मुसलमानों के वोटों के दम पर राजनीति करने वाली तथाकथित सामाजिक न्याय की पार्टियां एक के बाद एक चुनाव हारते-हारते बुरी तरह से हांफती हुई दिख रही हैं. भाजपा ने 45 से 50 फीसदी की हिंदू एकता बना कर मुसलमान वोटों की प्रभावकारिता को शून्य कर दिया है. ...
लोकसभा चुनावों में जो गर्द उड़ी, वह पूरे देश में शांत हो गई है, पर प.बंगाल में नहीं. डॉक्टरों के आंदोलन के जरिये सार्वजनिक जीवन के सांप्रदायिकीकरण का नया दौर चल निकला है. हिंदू डॉक्टर घोषित रूप से मुसलमान मरीजों का इलाज करने से इंकार कर रहे हैं. ...
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि क्या विजेता पार्टी भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति में जाति-धर्म का सहारा नहीं लिया? अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी शोध केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक भाजपा ने अपने 45 फीसदी से ज्यादा टिकट ऊंची जाति के उम्मीदवारों को दिए, क्यो ...
सबसे पहले कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल (एस) के गठजोड़ पर गौर करें. अगर कागज पर देखें तो इन दोनों पार्टियों के वोटों को जोड़ देने से भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाना चाहिए था. लेकिन, हुआ उल्टा. क्यों? दरअसल, ये दोनों पार्टियां आपस में मिल कर भाजपा से लड़ने ...
यह पहलू बताता है कि किस तरह भाजपा ने दूरगामी परिणामों को लक्ष्य बना कर अपने संगठन का विकास किया है. अब अगले पांच साल यह पार्टी दक्षिण भारत पर जोर देगी और ताज्जुब नहीं कि कुछ वर्षो के बाद उसका झंडा वहां भी लहराता हुए दिखाई दे. ...
एक तरफ हमारे लोकतंत्र का यह काला पक्ष हमारी आंखों में घूम रहा है, दूसरी तरफ उसके उज्जवल पक्षों पर भी निगाह डाली जानी चाहिए. इन्हीं ममता बनर्जी, जो भाजपा के हमले से अपनी सत्ता बचाने के लिए दीवानी हुई जा रही हैं, को अपने 33 फीसदी टिकट स्त्रियों को देन ...
आखिर प्रधानमंत्री पद का किरदार क्या है? क्या वह एक चुना हुआ प्रतिनिधि नहीं है? क्या वह एक ऐसा राजा है जो स्वयं नियम बनाता है और खुद को नियमों से ऊपर रखता है? ...