यह पहलू बताता है कि किस तरह भाजपा ने दूरगामी परिणामों को लक्ष्य बना कर अपने संगठन का विकास किया है. अब अगले पांच साल यह पार्टी दक्षिण भारत पर जोर देगी और ताज्जुब नहीं कि कुछ वर्षो के बाद उसका झंडा वहां भी लहराता हुए दिखाई दे.
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एक और महत्वपूर्ण बात जो देखने में आई है, वह यह है कि लोगों ने विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में अलग-अलग तरह से वोट दिया है. हालिया उदाहरण ओडिशा का है, जहां विधानसभा चुनावों में तो पटनायक को भारी वोट मिले, लेकिन आम चुनावों में उनके प्रति लोगों का व
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जब मोदी ने तीन राज्यों में हार के बाद राष्ट्रवाद और भाजपा ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा लिया तो विकास के मसले और मुल्क के गंभीर सरोकार नेपथ्य में थे. अब मोदी को लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी तथा बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना ही होगा. अ
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विकास का भरोसा, विकास और विकास के अहसास से पैदा हुई जन-संतुष्टि ये तीनों अलग-अलग लेकिन एक-दूसरे पर आधारित चरण हैं. नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्नी बना कर जनता ने यह सिद्ध कर दिया कि मोदी पर पांच साल बाद भी भरोसा है.
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पॉलिटिकल पंडितों ने साइलेंट वोटर को ऐसा वर्ग मान लिया था जो मोदी सरकार के कामकाज से या तो दुखी था या तथाकथित असहिष्णु माहौल का पीड़ित, जो खुल कर अपनी भावनाओं का इज़हार नहीं करना चाह रहा था.
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एक तरफ हमारे लोकतंत्र का यह काला पक्ष हमारी आंखों में घूम रहा है, दूसरी तरफ उसके उज्जवल पक्षों पर भी निगाह डाली जानी चाहिए. इन्हीं ममता बनर्जी, जो भाजपा के हमले से अपनी सत्ता बचाने के लिए दीवानी हुई जा रही हैं, को अपने 33 फीसदी टिकट स्त्रियों को देन
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अब तो न मुद्दे मायने रखते हैं न ही उम्मीदवार. न ही संसद की वह गरिमा बची है जिसके आसरे जनता में भावनात्मक लगाव जागे कि संसद चल रही है तो उनकी जिंदगी से जुड़े मुद्दों पर बात होगी, रास्ता निकलेगा.
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कहा जा सकता है कि आम धरती पर अमृत फल के समान है. प्रकृति उदार होकर हम पर फलों की बरसात करती है. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आदि मानव ने जब पहली बार आम का स्वाद चखा होगा तो उसे कैसा लगा होगा?
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अगर नरेंद्र मोदी की सरकार दोबारा वापस आती है तो उसके सामने चुनाव बाद महंगाई बढ़ने की अवधारणा को तोड़ना बड़ा मसला होगा. इसी तरह पेट्रोल की कीमतों में दो रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी भी बता रही है कि चुनाव बाद महंगाई बढ़ने की अवधारणा पर काबू पाना आसान
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