जब इकबाल बानो ने फैज की नज्म 'हम देखेंगे' साड़ी पहन गाया था, पाकिस्तान की सियासत को हिलाने वाली गायिका जानें क्यों है चर्चा में
By पल्लवी कुमारी | Published: January 3, 2020 11:39 AM2020-01-03T11:39:11+5:302020-01-03T11:39:11+5:30
इकबाल बानो का जन्म 27 अगस्त, 1935 को दिल्ली में हुआ था। साल 1952 में इकबाल बानो पाकिस्तान चली गई थीं। इकबाल बानो पाकिस्तान की बेहद सम्मानित गायिका थीं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर( IIT Kanpur) में सीएए (CAA) के विरोध में मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म 'हम देखेंगे' गाए जाने को लेकर विवाद बना हुआ है। इस विवाद के बाद कई लोग मशहूर शायर फैज अहमद फैज को हिंदू विरोधी बता रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस विवाद को लेकर दो मत बन गए हैं। फैज अहमद फैज के अलावा इस विवाद में एक और नाम चर्चा में आ गया है और वह नाम है- इकबाल बानो का। इकबाल बानो पाकिस्तान की मशहूर गायिका थीं। अब सवाल उठता है किआखिर फैज अहमद फैज की नज्म 'हम देखेंगे' के साथ इकबाल बानो का क्या संबंध है। इकबाल बानो ने फैज अहमद फैज की नज्म 'हम देखेंगे' को 1980 के दशक में पाकिस्तान में 50,000 व्यक्तियों की भीड़ के सामने गाया था। जिसके बाद से फैज की यह नज्म मशहूर हो गई थी। कई लोगों को इस बात का भ्रम भी हो गया था कि यह नज्म इकबाल बानो का ही है। लेकिन बाद में धीरे-धीरे इस बात से पर्दा उठा।
इकबाल बानो ने फैज की मशहूर नज्म, 'हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे' को 1980 के दशक में लाहौर के अलहमरा ऑडिटोरियम में गाया था। जब मंच पर इकबाल बानो जा रहीं थीं तो उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी। उस वक्त पाकिस्तान में साड़ी पहनने का मतलब था पाकिस्तान की हुकूमत की खिलाफत करना। उस वक्त पाकिस्तान में तत्कालीन जनरल ज़िया-उल-हक तख्त पर बैठे थे। उन्होंने साड़ी पर प्रतिबंध लगवाया था। वह पाकिस्तान का इस्लामीकरण कर रहे थे। उननका मानना था कि साड़ी हिंदू महिलाएं ही पहनती हैं।
इकबाल बानो ने मंच से फैज के कई नज्म गाए थे लेकिन 'हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे' के गाने पर सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया मिली थी। पूरा ऑडिटोरियम उनके साथ गाना शुरू कर देता था। इकबाल बानो के गाने का ऑडियो वर्जन यूट्यूब पर मौजूद है। उस वक्त इकबाल बानो के प्रदर्शन की लाइव रिकॉर्डिंग पाकिस्तान से बाहर भी भेजी गई थी।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इकबाल बानो ने जब कॉन्सर्ट खत्म कर दिया था लेकिन दर्शकों ने उसे छोड़ देने से इनकार कर दिया था। वीडियो को गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया गया था।
इकबाल बानो के गायन की कई प्रतियां जब्त कर नष्ट कर दी गई थी। लेकिन इकबाल बानो के चाचा ने उनकी एक कॉपी को बचाने में सफल रहे। जिसे उन्होंने उन दोस्तों को सौंप दिया था, जो इसे दुबई लेकर गए थे। जहां इसकी कॉपी की जाती थी और व्यापक रूप से वितरित की गई। पाकिस्तान की हुकूमत की खिलाफत के लिए इकबाल बानो के पीछे जासूस लगाए गए थे।
इकबाल बानो को लोग आज फैज अहमद फैज की नज्म 'हम देखेंगे' के विवाद के बाद सोशल मीडिया पर लोग याद कर रहे हैं। देखें लोगों की प्रतिक्रिया
#FaizAhmedFaiz is an overrated revolutionary like most of them are nowadays. No revolution came in the military theocracy of Pakistan even as he compromised principles of Marxism & added god to his poetry. Thanks to Iqbal Bano who turned his highfalutin words alive with her voice
— Aarti Tikoo Singh (@AartiTikoo) January 2, 2020
Iqbal Bano immortalised #HumDekhenge with her voice. In solidarity and support, I sang a few lines of Faiz's great work. There may be mistakes and I'm not good at singing. But I tried and I'm happy with this. pic.twitter.com/jHYRBVAjiJ
— Arya (@thecuriouself) January 2, 2020
Listening to Hum Dekhenge by Iqbal Bano, still can't incite my anti hindu feels 😔https://t.co/mbAZgDI5YS
— poorapahaadi (@gordonramashray) January 2, 2020
Iqbal Bano belonged to Delhi, her family lived in Gali Qasim Jan, near Ghalib’s Haveli. When she came to Delhi in 80s I took her there. She made “Hum Dekhenge” into a poem of protest against rulers by her courage & determination. https://t.co/9fX8MJRyrW
— shahid siddiqui (@shahid_siddiqui) January 2, 2020
See the moment in Zia's black regime, in 1986 Iqbal Bano recited Faiz's poem 'Hum Dekhain gay' at Alhamrah Hall Lahore. The hall was filled with hundreds of people who responded with the Slogans 'Inqalaab Zindabad'.#FaizAhmedFaizpic.twitter.com/SfHvi0lIsj
— Salman Durrani (@salmandurrani0) January 2, 2020
By 1985, dictator Zia had already banned sari. "To challenge Zia, Iqbal Bano wore a black sari and sang Faiz's nazm in Lahore. Bano's act challenged "Hinduphobia" back then and today we are saying the song is Hinduphobic, a complete irony: @iamranahttps://t.co/1hIUnX8Y6g
— Sanjukta Basu (@sanjukta) January 2, 2020
Iqbal Bano giving IIT Kanpur committee the ultimate deathstare /hum dekh rahe hain /main aaoon udhar? #HumDekhengepic.twitter.com/pQL0ar24ZA
— Paromita Vohra (@parodevi) January 2, 2020
इकबाल बानो का परिचय
इकबाल बानो का जन्म 27 अगस्त, 1935 को दिल्ली में हुआ था। साल 1952 में इकबाल बानो पाकिस्तान चली गई थीं। इकबाल बानो पाकिस्तान की बेहद सम्मानित गायिका थीं। 1974 में उन्हें पाकिस्तान का प्रतिष्ठित अवॉर्ड ‘प्राइड ऑफ परफॉरमेंस’ (तमगा-ए-हुस्न-ए-कारकर्दगी) से सम्मानित किया गया था। ये कला और साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे बड़ा पुरस्कार है। 21 अप्रैल 2009 के दिन 74 वर्षीय इकबाल बानो का निधन हो गया था।
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