Budget: स्वास्थ्य क्षेत्र में पड़ोसी देश बांग्लादेश और नेपाल से पिछड़ा भारत, जानें 6 बड़ी वजह

By संदीप दाहिमा | Published: February 1, 2020 06:58 AM2020-02-01T06:58:58+5:302020-02-01T06:58:58+5:30

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लंदन के एक संगठन ब्लूमबर्ग द्वारा जारी विश्व स्वास्थ्य सूचकांक-2019 (World Health Index-2019) के अनुसार, स्वास्थ्य और सुविधाओं के मामले में 169 देशों की लिस्ट में भारत 120वें स्थान पर है। चिंता की बात यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत पड़ोसी देश श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश से भी पिछड़ा हुआ है। स्पेन दुनिया में सबसे स्वस्थ राष्ट्र बन गया है जबकि इटली दूसरे स्थान पर है।

लाइव मिंटकी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने सार्वजनिक सेवाओं के विस्तार में प्रगति की है। उदाहरण के लिए, 2015 में, एक दशक पहले के 2,336 व्यक्तियों की तुलना में प्रत्येक 1,833 लोगों के लिए एक सरकारी अस्पताल का बिस्तर था। आंकड़े बताते हैं कि इनका वितरण सही नहीं है। उदाहरण के लिए, बिहार के प्रत्येक 8,789 लोगों की तुलना में गोवा में प्रत्येक 614 लोगों के लिए एक सरकारी अस्पताल का बिस्तर है।

एमबीबीएस कार्यक्रमों और नर्सिंग पाठ्यक्रमों में हाल ही में वृद्धि के बावजूद भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में पर्याप्त बेहतर प्रोफेशनल नहीं हैं। इसके अलावा इनका वितरण असमान है। गुजरात से पश्चिम बंगाल तक कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में,विशेषज्ञों की कमी 80% से अधिक है।

प्राइवेट हॉस्पिटल्स में बेहतर इलाज और सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के अनुसार पिछले दो दशकों में सार्वजनिक अस्पतालों के उपयोग में कमी देखी गई है। केवल 32% शहरी भारतीय लोग अब इनका उपयोग करते हैं, जबकि साल 1995-96 में यह आंकडा 43% था। इस गिरावट की सबसे बड़ी वजह यह है कि यहां पढ़े-लिखे हेल्थ प्रोफेशनल नहीं है।

केंद्र सरकार स्वास्थ्य बजट के लिए बहुत अधिक राशि आवंटित नहीं करती है। देश की बढ़ती आबादी और तेजी से फैल रही बीमारियों को देखते हुए स्वास्थ्य बजट काफी नहीं था। सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में कम खर्च करती है जिस वजह से इस क्षेत्र में सुधार नहीं हो पाता है। देश में अभी भी अस्पतालों की भारी कमी है। सबसे जरूरी है कि सरकार इस बार के बजट में मेडिकल सेवाओं पर ज्यादा ध्यान दें जिससे अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों की हालत में सुधार किया जाए।

आधुनिक भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में भी गुणवत्ता, स्वच्छ, अप-टू-डेट डेटा प्राप्त करना मुश्किल है। यह एनएसएसओ से लेकर भारत के रजिस्ट्रार जनरल तक, कई एजेंसियों की मौजूदगी के बावजूद है। डेटा अधूरा है (कई मामलों में यह निजी क्षेत्र को छोड़कर) और कई बार, इसे दोहराया गया है। इससे भी बदतर, एजेंसियां एक-दूसरे से बात नहीं करती हैं। इसके अलावा, इसका उपयोग आउटपुट और परिणामों पर अपर्याप्त ध्यान देने के कारण सीमित है।

चिकित्सा उपचार की लागत इतनी बढ़ गई है कि देश के एक बड़े तबके के लिए स्वास्थ्य सेवाएं लेना भारी पड़ गया है। जनऔषधि अभियान जैसी कई योजनाएं हैं, जो सस्ती कीमतों और अलग-अलग मूल्य विनियमन नीतियों पर 361 जेनेरिक दवाओं को उपलब्ध कराती हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों में इनका कार्यान्वयन सही नहीं रहा है। भ्रष्टाचार भी दवाओं और सेवाओं को लोगों तक पहुंचने में रोकता है।