गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: लोकतंत्र के प्राण हैं विविधता, संवाद

By गिरीश्वर मिश्र | Published: November 1, 2019 06:04 AM2019-11-01T06:04:47+5:302019-11-01T06:04:47+5:30

भारतीय समाज में विविधता के प्रश्न  पर पारस्परिक पूरकता की दृष्टि से विचार करना चाहिए. इस  विविधता को समस्या समझना मानसिक अवरोध का परिचायक है. यह समस्या नहीं है  और न एकता के लिए संकट. हमें तो इस पर गर्व होना चाहिए कि हमें इस विरासत को संभालने और संजोने का अवसर मिला है. 

Girishwar Mishra's blog: Diversity, dialogue are the soul of democracy | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: लोकतंत्र के प्राण हैं विविधता, संवाद

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: लोकतंत्र के प्राण हैं विविधता, संवाद

भारत में इतनी तरह की विविधता के दर्शन होते हैं कि उसे आधुनिक दृष्टि वालों को समझना मुश्किल हो जाता है. विविध प्रकार का खान-पान, रंग- बिरंगी वेश-भूषा, भांति-भांति के रहन-सहन, अनोखे देवी-देवता, किस्म किस्म के फल-फूल, नाना प्रकार की साग-सब्जियां सतत  भिन्नता और नवीनता का अनुभव देती हैं.  

कहते हैं सृजनात्मकता के लिए भिन्नता और विविधता की बड़ी दरकार होती है. इसलिए विविधता की रक्षा करनी जरूरी है. अब यह स्पष्ट हो चुका है कि जैव-विविधता का कम होना प्राणि-जगत और पूरी सृष्टि के लिए बेहद हानिकारक है.  बहुत से जीव-जंतु अब विलुप्त हो चुके हैं और बहुत से लुप्तप्राय होने के कगार पर हैं. उन्हें खोना अपूरणीय क्षति होगी जिसकी भरपाई संभव नहीं, क्योंकि वे कभी धरती पर वापस नहीं मिलेंगे.

पिछले साल मॉरिशस में विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था जिसका प्रतीक चिह्न् डोडो नामक एक पक्षी रखा गया था जो अब वहां से विलुप्त हो चुका है. सचमुच प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रि या और उसकी उपलब्धियों का कोई विकल्प  नहीं होता है. हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक दुनिया में भी कुछ ऐसा ही है. बाहर से आकर बसने वालों के हाथों अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों में से अधिकांश का समूलोच्छेदन हो चुका है और जो आज बचे हुए हैं उनकी स्थिति बहुत ठीक नहीं है. उनकी जीवन-गाथा विकास और विनाश की  लोमहर्षक  कहानियां हैं. ऐसे मामलों में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ का सूत्न ही ज्यादातर जगह चरितार्थ हुआ है.

भारतीय समाज में विविधता के प्रश्न  पर पारस्परिक पूरकता की दृष्टि से विचार करना चाहिए. इस  विविधता को समस्या समझना मानसिक अवरोध का परिचायक है. यह समस्या नहीं है  और न एकता के लिए संकट. हमें तो इस पर गर्व होना चाहिए कि हमें इस विरासत को संभालने और संजोने का अवसर मिला है. 

इस इंद्रधनुषी विविधता का निराला स्वाद है जो भौतिक धरातल पर और कल्पना के स्तर पर भी हमें उद्दीप्त करता है. वस्तुत: विविधता हमारे समाज का अलंकरण है जिसका स्वागत होना चाहिए. जरूरत है कि विविधता के साथ-साथ संवाद भी बना रहे ताकि सभी एक दूसरे को जानें और समङों और भरोसा हो सके. तब एक दूसरे के कल्याण में सहायक हो सकेंगे.
 

Web Title: Girishwar Mishra's blog: Diversity, dialogue are the soul of democracy

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