राजेश बादल का ब्लॉग: करवट लेते लोकतंत्र में, हर पार्टी के लिए सबक

By राजेश बादल | Published: May 24, 2019 01:03 PM2019-05-24T13:03:41+5:302019-05-24T13:03:41+5:30

जब मोदी ने तीन राज्यों में हार के बाद राष्ट्रवाद और भाजपा ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा लिया तो विकास के मसले और मुल्क के गंभीर सरोकार नेपथ्य में थे. अब मोदी को लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी तथा बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना ही होगा. अ

lok sabha election result 2019 after democracy has changed party should learn | राजेश बादल का ब्लॉग: करवट लेते लोकतंत्र में, हर पार्टी के लिए सबक

राजेश बादल का ब्लॉग: करवट लेते लोकतंत्र में, हर पार्टी के लिए सबक

सत्नहवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव के परिणाम आ चुके हैं. पहली बार किसी गैर कांग्रेसी दल को दोबारा स्पष्ट बहुमत मिला है. कह सकते हैं देश का लोकतांत्रिक अतीत नई करवट ले रहा है. इस अभूतपूर्व जनादेश के संदेश और सबक क्या हैं? पहले भाजपा की बात. दरअसल इस शानदार जीत के पीछे तीन बड़े कारण हैं. एक तो यह कि प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने जब अपनी सभाओं में यह बात कही कि मतदाता का वोट सीधे उनके खाते में जाएगा तो इसका तेज असर हुआ. स्थानीय प्रत्याशी से गुस्सा या नापसंदगी हाशिए पर चली गई.

दूसरी बात यह कि बहुमत इस पक्ष में था कि मोदी को एक कार्यकाल और मिलना चाहिए. जब मोदी ने तीन राज्यों में हार के बाद राष्ट्रवाद और भाजपा ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा लिया तो विकास के मसले और मुल्क के गंभीर सरोकार नेपथ्य में थे. अब मोदी को लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी तथा बुनियादी ढांचे पर ध्यान देना ही होगा. अगले चुनाव में लोग अब इन्हीं मुद्दों पर सिर्फ काम मांगेंगे. तीसरी बात सबसे महत्वपूर्ण है. अपनी सभाओं और अनेक अवसरों पर प्रधानमंत्नी ने इस  पर जोर दिया है कि गठबंधन को मिलावटी या महामिलावटी दल कमजोर करते हैं (हालांकि यह शब्द उन्होंने प्रतिपक्ष के लिए इस्तेमाल किए हैं) इसलिए आदर्श स्थिति तो यही है कि भाजपा को अपने बूते पर सरकार बनाने का अवसर मिले. तब नीतीश कुमार जैसे सहयोगियों की राममंदिर पर ङिाझक का आदर करने का दबाव नहीं रहेगा. भाजपा को अब राममंदिर, धारा 370 और 35 ए जैसे मुद्दों पर ध्यान देना ही होगा.

ये परिणाम कांग्रेस के लिए भी चेतावनी भरा संदेश लाए हैं. यह पुरानी पार्टी अपने संक्रमण काल से गुजर रही है. साल डेढ़ साल पहले नए जवान नेतृत्व ने कमान संभाली है. कांग्रेस को अपनी पराजय के कारण खोजने होंगे और अपनी प्राथमिकताओं को देश की प्राथमिकताओं से जोड़ना पड़ेगा. नई व पुरानी पीढ़ी के बीच अंदरूनी खिंचाव इस चुनाव में पूरे भारत ने देखा है. अब नए खून को पूरी तरह मौका देना होगा. पांच वर्ष संगठन की कमजोरियों से मुक्त होने के लिए काफी हैं. यही नहीं, पूरे साल चुनाव के लिए तैयार रहने वाली एक रचनात्मक कांग्रेस समय की आवश्यकता है. 

अंतिम बात. कांग्रेस को ध्यान देना होगा कि प्रचार में भाषा और आक्रोश की अभिव्यक्ति मर्यादित होना चाहिए. भले ही भाजपा ने इसका अधिक अतिक्र मण किया हो मगर कांग्रेस को उससे अलहदा ही रहना होगा. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ भाजपा ने निंदनीय अभियान चलाया. राजीव गांधी को चोर तो भाजपा ने ही कहा था. जब जब पार्टी ने यह अभद्र अभियान चलाया, उसे नुकसान हुआ. ‘चौकीदार चोर है’ का उपयोग करने से कांग्रेस को बचना था. यह कांग्रेस के चरित्न से उलट है. क्षेत्नीय दलों के लिए भी सत्नहवीं लोकसभा का चुनाव एक सबक है. जाति और उपजाति के समीकरणों पर सियासत का वक्त गया. अब उन्हें राष्ट्रीय मुद्दों पर गंभीरता से विमर्श करना होगा और अपने दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्न की खिड़की भी खोलनी होगी. 

Web Title: lok sabha election result 2019 after democracy has changed party should learn