत्महत्या की घटनाओं में खूब वृद्धि हुई है. चूंकि यह एक अतिशय संवेदनशील विषय है, इस बारे में ठीक आंकड़ों को एकत्न करना कठिन है. तथापि वैश्विक स्तर पर पिछले पांच दशकों में आत्महत्या की घटनाओं में अनुमानत: साठ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है. 15 से 44 वर्ष के आयु वर्ग में आत्महत्या को मृत्यु का तीसरा बड़ा कारण पाया गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10 से 24 वर्ष की आयु के बीच मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है. भारत में तीस वर्ष से कम के आयुवर्ग में सबसे अधिक ऐसी घटनाएं पाई गई हैं. इसके बाद 30 से 44 वर्ष का आयु वर्ग आता है. विवाहित स्त्रियों में ये घटनाएं अधिक हो रही हैं. अब ऐसी घटनाएं भी हो रही हैं जिनमें पूरा परिवार सम्मिलित रूप से आत्महत्या में शामिल हो जाता है.
इसे रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर उचित स्वास्थ्य सुविधा और उपचार, क्राइसिस सेंटर, हेल्प लाइन, नेटवर्क, जन शिक्षा के उपाय वरीयता के साथ उपलब्ध होने चाहिए. साथ ही परिवार के साथ जुड़ाव, समुदाय-सामाजिक समर्थन और धार्मिक विश्वास आदि के लिए सामुदायिक स्तर पर कदम उठाना होगा. यह भी जरूरी है कि सकारात्मकता पर बल दिया जाए. स्कूलों में भी जागरूकता अभियान चले. समाज और व्यक्ति दोनों स्तरों पर सक्रिय हस्तक्षेप द्वारा ही स्वस्थ भारत का स्वप्न पूरा हो सकेगा.