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ब्लॉग: पाकिस्तान के लिए उल्टा पड़ रहा दांव, अब अफगानिस्तान के तालिबानी शासक सिखा रहे सबक

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: December 20, 2022 12:57 IST

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि मंत्री हिना रब्बानी खार को काबुल जाकर बात करनी पड़ी. काबुल में पाक दूतावास के वरिष्ठ राजनयिक की हत्या का भी असफल प्रयास हुआ.

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काबुल में पिछले साल तालिबान की सरकार क्या कायम हुई, पाकिस्तान समझने लगा कि उसकी पौ-बारह हो गई, क्योंकि पिछले दो-ढाई दशक से तालिबान और उसके पहले अफगान मुजाहिदीन को शह देनेवाला पाकिस्तान ही था. लेकिन तालिबान ने पहले अपने हिमायती अमेरिका को सबक सिखाया और अब वह पाकिस्तान के छक्के छुड़ा रहा है. आए दिन तालिबानी और पाकिस्तानी सीमा-रक्षकों के बीच गोलीबारी की खबरें आती रहती हैं. 

अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच जब सर मोर्टिमर डूरंड ने 1893 में डूरंड-रेखा खींची थी, तभी से एक के बाद एक अफगान सरकारों ने उसे मानने से मना कर दिया था. अब जबकि पाक-सरकार 2700 किमी की इस डूरंड रेखा पर खंभे गाड़ने की कोशिश कर रही है, तालिबान सरकार उसका विरोध कर रही है. हजारों अफगान और पाकिस्तानी नागरिक पासपोर्ट और वीजा के बिना एक-दूसरे के देश में रोज आते-जाते हैं. 

दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि मंत्री हिना रब्बानी खार को काबुल जाकर बात करनी पड़ी. काबुल में पाक दूतावास के एक वरिष्ठ राजनयिक की हत्या का भी असफल प्रयास हुआ. 

इसके पहले अल-कायदा के नेता अल-जवाहिरी की काबुल में अमेरिका ने जो हत्या की थी, उसके लिए भी पाकिस्तान की सांठ-गांठ बताई गई थी. यह अभियान प्रकट तौर पर काबुल के तालिबान नहीं चला रहे हैं. 

इसे चला रहे हैं-‘तहरीके-तालिबान-ए-पाकिस्तान’ के लोग. वे हैं तो पाकिस्तानी लेकिन उन्होंने आजकल काबुल को अपना ठिकाना बना लिया है. काबुल के तालिबान दिखाने के लिए इस्लामाबाद और तहरीक के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं लेकिन वे पूरी तरह से ‘तहरीक’ के साथ हैं. उन्होंने दोनों के बीच 5-6 माह का युद्ध-विराम भी करवा दिया था लेकिन तालिबान की ही नहीं, औसत पठानों की भी मान्यता है कि पाकिस्तान के पंजाबी हुक्मरान उन्हें अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं. 

पाकिस्तान सरकार को अब पता चल रहा है कि उसने अफगान आतंकवाद को बढ़ावा देकर अपने लिए गहरी खाई खोद ली है. अब वे ही अफगान पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन गए हैं.

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