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वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः काबुल को लेकर भारत चुप क्यों है? 

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: January 15, 2019 09:16 IST

मैं विदेश मंत्नी सुषमा स्वराज से आशा करता हूं कि वे पहल करें और तालिबान से सीधे बात करें. उनसे संपर्क बढ़ाएं. तालिबान स्वाभिमानी और लड़ाकू होते हैं. यदि अमेरिका ने अफगानिस्तान से कूच कर दिया तो काबुल में तालिबान को सत्तारूढ़ होने से रोकना लगभग असंभव होगा.

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अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के प्रयास आजकल जितने जोरों से हो रहे हैं, शायद पिछले तीस साल में कभी नहीं हुए. कभी काबुल, कभी इस्लामाबाद, कभी दोहा, कभी तेहरान, कभी मास्को, कभी वाशिंगटन डीसी और अब नई दिल्ली में भी नेता और अफसर लगातार मिल रहे हैं. अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विशेष दूत जलमय खलीलजाद ने भारत आकर हमारे नेताओं और अफसरों से बात की है. समरकंद जाकर हमारी विदेश मंत्नी सुषमा स्वराज ने मध्य एशिया के पांचों मुस्लिम-राष्ट्रों की बैठक में अफगानिस्तान की विशेष रूप से चर्चा की है.

यह सब इसलिए हो रहा है कि मध्य एशिया के सभी राष्ट्रों और भारत के बीच अफगान इलाका सदियों से एक सेतु का काम करता रहा है. यदि भारत के लिए अफगानिस्तान होकर जाने वाला रास्ता खुल जाए तो भारत तो मालामाल हो ही जाएगा, इन सब विकासमान राष्ट्रों की समृद्धि में भी चार चांद लग जाएंगे. लेकिन आश्चर्य है कि भारत सरकार कोई पहल अपनी तरफ से क्यों नहीं कर रही है? 

वह एक ही रट लगाए हुए है कि जो भी समझौता हो, वह अफगानों द्वारा हो, उनके बीच हो और वे ही करें. यह बात कहने के लिए ठीक है, सिद्धांत रूप से भी ठीक है लेकिन यदि वे यह कर सकते होते तो पिछले 18 साल से अफगानिस्तान में खून की नदियां क्यों बहती रहतीं? क्या अमेरिकी, रूसी, चीनी, ईरानी और पाकिस्तानी सरकारें मूर्ख हैं, जो अपने-अपने ढंग से पहल कर रही हैं? वे तालिबान और काबुल सरकार के नेताओं से बात कर रही हैं या नहीं?  

मैं विदेश मंत्नी सुषमा स्वराज से आशा करता हूं कि वे पहल करें और तालिबान से सीधे बात करें. उनसे संपर्क बढ़ाएं. तालिबान स्वाभिमानी और लड़ाकू होते हैं. यदि अमेरिका ने अफगानिस्तान से कूच कर दिया तो काबुल में तालिबान को सत्तारूढ़ होने से रोकना लगभग असंभव होगा. ऐसे में भारत फिर पिछड़ जाएगा. मेरी राय है कि भारत अफगानिस्तान का सबसे समर्थ पड़ोसी है. उसने वहां पैसा भी खूब लगाया है और कुर्बानियां भी दी हैं. वहां शांति स्थापित करने में उसकी पहल सबसे ज्यादा, सबसे पहले और सबसे मजबूत होनी चाहिए.

टॅग्स :अफगानिस्तान
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