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म्यामां नरसंहार मामला: सुनवाई के संबंध में अंतरराष्ट्रीय अदालत आज सुनाएगी फैसला

By भाषा | Published: January 23, 2020 2:07 PM

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देशों के बीच विवाद को निपटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय अदालत का गठन किया गया था। रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ 2017 में सैन्य अभियान को लेकर म्यामां को न्याय के कठघरे में लाने की यह पहली कोशिश है।

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ठळक मुद्देUN शीर्ष अदालत म्यामां नरसंहार के मामले में फैसला सुनाएगी। रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान को लेकर म्यामां को कठघरे में लाने की कोशिश है

संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यामां नरसंहार के मामले में सुनवाई करने के संबंध में गुरुवार को फैसला सुनाएगी। म्यामां आयोग की रिपोर्ट के कुछ दिन बाद अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) का यह फैसला आ रहा है। रोहिंग्या लोगों पर अत्याचारों की जांच के लिए गठित म्यामां का पैनल सोमवार को इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि कुछ सैनिकों ने संभवत: रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ युद्ध अपराध को अंजाम दिया लेकिन सेना जनसंहार की दोषी नहीं है।

अगस्त 2017 से शुरू हुए सैन्य अभियान के चलते करीब 7,40,000 रोहिंग्या लोगों को सीमापार बांग्लादेश भागना पड़ा था। इसके बाद मुस्लिम अफ्रीकी देश गाम्बिया ने यह मामला उठाया था। टिलबर्ग विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर एमेरिटस विलेम वैन जेनुगटन ने कहा, ‘‘ पहला सवाल यह है कि क्या अदालत को मामले की सुनवाई करने का अधिकार है या नहीं। मेरा मानना है कि मामला यही है, हालांकि कभी भी कुछ भी हो सकता है।’’ गुरुवार का फैसला कानूनी लड़ाई का पहला कदम होगा, जिसके अंतरराष्ट्रीय अदालत में वर्षों तक चलने की संभावना है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देशों के बीच विवाद को निपटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय अदालत का गठन किया गया था। रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ 2017 में सैन्य अभियान को लेकर म्यामां को न्याय के कठघरे में लाने की यह पहली कोशिश है। 57 देशों वाले इस्लामिक सहयोग संगठन ने यह मामला उठाने को लेकर गाम्बिया का समर्थन किया था। गाम्बिया के न्याय मंत्री अबूबकर तमबादोउ ने अदालत के न्यायाधीशों से दिसम्बर में पिछली सुनवाई में कहा था कि गाम्बिया और म्यामां के बीच बहुत विवाद है।

गाम्बिया आपसे म्यामां से बर्बर कृत्यों को रोकने के लिए कहने का अनुरोध करता है। बर्बरता ने हमारी साझा अंतरात्मा को झकझोर दिया है। उसे अपने ही लोगों के खिलाफ नरसंहार रोकना चाहिए । रवांडा के 1994 के नरसंहार में अभियोजक रहे तमबादोउ ने कहा था कि हमारी आंखों के सामने एक और नरसंहार हो रहा है और हम इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं। 

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