विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में हर साल 440000 लोग टीबी से मर जाते हैं. इसी तरह बहुत सारे लोग मलेरिया के शिकार हो जाते हैं. चूंकि पूरी की पूरी स्वास्थ्य प्रणाली (जो पहले से ही कमजोर और अव्यवस्थित थी) कोरोना की तरफ झुकी हुई है, इसलिए न तो टी ...
अगर हम यह मान भी लें कि इन देशों के वैज्ञानिक देर-सबेर कोई न कोई वैक्सीन बना लेंगे, तो भी हमें समझना चाहिए कि वह वैक्सीन एक साल के परीक्षण के बिना सारी दुनिया में वितरण के लिए उत्पादित नहीं की जा सकती. ...
केवल चार दशक में किसी राजनीतिक दल के इतने अधिक शक्तिशाली होते चले जाने (भाजपा की ताकत बढ़ने की प्रक्रिया अभी भी जारी है) के कारणों पर रोशनी डालने से हमें हमारे लोकतंत्र के समकालीन मिजाज की कुछ बेहतर समझ हासिल हो सकती है. भाजपा की कामयाबी के बारे में अ ...
कोरोना से निपटने की नीतियों के साथ अगर हमने आर्थिक गिरावट से निपटने की नीतियों को न जोड़ा तो कोरोना तो चार-छह महीनों में खत्म हो जाएगा (हर महामारी एक निश्चित अवधि के बाद अपने-आप खत्म हो जाती है), पर अर्थव्यवस्था को जो कोरोना होगा, वह कई साल तक (हो सक ...
हमारी जन-स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे ज्यादा देहातों में टूटी हुई है जहां आज भी देश की 65 फीसदी आबादी रहती है. किसी जमाने में बनाया गया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का ग्रामीण नेटवर्क केवल कहने के लिए ही है. वहां न डॉक्टर मिलते हैं, न कंपाउंडर और न ही दवाए ...
कोरोना महामारी का मुकाबला करने के लिए केंद्र और राज्य समेत हमारी सभी सरकारें अपनी क्षमता और दायरे में बेहतरीन काम कर रही हैं. लेकिन, जो बात सरकार नहीं सोच पाई, वह बात हममें से कोई भी नहीं सोच पाया. कोरोना के डर और उससे उपजी परिस्थिति के कारण हो रहा श ...
अगर 2004 में भाजपा बहुत थोड़े अंतर से चुनाव न हार जाती और वाजपेयीजी दोबारा प्रधानमंत्री बन गए होते तो हो सकता है कि उस आयोग के गर्भ से एक ऐसा संविधान निकलता जो हिंदुत्ववादी योजनाओं के मुताबिक होता. लेकिन उसके बाद दस साल तक कांग्रेस का शासन चला. 2014 ...
ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया के इस कदम से कांग्रेस के उन बड़े नेताओं के बारे में पार्टी के कान खड़े हो जाने चाहिए जिनके बारे में पिछले कुछ दिनों से भाजपा में जाने की पेशबंदी करने की अफवाहें उड़ रही हैं. ...