स्कूली किताबों के बोझ, लंबी दुपहरी के बोरियत भरे दिनों से लेकर पहले प्यार के छूटने के बाद के गमगीन दिनों में जगजीत सिंह की गजलें हीं साथी बनीं थी. उनकी आवाज में तमाम शायरों के शेर और मिसरों ने जिंदगी में मिठास घोली है.
खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियकत समझे जाने वाली गजलों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय जगजीत सिंह को ही जाता है. बेगम अख्तर, मेंहदी हसन और गुलाम अली ने जहां लोगों को गजलों के साहिल पर लाकर खड़ा कर किया तो जगजीत सिंह ने लोगों को उस समंदर की लहरों में गोते लगाना सिखाया.
उन्होंने अपनी गजलों में आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी हर वो बात कही जिसे कहने के लिए दुनिया के पास वक्त नहीं था. आज उन्हें गुजरे हुए 7 साल हो गए हैं, लेकिन रुई के फोहे सी गजल सम्राट की मखमली मुलायम आवाज हमारे जहन में जिंदा है. हॉस्टल में कोई जगजीत के आस-पास नहीं रहना चाहता था
8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानर में जन्मे जगजीत, पहले जगमोहन थे. ये नाम एक ज्योतिषी के सलाह पर बदल कर बाद में जगजीत हुआ था. स्कूली शिक्षा श्रीगंगानगर के खालसा स्कूल में ही हुई. इसके बाद वे आगे पढ़ाई और आंखों में आईएएस का सपना लिए जालंधर के डीएवी कॉलेज आ गए. गाना औऱ हारमोनियम बजाना साइड शौक था जो यहां भी बरकरार रहा. ग्रेजुएशन के दौरान 3 साल के लिए कॉलेज का हॉस्टल मिल गया. यहां टॉपर को अच्छा और अंदर का कमरा मिलता था. पढ़ाई में कमजोर लड़कों के लिए कमरे की दो कैटेगरियां थी. पहला सीढ़ियों के पास वाले कमरे जहां दिन भर लोगों के चढ़ने उतरने की आवाज से शोर होता रहता था. दूसरा बाथरूम के पास वाले कमरे जहां सुबह शोर और दिन भर दुर्गंध. लेकिन जगजीत के आने के बाद वहां तीसरी कैटेगरी भी जुड़ गई. जगजीत कोरिडोर, यहां भोर होने के साथ ही मोहम्मद रफी के गानों का रियाज शुरू हो जाता था. कभी कभी रात में भी आलाप छिड़ जाता तो आस पड़ोस वालों का क्या होता होगा आप समझ ही सकते हैं. नकल करते पकड़ गए थे जगजीत
जगजीत सिंह अपने कॉलेज फेस्टिवल की शान थे. म्यूजिक कॉम्पटीशन के सारे अवॉर्ड उन्हीं की झोली में आते थे यही वजह थी कि वे अपने स्कूल के प्रिंसिपल सूरजभान के चहेते भी थे. लेकिन परीक्षा की कॉपी में किशोर दा के नगमे लिख देने से नंबर थोड़े ही मिलते तो पुर्चियां बनाकर ले जाते थे. एक बार नकल करते धर लिए गए और अकेले कमरे में बैठा दिया गया. टीचर ने कहा अब यहां लिखो आराम से. एक लड़की, जिसके घर के सामने आकर ही उतर जाती थी साइकिल की चैन
कॉलेज के दिनों में आशिकी भी की. एक लड़की थी जिसके घर के चक्कर अक्सर जगजीत अपनी साइकिल से लगाया करते थे. उसे देखने के बहाने कभी उसके घर के सामने ही उनकी साइकिल की चैन उतर जाती तो कभी टायर पंचर हो जाता. एक दफा लड़की के पिता जी ने देख लिया तो सीधा उनके पिता जी के पास ले गए और कहा कि लड़के की साइकिल ठीक करा दीजिए हमारे घर के सामने ही आकर खराब हो जाती है. जिंगल गाने से की करियर की शुरुआत
ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी में एम. ए. इतिहास में दाखिला ले लिया. जिसे बीच में ही छोड़ दिया. जगजीत अब आईएएस बनने का सपना छोड़ चुके थे और अब संगीत में ही नाम बनाना चाहते थे सो 1965 में मुंबई चले आए. यहां जिंगल और रेडियो कॉमर्शियल गाने से शुरुआत की. यहीं उनकी मुलाकात चित्रा सिंह से हुई. पहले से शादी शुदा चित्रा का उनकी पत्नी बनने तक की कहानी बेहद दिलचस्प है. छी...ये भी कोई सिंगर है
एक रोज चित्रा सिंह अपनी बालकनी में खड़ी थीं. नीचे उन्होंने सफेद टाइट पेंट और चैक की कमीज पहने एक आदमी को देखा. चित्रा उसकी चाल ढाल देख हंस पड़ी कुछ ही देर बाद उनके पड़ोस में रह रहे गुजराती परिवार के घर से तेज आवाज में आलाप सुनाई दिया. शाम को चित्रा जब पड़ोसी के घर गईं तो वहां जगजीत की तारीफों के पुल बांधे जाने लगे. पड़ोसी ने उन्हें जगजीत की रिकॉर्डिंग सुनाई तो चित्रा बोलीं, छी... ये भी कोई सिंगर है. गजल तो तलत महमूद गाते हैं. इधर चित्रा के पति ब्रिटानिया कंपनी में बड़े अधिकारी थे. गाने के बेहद शौकीन थे तो घर पर ही स्टूडियो बना रखा था. दिन भर म्यूजिक कंपोजर्स का मजमा लगा रहता था. एक दिन महिंदरजीत सिंह के एलबम के लिए जगजीत को उनके स्टूडियो में रिकॉर्डिंग का मौका मिला. जगजीत घर पहुंचे तो चित्रा ने दरवाजा खोला. चित्रा ने देखा दरवाजे पर एक ऊंघता हुआ सा आदमी खड़ा है और ये वही आदमी है जिसे उन्होंने उस रोज सड़क पर देखा था. ये दोनों की पहली मुलाकात थी. जगजीत अंदर पहुंचे. गाने की रिकॉर्डिंग में चित्रा को साथ में गाना था, लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि वे भारी आवाज के साथ नहीं गा पाएंगी, तो जगजीत ने अकेले ही गगाना रिकॉर्ड किया. इसके बाद से अक्सर रिकॉर्डिंग के सिलसिले में जगजीत का चित्रा सिंह के घर आना जाना होने लगा. जब पहली बार चित्रा ने की जगजीत के गाने की तारीफ
साल था 1967 का चित्रा और जगजीत एक ही स्टूडियो में रिकॉर्डिंग कर रहे थे. बाहर निकले तो चित्रा ने उन्हें अपनी गाड़ी में लिफ्ट ऑफर की, घर आया तो भीतर चाय के लिए बुला लिया. चित्रा किचन में चाय बनाने चली गईं. इधर ड्राइंग रूम में बैठे जगजीत सिंह 'धुआं उट्ठा था' गजल गुनगुना रहे थे. ये गजल खुद जगजीत सिंह ने कंपोज की थी. ये चित्रा को इतनी पसंद आई कि वे तारीफ किए बिना नहीं रह पाईं. ये पहला मौका था जब उन्हें जगजीत की गायकी भा गयी थी. चित्रा के पति से कहा कि वे उनकी पत्नी से करना चाहते हैं शादी
बेटी मोनिका होने के बाद चित्रा और उनके पति देबू के बीच अनबन होने लगी. उन्हें देबू के किसी और के साथ अफेयर के बारे में पता चला, तो वे अपनी बेटी को लेकर एक वन रूम के फ्लैट में आ गईं. जिंगल क्वीन से संगीत बिरादरी के तमाम लोगों ने किनारा कर लिया लेकिन उन मुश्किल दिनों में एक अच्छे दोस्त की तरह जगजीत सिंह उनके साथ खड़े रहे. एक रोज जगजीत ने चित्रा से शादी की इच्छा जताई. चित्रा ने कहा कि वह शादी शुदा हैं और तलाक अभी तक नहीं हुआ. इस पर जगजीत बोले कि वे इंतजार करेंगे. और 1970 में ये इंतजार खत्म हुआ. चित्रा के पति देबू दूसरी शादी कर चुके थे एक बेटी भी हो गई थी.जगजीत सिंह ने शादी से पहले देबू को जाकर भी बता दिया कि वे चित्रा से शादी करना चाहते हैं. आखिरकार 30 रुपए के खर्च में दोनों ने एक मंदिर में शादी कर ली. चित्रा-जगजीत की जुगलबंदी
इसके बाद दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर गजल गायकी का ये सफर तय करना शुरू किया. चित्रा के साथ उनका पहला एलबम 'द अनफॉरगेटेबल्स' आया, जिसे असल में आज तक कोई नहीं भुला पाया. दोंनों ने मिलकर ढेरों स्टेज शोज किए लेकिन कभी चित्रा की पतली आवाज और जगजीत की सिंह का बास साउंड बेमेल नहीं लगा. दर्शक दोनों को साथ में सुनकर झूम उठते. 1982 में हुए लाइव कांसर्ट, लाइव एट रॉयल अल्बर्ट हॉल के टिकट सिर्फ 3 घंटे में बिक गए थे. शोहरत जगजीत सिंह के कदम चूम रही थी. गायकी के अलावा उन्हें एक शौक और था घुड़ सवारी का. खाली समय में जगजीत महालक्ष्मी इलाके में रेसकोर्स में जाकर अपने घोड़ों के साथ घंटो समय बिताया करते थे. स्टेज पर एक जगजीत ऐसे भी होते थे, जो सिर्फ चित्रा के थे. कभी शरारती मुस्कान के साथ उन्हें देख कर छेड़ते तो कभी खुद के पंजाबी और उनके बंगाली होने का भरी महफिल में मजाक बनाते और चित्रा सिर्फ गर्दन झुकाए अपने गाने में मग्न बैठी रहतीं. जगजीत ने लोक गायन में चित्रा को भी ऐसा रमा दिया कि लोगों को एहसास ही नहीं होता था कि वे बंगाली हैं. बेटे की मौत के बाद करियर पर लगा ब्रेक
1990 में इस परिवार की खुशियों को किसी नजर लग गई. भरी जवानी में एक रोड एक्सीडेंट में जगजीत सिंह ने अपने बेटे विवेक को खो दिया. इस हादसे के कुछ समय बाद जगजीत तो संभल गए लेकिन चित्रा सिंह ने हमेशा-हमेशा के लिए गाना छोड़ दिया. इन 27 साल में पहली बार इसी साल अप्रैल में वाराणसी में हुए संकट मोचन संगीत समारोह में उन्हें सार्वजनिक तौर पर देखा गया था. बेटे की मौत के बाद जगजीत सिंह का चित्त आध्यात्म की ओर मुड़ गया. यहां भजन गायकी में उन्हें सुकून मिला और उन्होंने हे राम जैसे हिट एलबम दिए. कई गजल गायकों को थे नापसंद
भोजपुरी, बंगाली और पंजाबी से लेकर जगजीत सिंह ने सैकड़ों गाने गाए और लाइव शोज किए. गजल को लेकर उन पर ये आरोप भी लगाए गए कि उन्होंने उसकी पारंपरिक शैली के साथ छेड़छाड़ की है. उनकी गजलों में हारमोनियम, तबला और सारंगी के अलावा डबल बास गिटार और पिआनो का चलन शुरू हो गया था. कुंदन लाल सहगल, तलत महमूद जैसे तमाम गजल गायकों को शास्त्रीयता से हटकर उनके ये मॉडर्न प्रयोग चुभ रहे थे. 1998 में अपने दोस्त अशोक भल्ला के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए जगजीत लुधियाना गए थे. यहां उन्हें माइनर हॉर्ट अटैक आ गया जिसके बाद उन्हें वहीं के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां से बाद में दिल्ली लाया गया. कुछ दिनों बाद जगजीत को छुट्टी मिली लेकिन डॉक्टर ने शराब और सिगरेट को हाथ न लगाने की सख्त हिदायत दी. इसके बाद वे देहरादून वालेंदु प्रसाद के आश्रम चले आए. यहां 3-4 हफ्तों में रहकर ही वे एएक दम चंगे हो गए और रुटीन एक बार फिर पटरी आ गया. 70 साल के जश्न का सपना रह गया अधूरा
जगजीत 70 साल के होने को थे और हॉरमनी प्रोडक्शंस ने उनके सम्मान में देश के विभिन्न शहरों में 70 म्यूजिक शोज की एक श्रंखला रखी थी. जगजीत इनमें शामिल होकर अपने 70 वें जन्मदिन को और खास बनाना चाहते थे. लेकिन अफसोस ये सफर 46 पर ही आकर रुक गया. 23 सितंबर को उनका गुलाम अली के साथ शो था. 22 सितंबर को रात को खाने के बाद उनकी तबियत अचानक बिगड़ गई तो उन्हें तुरंत लीलावती अस्पताल ले जाया गया. जगजीत को ब्रेन हैमरेज हुआ था. इसके बाद वे लगभग 18 दिनों तक कोमा में रहे और 10 अक्टूबर 2011 को इस संसार से विदा लेकर जाने कहां चल गए. 41 वर्षों के गायकी के इस सफर में जगजीत के 150 से ज्यादा म्यूजिक एलबम आए. उनके ढेरों गीतों को हिंदी फिल्मों में फिल्माया गया. 2003 में उन्हे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान में से एक पद्मभूषण से नवाजा गया. 2014 में उनकी याद और सम्मान में दो डाक टिकट भी सरकार की ओर से जारी किए गए. जगजीत सिंह के बारे में मशहूर शायर और गीतकार गुलजार कहते हैं- एक बौछार था वो शख्स, बिना बरसे किसी अब्र की सहमी सी नमी से जो भिगो देता था... एक बोछार ही था वो, जो कभी धूप की अफशां भर के दूर तक, सुनते हुए चेहरों पे छिड़क देता था नीम तारीक से हॉल में आंखें चमक उठती थीं सर हिलाता था कभी झूम के टहनी की तरह, लगता था झोंका हवा का था कोई छेड़ गया है गुन्गुनाता था तो खुलते हुए बादल की तरह मुस्कराहट में कई तरबों की झनकार छुपी थी गली क़ासिम से चली एक ग़ज़ल की झनकार था वो एक आवाज़ की बौछार था वो !! आज जगजीत हमारे बीच न सही लेकिन अपनी गजलों से वे हमारे दिल में जिंदा हैं और सदियों तक रहेंगे.