जयंती विशेष: मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है, उम्र का बेहतरीन हिस्सा है, पढ़ें जोश मलीहाबादी के 8 शेर

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: December 5, 2019 11:44 IST2019-12-05T07:09:36+5:302019-12-05T11:44:35+5:30

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मशहूर शायर जोश मलीहाबादी का जन्म 5 दिसंबर, 1898 को उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद में हुआ था। शायर-ए-इंकलाब के नाम से जाने गये मलीहाबादी अपने समय के उर्दू के सबसे प्रख्यात शायरों में से एक हैं।

जोश मलीहाबादी की ऑटोबायोग्राफी 'यादों की बारात' आज भी उर्दू की सबसे बेहतरीन किताबों में से एक मानी जाती है। इनका असल नाम शब्बीर हसन खान था।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी मलीहाबादी के मुशायरों के मुरीद थे। दोनों की दोस्ती के किस्से भी खूब मशहूर हैं।

बंटवारे के बाद जोश मलीहाबादी 1956 तक भारत के नागरिक रहे। हालांकि इसके बाद वे पाकिस्तान चले गये और वहीं की नागरिकता ले ली।

जोश मलीहाबादी उर्दू के साथ-साथ अंग्रेजी, अरबी और पर्सियन भाषा के भी अच्छे जानकार थे।

जोश मलीहाबादी के पूर्वज मुहम्मद बुलंद खां नवाबी शासनकाल में काबुल से भारत आए थे। कुछ समय फर्रुखाबाद में रहने के बाद वे स्थाई रूप से मलीहाबाद में बस गए।

जोश मलीहाबादी और जवाहर लाल नेहरू के बीच काफी मित्रता थी। कहा जाता है कि नेहरू ही वह वजह थे जिसके कारण जोश मलीहाबाद ने बंटवारे के बाद शुरू में भारत में रहने का फैसला किया था।

बहरहाल, पाकिस्तान जाने के बाद जोश मलीहाबाद अपने जीवन के आखिरी क्षणों तक वही रहें। उनका निधन 22 फरवरी, 1982 को इस्लामाबाद में हुआ।

पाकिस्तान जाने के बाद जोश मलीहाबादी 1967 में भारत के दौरे पर भी लौटे और बॉम्बे (मुंबई) में एक इंटरव्यू दिया। इसके बाद उन्हें पाकिस्तान में अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था।