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SCO Meeting 2024: पाक में लगातार हिंसा से शंघाई बैठक पर संकट?

By राजेश बादल | Published: October 08, 2024 7:53 AM

SCO Meeting 2024: चीन के बीजिंग में इसका मुख्यालय है. जुलाई 2005 में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान ने पहली बार पर्यवेक्षक के तौर पर इस संगठन की बैठक में हिस्सा लिया था.

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ठळक मुद्देशंघाई सहयोग परिषद की बैठक पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.विश्व की करीब चालीस फीसदी जनसंख्या इसके सदस्य देशों में रहती है.ईरान को 2023 में शंघाई सहयोग संगठन का विधिवत सदस्य बना लिया गया.

SCO Meeting 2024: पाकिस्तान में कराची के जिन्ना अंतरराष्ट्रीय विमानतल पर विस्फोट में दो चीनी नागरिकों की मौत और कुछ विदेशियों के घायल होने से सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट ने इन धमाकों की जिम्मेदारी ली है. यह संगठन पाकिस्तान में चीन के लगातार बढ़ते दखल का विरोध करता आ रहा है. चीन ने शहबाज सरकार से इस आतंकवादी घटना पर सख्त एतराज प्रकट किया है. उसने अफसोस जताया है कि पाकिस्तान में उसके नागरिक बड़ी संख्या में उग्रवादी संगठनों का निशाना बन रहे हैं और मुल्क की हुकूमत उसे रोकने में नाकामयाब रही है.

ऐसे में अगले सप्ताह इस्लामाबाद में होने जा रही शंघाई सहयोग परिषद की बैठक पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों के आंदोलन ने पहले ही सरकार और सेना की नाक में दम कर रखा है. शहबाज सरकार अपने गठन के बाद पहली बार इतने बड़े स्तर पर परेशानियों का सामना कर रही है.

शंघाई सहयोग परिषद की बैठक से इस बार पाकिस्तान ने बड़ी उम्मीदें पाल रखी हैं. आतंकवादी हिंसा से उन्हें झटका लगा है. आगे बढ़ने से पहले एक बार शंघाई सहयोग परिषद के सफर पर एक नजर जरूरी है. शंघाई सहयोग परिषद का गठन 26 अप्रैल 1996 को हुआ था. सदस्य देशों के राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षात्मक हितों की रक्षा करना इस संगठन का मुख्य काम था.

उस समय इसमें छह सदस्य रूस, चीन, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल थे. नौ जून 2017 को इस संगठन में भारत और पाकिस्तान को भी बाकायदा शामिल किया गया. खास बात यह है कि क्षेत्रफल और आबादी के हिसाब से यह संसार का सबसे बड़ा संगठन है. विश्व की करीब चालीस फीसदी जनसंख्या इसके सदस्य देशों में रहती है.

चीन के बीजिंग में इसका मुख्यालय है. जुलाई 2005 में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान ने पहली बार पर्यवेक्षक के तौर पर इस संगठन की बैठक में हिस्सा लिया था. उल्लेखनीय यह है कि ईरान का आवेदन लंबित रहा और अठारह साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद ईरान को 2023 में शंघाई सहयोग संगठन का विधिवत सदस्य बना लिया गया.

इस साल बेलारूस को भी संगठन में एक सीट मिल गई. लौटते हैं अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के मद्देनजर 15-16 अक्तूबर को होने जा रही शंघाई सहयोग परिषद के शासन अध्यक्षों की बैठक पर. भारत के विदेश मंत्री इसमें प्रधानमंत्री का प्रतिनिधित्व करेंगे. यूक्रेन और रूस दो बरस से भी अधिक समय से जंग में उलझे हैं. ईरान और इजराइल के बीच जंग जैसे ही हालात बन गए हैं.

फिलहाल रूस और ईरान दोनों ही अपने-अपने स्तर पर लड़ाई लड़ रहे हैं जबकि यूक्रेन को रूस के खिलाफ नाटो देशों और अमेरिका का समर्थन मिल रहा है. यद्यपि वह नाटो का सदस्य नहीं है. इसी तरह ईरान इजराइली हमले का सामना कर रहा है और फिलहाल अमेरिका ईरान के खिलाफ है. उसने ईरान पर अनेक प्रतिबंध लागू किए हैं.

इस्लामाबाद शिखर बैठक में रूस और ईरान की परिस्थितियों को देखते हुए क्या शंघाई सहयोग परिषद के सदस्य देश एकजुट होंगे? यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यूरोपियन यूनियन के वैदेशिक प्रकोष्ठ ने 2022 में शंघाई सहयोग परिषद को नाटो विरोधी संगठन बताया था.

इसके बाद पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र ने एक ऐसे प्रस्ताव को मंजूरी दी, जो संयुक्त राष्ट्र और शंघाई सहयोग परिषद  के बीच सहयोग स्थापित करने का समर्थन करता था. इससे अमेरिका भड़क गया. मतदान की नौबत आ गई. उसमें शंघाई सहयोग संगठन के पक्ष में 80 मत और विरोध में केवल 2 मत पड़े, जो कि अमेरिका और इजराइल के थे.

शेष 47 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा ही नहीं लिया. इससे अमेरिका बौखलाया हुआ है. अमेरिका की इस संगठन से दूरी का एक कारण यह भी है कि उसने भी शंघाई सहयोग संगठन का पर्यवेक्षक देश बनना चाहा था और अपना आवेदन लगाया था. लेकिन शंघाई सहयोग संगठन ने 2005 में ही उसे खारिज कर दिया था. उसके क्रोध का एक कारण यह भी है.

इस तरह की पृष्ठभूमि में देखें तो शंघाई सहयोग परिषद और नाटो आमने-सामने दिखाई देते हैं. पर दोनों संगठनों में अंतर्विरोध भी कम नहीं हैं. मसलन भारत के चीन और पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं हैं और अमेरिका से यदि बहुत मधुर नहीं तो खराब भी नहीं हैं. यही हाल ईरान का है. भारत के ईरान से अच्छे रिश्ते माने जा सकते हैं.

मगर ईरान और पाकिस्तान के संबंध बिगड़े हुए हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट के मामले में पाकिस्तान हमेशा ईरान और भारत पर आरोप लगाता रहा है. पाकिस्तान में ताजा हिंसक दौर को सिर्फ स्थानीय आतंकवादी वारदात मानकर नहीं छोड़ा जा सकता. शंघाई सहयोग परिषद की बैठक से पहले परदे के पीछे जो चल रहा है, उसकी उपेक्षा भी नहीं की जा सकती.

भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर का शंघाई सहयोग परिषद की बैठक से पहले कथन एक तरह से सही है कि भारत के बैठक में भाग लेने को पाकिस्तान के साथ संबंधों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. वे स्पष्ट कह चुके हैं कि भारत अपने हितों की बलि क्यों कर चढ़ाएगा? यह यात्रा एक तरह से उनकी विवशता भरी यात्रा है.

पाकिस्तान से फिलहाल संबंध सुधरने का कोई संकेत नहीं दिखाई देता और यह भी तय है कि पाकिस्तान और भारत इस बैठक में भी किसी मसले पर एक साथ खड़े नहीं दिखाई देंगे. संभव है कि शंघाई सहयोग परिषद के एजेंडे में वैश्विक तनाव के मुद्दे को स्थान नहीं मिले, मगर यह निश्चित है कि रूस-ईरान और अमेरिका की वर्तमान स्थिति मुद्दा बनी रहेगी. परदे के पीछे तो बात होनी ही है. चीन इस बैठक में अनमने ढंग से भाग लेगा, क्योंकि संगठन का जनक होते हुए भी उसे कोई लाभ नहीं मिलने वाला है.

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