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यूएपीए को इस तरह से सीमित करने का देशव्यापी असर हो सकता है : न्यायालय, तीनों छात्रों को शीर्ष अदालत का नोटिस

By भाषा | Updated: June 18, 2021 19:39 IST

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नयी दिल्ली, 18 जून उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली दंगा मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने के फैसले में उच्च न्यायालय द्वारा आतंकवाद रोधी कानून यूएपीए के दायरे को ‘सीमित करना एक महत्वपूर्ण’ मुद्दा है जिसका पूरे देश पर असर हो सकता है। इसलिए इसकी व्याख्या की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने हालांकि तीनों आरोपियों की जमानत देने के उच्च न्यायालय के 15 जून के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया, लेकिन स्पष्ट किया कि इन फैसलों को देश में अदालतें मिसाल के तौर पर दूसरे मामलों में ऐसी ही राहत के लिए इस्तेमाल नहीं करेंगी।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि हमारे लिये ‘‘परेशानी’’ की बात यह है कि उच्च न्यायालय ने जमानत के फैसले में पूरे यूएपीए पर चर्चा करते हुए ही 100 पृष्ठ लिखे हैं और शीर्ष अदालत को इसकी व्याख्या करनी होगी।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसलों को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की अपीलों पर जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तनहा को नोटिस जारी किये हैं। तीनों आरोपियों को इन अपील पर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने हैं। इस मामले पर अब 19 जुलाई को शुरू हो रहे हफ्ते में सुनवाई की जाएगी।

इन आरोपियों को जमानत देने के उच्च न्यायालय के फैसलों पर रोक लगाने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा कि किसी भी अदालत में कोई भी पक्ष इन फैसलों को मिसाल के तौर पर पेश नहीं करेगा। पीठ ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादी (नरवाल, कालिता और तनहा) को जमानत पर रिहा करने पर इस वक्त हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।’’

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी कि उच्च न्यायालय ने तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देते हुए पूरे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) को पलट दिया है। इस पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह मुद्दा महत्वपूर्ण है और इसके पूरे भारत में असर हो सकते हैं। हम नोटिस जारी करके दूसरे पक्ष को सुनना चाहेंगे। इस कानून की जिस तरह व्याख्या की गई है उस पर संभवत: उच्चतम न्यायालय को गौर करने की आवश्यकता होगी। इसलिए हम नोटिस जारी कर रहे हैं।’’

छात्र कार्यकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि उच्चतम न्यायालय को यूएपीए के असर और व्याख्या पर गौर करना चाहिए ताकि इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत का सुविचारित फैसला आए।

न्यायालय ने कहा, ‘‘कई सवाल हैं जो इसलिए खड़े हुए क्योंकि उच्च न्यायालय में यूएपीए की वैधता को चुनौती नहीं दी गई थी। ये जमानत अर्जियां थी।’’

इस मामले की सुनवाई की शुरुआत में मेहता ने उच्च न्यायालय के फैसलों का उल्लेख किया और कहा, ‘‘पूरे यूएपीए को सिरे से उलट दिया गया है।’’ उन्होंने दलील दी कि इन फैसलों के बाद तकनीकी रूप से निचली अदालत को अपने आदेश में इन टिप्पणियों को रखना होगा और मामले में आरोपियों को बरी करना होगा।

मेहता ने कहा कि दंगों के दौरान 53 लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक घायल हो गए। ये दंगे ऐसे समय में हुए जब अमेरिका के राष्ट्रपति और अन्य प्रतिष्ठित लोग यहां आए हुए थे।

सालिसीटर जनरल ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने व्यापक टिप्पणियां की है। वे जमानत पर बाहर हैं, उन्हें बाहर रहने दीजिए लेकिन कृपया फैसलों पर रोक लगाइए। उच्चतम न्यायालय द्वारा रोक लगाने के अपने मायने हैं।’’

प्रदर्शन के अधिकार के संबंध में उच्च न्यायालय के फैसलों के कुछ पैराग्राफ को पढ़ते हुए मेहता ने कहा, ‘‘अगर हम इस फैसले पर चले तो पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करने वाली महिला भी प्रदर्शन कर रही थी। कृपया इन आदेशों पर रोक लगाएं।’’

सिब्बल ने कहा कि छात्र कार्यकर्ताओं के पास मामले में बहुत दलीलें हैं। पीठ ने अपीलों पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि चार हफ्त के भीतर जवाब पेश किया जाएं।

उच्च न्यायालय ने 15 जून को जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कालिता और जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तनहा को जमानत दी थी। उच्च न्यायालय ने तीन अलग-अलग फैसलों में छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया था।

अदालत ने कहा था,‘‘ ऐसा लगता है कि सरकार ने असहमति को दबाने की अपनी बेताबी में प्रदर्शन करने का अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा धुंधली कर दी तथा यदि इस मानसिकता को बल मिला है तो यह ‘लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा’। ’’

छात्रों को 50-50 हजार रूपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानतों पर जमानत दी गई है। उन्हें 17 जून को जेल से रिहा किया गया था। यह मामला पिछले वर्ष उत्तर-पूर्वी दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से संबंधित है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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