एशिया के सबसे महानत कवियों में से एक फ़ैज अहमद फ़ैज की 20 नवबंर पुण्यतिथि है। साम्यवादी विचारधारा के कवि रहे फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 सियालकोट, पंजाब (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उर्दु साहित्य के पुरोधाओं में से एक फैज अहमद फैज सूफी परंपरा से प्रभावित थे। फ़ैज अहमद फ़ैज की शायरी का अनुवाद हिंदी, रूसी, अंग्रेजी आदि कई भाषाओं में हो चुका है। नक्श-ए-फरियादी, दस्त-ए-सबा, जिंदांनामा, दस्त-ए-तहे-संग, मेरे दिल मेरे मुसाफिर, सर-ए-वादी-ए-सिना इनकी प्रमुख रचनाओं में से एक हैं। फैज अहमद फैज की पुण्यतिथि पर पेश है उनकी कुछ नज्में-
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चलेचले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चलेक़फ़स उदास है, यारो सबा से कुछ तो कहोकहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले- फैज़ अहमद फैज़
ये वो सहर तो नहीं जिसकी आरज़ू लेकरचले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहींफ़लक के दश्त में तारों की आख़िरी मंज़िलकहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज का साहिलकहीं तो जाके रुकेगा सफ़ीना-ए-ग़मे-दिल-फैज़ अहमद फैज़
निसार मैं तेरी गलियों के ए वतन, कि जहांचली है रस्म कि कोई न सर उठा के चलेजो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकलेनज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जां बचा के चले-फैज़ अहमद फैज़
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरेबोल ज़बां अब तक तेरी हैतेरा सुतवां जिस्म है तेराबोल कि जां अब तक तेरी है-फैज़ अहमद फैज़
हम देखेंगेलाज़िम है कि हम भी देखेंगेवो दिनकि जिसका वादा हैजो लौहे-अज़ल में लिखा हैजब ज़ुल्मो-सितम के कोहे गरांरुई की तरह उड़ जाएंगे.-फैज़ अहमद फैज़
बात बस से निकल चली हैदिल की हालत संभल चली हैअब जुनूं हद से बढ़ चला हैअब तबीयत बहल चली है -फैज़ अहमद फैज़
निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन, कि जहां चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले-फैज़ अहमद फैज़
आदमियों से भरी है यह सारी दुनिया मगर,आदमी को आदमी होता नहीं दस्तयाब। -फैज़ अहमद फैज़
जो गुज़र गई हैं रातें, उन्हें फिर जगा के लाएं जो बिसर गई हैं बातें, उन्हें याद में बुलाएं चलो फिर से दिल लगाएं, चलो फिर से मुस्कराएं -फैज़ अहमद फैज़
जिंदगी क्या किसी मुफलिस की कबा है,जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं। -फैज़ अहमद फैज़