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ब्लॉगः गिलगित की आवाज दबा रहे पाक के हुक्मरान

By राजेश बादल | Published: September 06, 2023 10:28 AM

दरअसल गिलगित इलाके में शिया आबादी बहुतायत में रहती है। ईरान में सबसे अधिक शिया रहते हैं। उसके बाद भारत में शियाओं की संख्या है। पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान में लगभग दस लाख शिया मुसलमान रहते हैं। वहां जब तब शिया-सुन्नी टकराव होता रहता है। सुन्नी उन्हें सम्प्रदाय से बाहर बताते हैं और जब भी दोनों मुस्लिम समुदायों में संघर्ष होता है, पाकिस्तान सरकार उसे साम्प्रदायिक तनाव बताती है।

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यह दिलचस्प है कि साम्प्रदायिक आधार पर बने पाकिस्तान में ही साम्प्रदायिकता के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए हैं। सरकार ने गिलगित बाल्टिस्तान में दिनोंदिन बढ़ रहे तनाव के मद्देनजर चेतावनी जारी की है कि वहां साम्प्रदायिकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। जो लोग साम्प्रदायिकता फैलाने का प्रयास करेंगे, उन पर सख्त कार्रवाई होगी। चिलास कस्बे की दिया मीर युवा उलेमा कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल मलिक तो साफ-साफ कहते हैं कि जब तक साम्प्रदायिकता भड़काने वालों को सरकारी संरक्षण दिया जाता रहेगा, तब तक इस खूबसूरत प्रदेश में शांति बहाल होना मुश्किल है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि पश्चिमी और यूरोपीय देश अपने नागरिकों को पाकिस्तान के इस इलाके में नहीं जाने की सलाह दे रहे हैं। अमेरिका ने अपने देश के लोगों से कहा है कि पाकिस्तान के इस उत्तरी भाग में जाना खतरे से खाली नहीं है। कमोबेश ऐसी ही चेतावनी ब्रिटेन ने भी अपने निवासियों को दी है। उसने कहा है कि इस इलाके में साम्प्रदायिक तनाव चरम पर है और गोरों को वहां की यात्रा टालनी चाहिए। कनाडा ने भी ऐसी एडवाइजरी जारी की है।

दरअसल गिलगित इलाके में शिया आबादी बहुतायत में रहती है। ईरान में सबसे अधिक शिया रहते हैं। उसके बाद भारत में शियाओं की संख्या है। पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान में लगभग दस लाख शिया मुसलमान रहते हैं। वहां जब तब शिया-सुन्नी टकराव होता रहता है। सुन्नी उन्हें सम्प्रदाय से बाहर बताते हैं और जब भी दोनों मुस्लिम समुदायों में संघर्ष होता है, पाकिस्तान सरकार उसे साम्प्रदायिक तनाव बताती है। इसी तरह सुन्नी मुस्लिम अहमदिया मुसलमानों, बोहराओं, बलूचियों को अपने मजहब से बाहर का मानते हैं। भारतीय मुस्लिमों को वे मुहाजिर कहते हैं और उन्हें दोयम दर्जे का बताते हैं। कोई पाकिस्तान के सुन्नियों और फौज को बताए कि उनके कायदे आजम जनाब मुहम्मद अली जिन्ना ने तो भारत में ही रहते हुए पाकिस्तान जाने की अपील सारी मुस्लिम जातियों - उप जातियों से की थी। वे स्वयं भी मुंबई से पाकिस्तान गए थे। इस तरह तो वे भी मुहाजिर ही थे। जिन्ना ने तो कभी मुसलमानों के बीच किसी तरह का फर्क नहीं किया, मगर उनकी उत्तराधिकारी फौज ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए सुन्नियों का सहारा लिया और आज एक मुस्लिम मुल्क में मुसलमान ही मुसलमान नहीं समझे जाते। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है।

बहरहाल, लौटते हैं गिलगित - बाल्टिस्तान के ताजे घटनाक्रम पर। पाकिस्तान सरकार दशकों से वहां धीरे-धीरे खामोशी से सुन्नियों को बसाने का काम करती रही है। इसका विरोध भी समय-समय पर होता रहा है। मौजूदा हाल यह है कि सुन्नियों की आबादी शियाओं से करीब दो गुनी हो चुकी है। इसलिए वहां के मूल निवासी पाकिस्तान सरकार के इस रवैये के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करते रहते हैं। यह प्रांत ताजिकिस्तान, चीन और भारत के कारगिल -द्रास की ओर से जुड़ता है। सीमांत संवेदनशील प्रदेश होने के कारण यहां की हर घटना पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता को चिंता में डाल देती है। चीन अपना ग्वादर तक जाने वाला गलियारा भी इसी क्षेत्र से बना रहा है। गिलगित के स्थानीय निवासी इसके हमेशा विरोध में रहे हैं। वे यदा-कदा भारत में वापस विलय की मांग भी करते रहते हैं और कारगिल का रास्ता खोलने के लिए भी आवाज उठाते रहते हैं। यह बात आईएसआई और पाकिस्तानी सेना को रास नहीं आती। वे जब स्थिति पर नियंत्रण नहीं कर पाते, तो आरोप लगाते हैं कि गिलगित - बाल्टिस्तान में अशांति के पीछे हिंदुस्तान का हाथ है।

अब इस खूबसूरत वादी के लोग बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। उनसे इंटरनेट की सुविधा छीन ली गई है। वे रैली या सभा नहीं कर सकते। वहां धारा एक सौ चौवालीस लगा दी गई है। उन पर निगरानी के लिए दस हजार सुन्नी फौजी भेजे गए हैं। इसके अलावा सुन्नी नागरिक सशस्त्र बल के जवान भी उन पर चौबीस घंटे नजर रखते हैं। हाल ही में गिलगित में जब विरोध प्रदर्शन हुआ तो लोग भारत के समर्थन में नारे लगा रहे थे। इस पर एक सुन्नी मौलवी ने शियाओं पर तीखी टिप्पणी कर दी। इससे हालात बिगड़ गए और न चाहते हुए भी स्थानीय पुलिस को सुन्नी मौलवी के खिलाफ मामला दर्ज करना पड़ा। दूसरी तरफ सुन्नियों ने स्कार्दू में एक शिया मौलवी के विरोध में मामला दर्ज करा दिया। इससे स्थितियां बेहद गंभीर हो गई हैं। अब स्कार्दू इलाके के लोग कह रहे हैं कि उनके लिए भारत जाने वाली कारगिल सड़क खोल दी जाए, जिससे वे अपने जीवन यापन की जरूरी चीजें खरीद सकें। पाकिस्तानी फौज के पहरे ने उन्हें जीते जी मर जाने की नौबत ला दी है। पर्यटन यहां की जीवन रेखा है। यूरोपीय देशों के लोग बड़ी संख्या में यहां आते हैं। वर्षों से यह मांग भी होती रही है कि कारगिल मार्ग खोल दिया जाए, जिससे पर्यटक बेरोकटोक भारत भी आ सकें। लेकिन पाकिस्तान सरकार इस मांग को सख्ती से कुचलती रही है। गिलगित - बाल्टिस्तान के लोग अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता तथा पहचान के लिए बलूचिस्तान के निवासियों की तरह परेशान हो रहे हैं। पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा?

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