अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: देश को अब 'लॉकडाउन प्लस' की है जरूरत

By अभय कुमार दुबे | Published: April 30, 2020 03:08 PM2020-04-30T15:08:20+5:302020-04-30T15:08:20+5:30

अगर हम यह मान भी लें कि इन देशों के वैज्ञानिक देर-सबेर कोई न कोई वैक्सीन बना लेंगे, तो भी हमें समझना चाहिए कि वह वैक्सीन एक साल के परीक्षण के बिना सारी दुनिया में वितरण के लिए उत्पादित नहीं की जा सकती.

Coronavirus in India impact country need Lockdown plus | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: देश को अब 'लॉकडाउन प्लस' की है जरूरत

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रधानमंत्री ने मन की ‘ताजा’ बात में कहा है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई ‘पीपुल ड्राइवेन’ है. यह सुनने में अच्छा लगता है. लेकिन, इसमें एक बात छिपी हुई है कि इस लड़ाई का नेतृत्व जनता ही कर रही है, सरकार इसके ‘ड्राइविंग फोर्स’ के रूप में अभी तक नहीं उभर पाई है. सरकार ज्यादा से ज्यादा इतना कर पा रही है कि विभिन्न तरीकों से लॉकडाउन भंग करने वाले कानूनी सजा से डर कर सहमे रहें. इतना बड़ा देश, विश्व-गुरु होने के दावे, और कोरोना से पहले ‘फाइव ट्रिलियन’ की इकोनॉमी बनाने के ख्वाब-- आज तक कोरोना का टे¨स्टंग किट भी नहीं बना पाया. 

सरकार और उसके तंत्र की यह भीषण नाकामी केवल इसी तरह से छिप सकती है कि हम कोरोना के खिलाफ लड़ाई को ‘पीपुल ड्राइवेन’ कह कर पतली गली से निकल जाएं. सरकार की पहल-विहीनता का आलम यह है कि वह आज तक ग्रामीण क्षेत्रों से शहर जा कर रोजी कमाने वाले मजदूरों को निकाल कर उनके घरों तक पहुंचाने की कोई सुचिंतित राष्ट्रव्यापी नीति तक नहीं बना
पाई है.

हम इस तरह की बातें करके खुश हो सकते हैं कि न तो हमारे अस्पतालों में भीड़ है और न ही हमारे श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में. लेकिन न के बराबर टे¨स्टंग होने के कारण हमें पता ही नहीं है कि कितने लोगों को कोरोना हुआ है. जिन्हें हुआ है उनकी बीमारी का स्तर क्या है, क्या वे क्वारंटाइन के जरिये अपने आप ठीक हो जाएंगे या उन्हें आईसीयू में भर्ती कराना पड़ेगा? मुंबई के बाद दिल्ली कोरोना का सबसे बड़ा केंद्र है. यहां कोरोना का पहला मामला चार मार्च को सामने आया था.

भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति में पहुंच गई है

 चीन के अनुभव से समझा जा रहा है कि कोरोना के ग्राफ को समतल होने के लिए कम से कम दस हफ्ते चाहिए होते हैं. यानी पंद्रह मई तक तो कमोबेश लॉकडाउन रखना ही होगा. शायद दिल्ली सरकार इस फैसले पर पहुंचती जा रही है. दरअसल, हमें मान कर चलना चाहिए कि ऐसा ही सारे देश में होने वाला है. लेकिन, लॉकडाउन के जो दिन हमारे पास हैं, उनमें हमें और हमारी सरकार को ‘लॉकडाउन प्लस’ का ब्लूप्रिंट बनाना चाहिए.

भारत में कोरोना के खिलाफ लड़ाई एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति में पहुंच गई है. अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस युद्ध को केवल तीन तरीकों से जीता जा सकता है. पहला, किसी कोरोना-निरोधक वैक्सीन (टीका) का आविष्कार हो जाए. दूसरा, ‘हर्ड इम्युनिटी’ विकसित हो जाए. यानी, लोगों को बड़े पैमाने पर संक्रमण हो और उसी प्रक्रिया में उनका शरीर उस संक्रमण से संघर्ष करते-करते कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ले. तीसरा, टेस्टिंग और लॉकडाउन का यह सिलसिला कम से कम दो या तीन महीने तक और चलाया जाए. विडंबना यह है कि भारत जैसे देश के लिए इन तीनों में से कोई भी तरीका उपलब्ध नहीं है. जहां तक वैक्सीन का सवाल है, यूरोपीय देश और चीन इस काम में तत्परता से लगे हुए हैं. 

अगर हम यह मान भी लें कि इन देशों के वैज्ञानिक देर-सबेर कोई न कोई वैक्सीन बना लेंगे, तो भी हमें समझना चाहिए कि वह वैक्सीन एक साल के परीक्षण के बिना सारी दुनिया में वितरण के लिए उत्पादित नहीं की जा सकती. इसलिए वैक्सीन वाले विकल्प पर हम फिलहाल कतई भरोसा नहीं कर सकते. दूसरे विकल्प यानी ‘हर्ड इम्युनिटी’ के बारे में सोच कर तो डर लगने लगता है.

उत्पादन-उपभोग-आमदनी का चक्र पूरी तरह से थमा हुआ है

‘हर्ड इम्युनिटी’ के लिए जरूरी है कि पहले किसी भी आबादी के कम से कम साठ फीसदी हिस्से को संक्रमण हो, तभी इस तरह की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है. 130 करोड़ की आबादी वाले भारत में साठ फीसदी का मतलब होता है 78 करोड़ लोगों को संक्रमण होना और इस प्रक्रिया में कम से कम दो-ढाई करोड़ लोगों की जान चली जाना. यह इतनी बड़ी मानवीय कीमत है जिसे भारत जैसा देश कभी चुकाने के लिए तैयार नहीं हो सकता.

जहां तक निरंतर लॉकडाउन चलाए रखने का सवाल है- यह विचार हमारे समाज और राष्ट्र के भविष्य को पूरी तरह से अंधकारमय कर देने की तरफ ले जाने वाला प्रतीत होता है. सभी विशेषज्ञ बिना किसी विवाद के इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि अगर जल्दी ही आर्थिक गतिविधियां शुरू नहीं की गईं और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए आर्थिक मदद के विशाल पैकेज घोषित नहीं किए गए तो उसके परिणामस्वरूप होने वाली क्षति स्थायी होगी. यानी उससे उबरने में कई दशक लग जाएंगे. उत्पादन-उपभोग-आमदनी का चक्र पूरी तरह से थमा हुआ है.बदलती हुई ग्लोबल परिस्थिति का लाभ उठाने लायक क्षमता भारतीय अर्थव्यवस्था के पास नहीं है. न ही हमारी सरकार ऐसी क्षमताओं और पहलकदमी से संपन्न दिखती है.

Web Title: Coronavirus in India impact country need Lockdown plus

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