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'महाराष्ट्र सरकार को पेंशन देने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों तक पहुंचना चाहिए'

By भाषा | Updated: October 9, 2021 18:38 IST

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मुंबई, नौ अक्टूबर बम्बई उच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों के लिए पेंशन योजना, ऐसे व्यक्तियों की मदद और सम्मान करने की इच्छा के साथ पेश की गई थी, तो दस्तावेजों की कमी या देर से आवेदनों की वजह से दावों को खारिज करना महाराष्ट्र सरकार के गलत व्यवहार को दिखाता है।

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को स्वतंत्रता सेनानियों और उनके आश्रितों तक पहुंचना चाहिए और उन्हें योजना का लाभ देना चाहिए, न कि ऐसे लोगों से आवेदन दाखिल कराने चाहिए।

अदालत ने बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार को अक्टूबर 2021 से ‘स्वतंत्रता सैनिक सम्मान पेंशन योजना, 1980’ के तहत एक स्वतंत्रता सेनानी की 90 वर्षीय विधवा को पेंशन का भुगतान शुरू करने का निर्देश दिया।

यह आदेश रायगढ़ जिले की निवासी शालिनी चव्हाण द्वारा दाखिल एक याचिका पर पारित किया गया, जिसने अनुरोध किया था कि योजना का लाभ उन्हें दिया जाए, क्योंकि उनके दिवंगत पति लक्ष्मण चव्हाण एक स्वतंत्रता सेनानी थे।

आदेश की प्रति शनिवार को उपलब्ध कराई गई।

अदालत ने कहा, ‘‘यदि स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवार के लिए योजना उन लोगों की सहायता और सम्मान करने की सच्ची इच्छा के साथ शुरू की गई थी, जिन्होंने देश के लिए अपने जीवन का सबसे अच्छा हिस्सा दिया था, तो यह सरकार द्वारा विभिन्न कारणों से ऐसे दावों को खारिज करना गलत है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘वास्तव में, सरकार को स्वतंत्रता सेनानियों या उनके आश्रितों का पता लगाना चाहिए और उन्हें पेंशन के लिए आवेदन देने की आवश्यकता बताने के बजाय पेंशन देनी चाहिए। यह योजना को लागू करने की सच्ची भावना होगी, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना है।’’

पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां मूल दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, राज्य सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या यह एक वास्तविक मामला है और क्या दस्तावेज यह साबित करते हैं कि व्यक्ति ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।

पीठ ने मामले को छह जनवरी, 2022 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

याचिका के अनुसार, लक्ष्मण चव्हाण ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था, और बाद में उन्हें 17 अप्रैल, 1944 से 11 अक्टूबर, 1944 तक मुंबई की भायखला जेल में बंद कर दिया गया। 12 मार्च, 1965 को उनकी मृत्यु हो गई थी।

याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार को उन्हें 10 लाख रुपये की अनुग्रह राशि का भुगतान करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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