लाइव न्यूज़ :

प्रसन्नता और प्रेम के सिवा भला और क्या चाहिए!

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 27, 2021 12:11 PM

लोकमत नागपुर संस्करण की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय अंतरधर्मीय सम्मेलन में ‘धार्मिक सौहाद्र्र के लिए वैश्विक चुनौतियां और भारत की भूमिका’ विषय पर हुई परिषद में दि आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणोता गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के संबोधन के संपादित अंश...

Open in App

श्री श्री रविशंकर के संबोधन के संपादित अंश

कई बार मुझे यह समझ में नहीं आता कि हम इस बात से इतना डरते क्यों हैं कि हम एक-दूसरे से अलग-अलग हैं? विविधता में ही मानव जीवन का असली आनंद है. क्या तुमने कभी कल्पना की है कि अगर विविधता नहीं होती तो तुम्हारा जीवन कितना बेजान होता? 

सभी प्रकार की विविधता के बिना मानव जीवन बेकार है, फिर भी हम विविधता से इतनी नफरत क्यों करते हैं? विभिन्न धर्मो, जातियों और विचारधाराओं के लोग हमारे क्रोध का कारण क्यों बनते हैं?

असल में, यह नफरत तनाव से आती है! हर किसी की कुछ मांगें होती हैं और कुछ जिम्मेदारियां. लेकिन अगर हम बिना कोई जिम्मेदारी लिए केवल मांग बढ़ाते हैं, तो दुख पैदा होता है. अगर आप इसे इस तरह से देखें तो यह धर्म ही है जो लोगों को बांधता है. हमारे सभी संतों ने एक ही मंत्र दिया : सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया. 

प्रत्येक धर्म की अपनी विशेषताएं होती हैं. तुम देखो, भगवान को भी प्रकृति में विविधता चाहिए. इसीलिए नाना प्रकार के रंग एवं सुगंध के फूल एवं विविध प्रकार के स्वाद के फल प्रकृति ने इंसान की झोली में डाले हैं. अगर विभिन्न तरह की सब्जियां न होतीं, सिर्फ एक आलू ही होता और जीवन भर हमको उसी को खाना पड़ता तो क्या हमारे जीवन में लज्जत रह जाती?

विविधता ही जीवन में वास्तविक चुनौती और रस भी है. जहां बुद्धिमान लोग इस विविधता में आनंदित होते हैं, वहीं मूर्ख उसी कारण से आपस में लड़ते हैं. भगवान बुद्ध एक थे, लेकिन बौद्ध धर्म की 32 अलग-अलग शाखाएं हैं. ईसा मसीह एक थे, लेकिन ईसाई धर्म की 72 शाखाएं हैं. इस्लाम में भी ऐसा ही है. हिंदू धर्म में असंख्य शाखाएं हैं. 

इन सभी धर्मो में आंतरिक विविधता भी है. अंतरधर्मीय सद्भाव और विविधता भारत की पहचान है. सबको साथ लेकर चलना और सबका सम्मान करना ही इस देश की संस्कृति है, इसे बरकरार रहना चाहिए. यह कहना गलत है कि सिर्फ हमारा धर्म ही सर्वोच्च है और हमारे देवता की पूजा से ही मुक्ति संभव है. ऐसा कहकर कुछ लोग नफरत फैलाने का काम करते हैं.

आपको क्या लगता है कि आपके बच्चों को कैसा होना चाहिए? क्या आपको लगता है कि उन्हें हंसते-खेलते रहना चाहिए और खुश होना चाहिए? जो लोग खुशी से भरे होते हैं, वे प्रार्थना स्थल पर जाने पर अचानक गंभीर हो जाते हैं. ऐसा क्यों होना चाहिए? क्या गंभीर मनोदशा में होने का मतलब बहुत बड़ा धर्मात्मा होना है? प्रसन्नता ही धर्म का वास्तविक लक्षण है. धार्मिक व्यक्ति में ही प्रेम पैदा होता है. प्रसन्नता से ही सुख मिलता है. इस तरीके से जीवन को सुंदर बनाया जा सकता है.

अध्यात्म सभी लोगों को जोड़ता है क्योंकि यह मानव-ऊर्जा से संबंधित है. इस शक्ति के इराक में किए गए एक प्रयोग का मुझे उल्लेख करना चाहिए. युद्ध और तनाव के दौरान वहां के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर मैं इराक गया था. परिस्थिति गंभीर थी. संभावित खतरे की तैयारी के अंतर्गत शहर को तीन भागों में बांटा गया था: रेड, यलो और ग्रीन जोन! 

ग्रीन जोन पूरी तरह सुरक्षित था. मैं वहां पहुंचा तो मेरा भी ग्रीन जोन में रहने का इंतजाम किया गया. सुरक्षा इतनी कड़ी थी कि मुझे घुटन महसूस होने लगी थी. आगे-पीछे दो सशस्त्र सैन्य वाहन और आजू-बाजू में दर्जन भर से अधिक वाहनों का काफिला! अंत में मैंने कहा, ‘इराक में मैं ऐसे किले में रहने नहीं आया, मैं रेड जोन में जाना चाहता हूं!’ किसी ने मेरी बात नहीं सुनी. लेकिन मैंने हार नहीं मानी और कहता ही रहा कि मुझे जाना है. अंत में मुझे यलो जोन की सीमा पर छोड़ दिया गया. वहां कहा गया कि मैं अपनी जिम्मेदारी पर रेड जोन में जा सकता हूं. मैंने मंजूर किया और चला गया.

रेड जोन में लोगों ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया. वे मुझसे कह रहे थे कि पहली बार कोई हमारे दुख-दर्द बांटने आया है! उस दिन उन्हें विदा कहते हुए मैंने कहा, कल वापस आने पर कुछ खास लोगों को अपने साथ लाऊंगा!

रेड जोन के लोगों ने अपने विरोधी गुट के 8000 परिवारों को उनकी बस्ती से बेदखल कर दिया था. अगले दिन मैं उन लोगों के प्रतिनिधियों के साथ रेड जोन में गया जिन्हें निष्कासित कर दिया गया था. लोग भड़क गए. उग्र हो गए. लेकिन धीरे-धीरे गुस्सा कम हुआ. सिर्फ मैं वहां था, मध्यस्थता करने की, समझाने की कोशिश कर रहा था. धीरे-धीरे दोनों गुट शांत हो गए.

अंत में मैंने कहा, ये तुम्हारे भाई हैं, अब इन्हें यहां वापस आने दो! रेड जोन के लोग मान गए और कुछ घंटे पहले जो लोग एक-दूसरे पर आग उगल रहे थे, उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और खुशी में डूब गए. युद्धग्रस्त इराक के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था. आठ हजार विस्थापित परिवार घर लौटे.

विवादों, वैमनस्य का समाधान बातचीत से और सही समय पर, उचित मध्यस्थता से ही संभव है. हर किसी में यह क्षमता होती है. विवादों की आग में घी डाले बिना झगड़ों को सुलझाने की पहल करनी चाहिए.. क्योंकि वह भी धर्म का ही काम है!

लोकमत के कार्यक्रम में दि आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणोता गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के संबोधन के संपादित अंश... 

टॅग्स :राष्ट्रीय अंतर-धार्मिक सम्मेलनलोकमत हिंदी समाचार
Open in App

संबंधित खबरें

भारतPM Narendra Modi Interview: महाराष्ट्र में कौन सा नया उद्योग क्षेत्र पीएम मोदी की प्राथमिकता में है? प्रधानमंत्री ने दिया ये जवाब

भारतPM Narendra Modi Interview: भाजपा के साथ आने के लिए क्या शरद पवार के साथ कभी चर्चा हुई थी? पीएम मोदी ने दिया ये जवाब

भारतLokmat Maharashtrian of the year awards 2024: ईशा अंबानी; जानिए एक सफल बिजनेस वुमन की कहानी

भारतLokmat Conclave और Lokmat Parliamentary Awards में पहुंचे छात्रों से चुनावी चर्चा

भारतLokmat Parliamentary Awards 2023: जॉन ब्रिटास: मीडिया में करीब 3 दशक की बड़ी पारी खेलने के बाद साल 2021 में राजनीति में कदम रखा, सर्वश्रेष्ठ नवोदित सांसद का अवार्ड मिला

पूजा पाठ अधिक खबरें

पूजा पाठLord PARSHURAM: भगवान परशुराम ने स्वयं किसी का विध्वंस नहीं किया बल्कि पितृ स्मृतियों के वशीभूत होकर दुष्टों का वध किया

पूजा पाठVaishakha Purnima 2024: कब है वैशाख पूर्णिमा? जानें तिथि और महत्व, ऐसे करें पूजा

पूजा पाठVat Savitri Vrat 2024: इस बार किस दिन रखा जाएगा वट सावित्री व्रत, जानिए तिथि और महत्व

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 17 May 2024: आज धन के मामले में सावधान रहें ये 3 राशि के लोग, आर्थिक नुकसान होने की संभावना

पूजा पाठआज का पंचांग 17 मई 2024: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय