गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: नैतिकता और चरित्र निर्माण से ही श्रेष्ठ बनेगा भारत

By गिरीश्वर मिश्र | Published: October 2, 2019 05:46 AM2019-10-02T05:46:31+5:302019-10-02T05:46:31+5:30

गांधीजी बड़े स्पष्ट शब्दों में घोषित करते हैं कि ‘भारत की नियति पश्चिम से नहीं जुड़ी है’. वे यह भी चेताते हैं कि विलासिता के भार तले दबे पश्चिम का मॉडल हमें नहीं चाहिए. गांधीजी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के पोषक थे. वे पश्चिम में आत्मा के खोने का आभास पाते हैं पर आत्मा को खो कर जीवन भी कैसे जिया जाएगा? वे डट कर पश्चिम का प्रतिरोध करते हैं. वे कहते हैं कि ‘मैं नई इबारत लिखना चाहता हूं परंतु भारत की स्लेट पर’.

Girishwar Mishra blog: India will become Best by morality and character building | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: नैतिकता और चरित्र निर्माण से ही श्रेष्ठ बनेगा भारत

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। (फाइल फोटो)

असंदिग्ध रूप से महात्मा गांधी अंग्रेजी राज के दौरान स्वतंत्न भारत का  सपना  देखने वाले  देशभक्तों  में  सबसे आगे खड़े मिलते हैं. वे इस अर्थ में सबसे अग्रणी और अप्रतिम हैं कि वे सपने को विचार या कल्पना से आगे बढ़ कर जमीनी आकार भी देते हैं.  भारत का उनका नक्शा भी सिर्फ राजनैतिक ही नहीं है.

वह समग्र  भारत की आत्मा को खोजते हैं, परिभाषित करते हैं और उसकी रचना के लिए तत्पर होते हैं. वे एक ऐसे  कर्मठ विचारक हैं जो वही कहते हैं जैसा सोचते हैं और वही करते हैं जैसा कहते हैं. शिक्षा, आजीविका, स्वास्थ्य, सामाजिक जीवन, अर्थ-व्यवस्था जैसे राष्ट्रीय जीवन के प्रमुख विषयों को लेकर गांधीजी ने तमाम रचनात्मक कार्यक्रम शुरू किए और उन सबका आधार समाज में रखा.

यह अपने आप में आश्चर्यजनक है कि अंग्रेजी राज के वर्चस्व के दौर में  गांधीजी जीवन के क्षेत्न में समानांतर प्रयोग करते हैं जो सरकार को चुनौती होती है, पर कुछ ऐसा नहीं मिलता है कि गांधी को दोषी ठहराया जा सके. गांधीजी इस दृष्टि से बड़े ही सर्जनात्मक हैं. ‘सविनय अवज्ञा’ जैसे उनके अकल्पनीय, पर वास्तविक प्रयोग जो पूरी तरह अहिंसक और समाजकेंद्रित थे, सत्ता की चूलें हिलाने वाले थे. नैतिक बल पर टिका हुआ गांधीजी का अनोखा  नेतृत्व संक्रामक था और हर कोई खिंचा चला आता था. ऐसे समर्पित नेतृत्व ने जिस भारत का सपना देखा था, उसे उनके जन्म की डेढ़ सौवीं जयंती  के अवसर पर याद करना जरूरी है. यह हमारे लिए आत्म-मंथन का अवसर  है.

गांधीजी बड़े स्पष्ट शब्दों में घोषित करते हैं कि ‘भारत की नियति पश्चिम से नहीं जुड़ी है’. वे यह भी चेताते हैं कि विलासिता के भार तले दबे पश्चिम का मॉडल हमें नहीं चाहिए. गांधीजी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के पोषक थे. वे पश्चिम में आत्मा के खोने का आभास पाते हैं पर आत्मा को खो कर जीवन भी कैसे जिया जाएगा? वे डट कर पश्चिम का प्रतिरोध करते हैं. वे कहते हैं कि ‘मैं नई इबारत लिखना चाहता हूं परंतु भारत की स्लेट पर’.

वे एक जगह यह भी कहते हैं कि ‘पश्चिम से लूंगा, पर सूद समेत लौटाने के लिए’. वे यूरोप के आगे झुके हुए भारत की नहीं, एक जगे और स्वतंत्न भारत की कल्पना करते हैं. आज के सामाजिक और राजनैतिक जीवन की दुश्चिंताओं  के दौर में गांधीजी  का  यह विचार कि स्वराज तभी रहेगा जब  सभी जन देश के प्रति समर्पित हों, अत्यंत प्रासंगिक है.

वे राजनीति को धर्म से जोड़ते हैं और जन सेवक के लिए देश-हित को ही सर्वोपरि रखने को कहते हैं. इसके लिए निजी और सार्वजनिक जीवन दोनों में नैतिकता और पक्षपात या पूर्वाग्रह से मुक्त होना आवश्यक है. गांधीजी बड़े ही स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ‘अधिकार कर्तव्य से नि:सृत होते हैं’. अत: नैतिकता और चरित्न की स्थापना की ओर आगे बढ़ने पर ही कर्तव्य की प्रतिष्ठा हो सकेगी और एक श्रेष्ठ भारत रचा जा सकेगा.

Web Title: Girishwar Mishra blog: India will become Best by morality and character building

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