एन.के. सिंह का ब्लॉग: फिर से एक बार नरेंद्र मोदी...आखिर क्यों और अब आगे क्या?
By एनके सिंह | Published: May 24, 2019 07:43 AM2019-05-24T07:43:09+5:302019-05-24T07:43:09+5:30
विकास का भरोसा, विकास और विकास के अहसास से पैदा हुई जन-संतुष्टि ये तीनों अलग-अलग लेकिन एक-दूसरे पर आधारित चरण हैं. नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्नी बना कर जनता ने यह सिद्ध कर दिया कि मोदी पर पांच साल बाद भी भरोसा है.
ये नतीजे चौंकाने वाले हैं. स्थायी-भाव से मोदी-विरोध की दुकान चलाने वाले पत्नकारों और विश्लेषकों के लिए तो छोड़िये, निरपेक्ष भाव से तथ्यों का आकलन करने वाले एक छोटे वर्ग के लिए भी. शायद ही हममें से कोई हो जो 2019 के चुनाव नतीजों के आस-पास भी था. हम जनता को नहीं समझ सके या ‘जनता-मोदी बॉन्ड’ को नहीं देख सके. हमें अपनी प्रोफेशनल स्किल को और बेहतर करना होगा. ‘चौकीदार चोर है’ में हमें जनता का गुस्सा दिखाई दिया लेकिन ‘मोदी-मोदी’ के स्व-स्फूर्त नारे हमें किराये के लगे. नरेंद्र मोदी को देश ने शासन चलाने का एक और मौका दिया, हमारी आलोचना को तिरस्कृत करते हुए. हारे हम और हमारी समझ न कि केवल कोई ‘चौकीदार चोर है’ का आलाप देने वाला. राफेल में कोई भी ऐसा तथ्य राहुल गांधी नहीं दे पाए जो मोदी की व्यक्तिगत शुचिता की छवि पर दूर-दूर तक कोई आंच ला सके.
अगर हम निरपेक्ष विश्लेषक होने का दम भरते हैं तो यह गलती कैसे हुई? क्या लगभग 134 करोड़ की आबादी वाला देश राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश, तेजस्वी या इन सबके कुल भावी योग को 25 लाख करोड़ रुपए के बजट वाले भारत की बागडोर नहीं देना चाहता था? कांग्रेस ने तो घोषणा-पत्न में हर गरीब को 72000 रु पए सालाना तक देने का वादा किया था. मोदी सरकार ने 2-2 हजार की मात्न दो किस्तें देकर उसे कैसे अपने पाले में कर लिया? कांग्रेस के पास इस संदेश को भेजने के लिए प्रतिबद्ध कैडर नहीं था यानी संगठनात्मक ढांचे का अभाव था. शायद राहुल गांधी को ‘आज हैं, कल नहीं’ के भाव से राजनीति को लेने का तरीका बदलना होगा. कांग्रेस के वर्तमान नेताओं पर ‘स्वत: विश्वास’ नहीं उमड़ता जो नेहरू-इंदिरा पर था या आज अकेले नरेंद्र मोदी पर है.
विकास का भरोसा, विकास और विकास के अहसास से पैदा हुई जन-संतुष्टि ये तीनों अलग-अलग लेकिन एक-दूसरे पर आधारित चरण हैं. नरेंद्र मोदी को दुबारा प्रधानमंत्नी बना कर जनता ने यह सिद्ध कर दिया कि मोदी पर पांच साल बाद भी भरोसा है. पहला चरण शाश्वत नहीं रहता इसलिए अब मोदी के लिए चुनौती यह है कि अगले पांच साल में अन्य दो चरण पूरा करें. ऐसा नहीं कि विगत पांच साल में बगैर कुछ हुए यह विश्वास बना रहा. दरअसल विकास दो तरह के होते हैं- सीधी डिलीवरी देकर तात्कालिक कमियों को पूरा करना या राहत मुहैया करना जैसे उज्ज्वला योजना, किसानों को 2000 रुपए की दो किस्तें तत्काल देना. इन्हें कोई भी सक्षम सरकार अपने कार्यकाल के पहले तीन सालों में पूरी तरह उपलब्ध करा सकती है और व्यापक जन-संचार माध्यम के जरिये इसका अहसास भी दिला सकती है.
मोदी ने यह किया. लेकिन दीर्घकालिक विकास जैसे अंतर-संरचनात्मक विकास जिसमें सिंचाई, ऊर्जा, सड़क, शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए संस्थागत ढांचा खड़ा करना, नए उद्योगों के लिए दक्ष मानव-संसाधन का स्रोत तैयार करना किसी भी सक्षम से सक्षम सरकार के लिए फलीभूत होने में दो शासन-काल लेता है. फिर उस किस्म के विकास में जिसमें सामान्य जन की सोच वैज्ञानिक बना कर उन्हें सदियों पुरानी जीवनशैली या जीवनयापन के तरीकों के दोषों से हटाकर नई सोच और यंत्नों के इस्तेमाल की ओर ले जाना सरकार के लिए एक लंबा समय लेता है. एक सिंचाई परियोजना में कम से कम दस साल, बिजली संयंत्न में सात साल और सड़क में तीन से चार साल लगते हैं, लेकिन भारत जैसे परंपरागत समाज में किसान अपनी जमीन का मृदा-परीक्षण कराके तद्नुरूप फसल का पैटर्न बदले, यह प्रवृत्ति पैदा करना दशकों का समय लेता है. दिक्कत यह है कि जबतक किसान का इस ओर झुकाव नहीं होता, कृषि में उत्पादकता (न कि केवल उत्पादन) बढ़ाना असंभव है. सड़कें तीन गुनी रफ्तार से बनीं, शौचालय बने, बिजली सुदूर गांव तक पहुंची—इन सबने जनता को प्रभावित किया.
मोदी के सामने चुनौती किसानों की उपज बढ़ाने की नहीं उत्पादकता बढ़ाने की है. आज भारत में गेहूं और चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन विश्व औसत से आधा और चीन का लगभग एक-तिहाई है. यही हाल गन्ने से बनाई गई चीनी का है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कृषि उपज लेकर हम खड़े नहीं हो सकते. विश्वास है कि 2019 के मोदी एक बदले हुए, ज्यादा प्रभावी और परिणाम देने वाले मुखिया साबित होंगे, ताकि हम निरपेक्ष विश्लेषकों को भी विश्लेषण में आसानी हो.